(अनुभव की बात, अनुभव के साथ)
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा 24 अक्टूबर को जारी किए गए एक अध्यादेश के बाद 14 दिसंबर 2018 से प्रदेश के शहरी निकाय क्षेत्रों में रहने वाले लोग पॉलीथिन का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे। हमारी प्रदेश सरकार ने इन क्षेत्रों में 14 दिसंबर 2018 से पॉलीथिन के इस्तेमाल पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया है।राज्य सरकार के निर्देशानुसार पॉलीथिन के इस्तेमाल पर आर्थिक दंड एवं न्यायिक प्रक्रिया के तहत जेल भेजे जाने तक का भी प्रावधान किया गया है । हमारी सरकार ने सख्ती के साथ जांच और छापेमारी के निर्देश दिए हैं। इस संबंध में प्रदेश के नगर विकास एवं आवास विभाग ने आदेश जारी कर दिया है । 23 दिसंबर 2018 से आर्थिक दंड एवं अन्य सजा देने की कार्रवाई शुरू की जाएगी।
पॉलीथिन के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाना निश्चित रूप से एक शानदार पहल है। ऐसे तो ये और पहले ही हो जाना चाहिए था।परंतु,जब जागो तभी सवेरा।पॉलीथिन ने हमारे जीवन को जहरीला बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एक तो ऐसे ही विभिन्न प्रकार के प्रदूषण से पूरा विश्व परेशान है, ऊपर से पॉलीथिन ने आग में घी डालने का काम किया है। इसके इस्तेमाल ने निश्चित रूप से हमें सहूलियत प्रदान की है, परंतु इसकी वजह से होने वाले नुकसान का वर्णन कर पाना संभव नहीं है। यह हर प्रकार से समस्त प्राणियों के लिए नुकसानदेह है। इन प्लास्टिक बैग को बिघटित होने में करीब 1000 वर्ष का समय लगता है।जिस वजह से पर्यावरण पर इसका तत्काल प्रभाव तो नजर नहीं आता, परंतु इसके लगातार डंपिंग से आने वाली पीढ़ियों के लिए एक गंभीर समस्या उत्पन्न होने वाली है। इसके इस्तेमाल से सॉयल पॉल्युशन के साथ-साथ ऑयल पॉल्युशन भी होता है। यह धरती के लिए विनाशकारी है। समस्त प्राणियों के स्वास्थ्य पर इसका काफी बुरा प्रभाव पड़ता है। प्लास्टिक की थैलियों के उत्पादन में प्रयुक्त कुछ रंग कैंसर होने की संभावना को बढ़ावा देते हैं।
जमीन के अंदर प्लास्टिक कचरा जमा होने के कारण वर्षा का संचरण बाधित होता है और उस वजह से भूजल का स्तर कम हो जाता है। जो एक गंभीर समस्या है। प्लास्टिक की थैलियां ड्रेनेज सिस्टम में नालियों में रूकावट डालती है। पॉलिथीन में कुछ ऐसे रसायन होते हैं जो जमीन में मिल जाते हैं,जिस वजह से पृथ्वी पर मिट्टी और पानी विषैला हो जाता है। हम अक्सर पॉलीथिन में कई खाद्य पदार्थ लाते हैं और बचे खुचे खाद्य पदार्थ उसी तरह जहां तहां फेंक देते हैं।खाने- पीने की सामग्रियों से भरी यह पॉलीथिन जीव जंतुओं के भोजन बन कर उनके लिए घातक साबित होती है और उनके प्राण चले जाते हैं। नदी- नालों और समुद्रों में इन पॉलीथिन की वजह से डॉल्फिन, वेल्स, पेंगुइन, कछुआ एवं अन्य जलीय जीवों के साथ ही साथ धरती पर भी कई जानवर हैं जो इन्हें खाने की चीज समझ कर खा जाते हैं और उनकी मृत्यु हो जाती है। इसकी वजह से कई जलीय जीव विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए हैं। पॉलीथिन की वजह से हर साल लाखों जानवर और पक्षियों की मृत्यु हो जाती है। भूमि की उर्वरता नष्ट होती है,भूवैज्ञानिक स्रोत दूषित हो रहे हैं। पॉलीथिन को नष्ट करना भी काफी कठिन है, इन्हें जलाने से कई विषाक्त गैसों का उत्सर्जन होता है। जिसका पर्यावरण पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है। प्लास्टिक के बर्तन में भोजन को गर्म करना और अधिक समय तक कार में रखी पानी की बोतल का पानी पीना कैंसर का कारण बन सकता है। पॉलीथिन पर या प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाना तो काफी पहले हो जाना चाहिए था। परंतु अभी भी 50 माइक्रोन से अधिक मोटाई वाले प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है।जबकि उस पर भी पूरी तरह प्रतिबंध लगा देने की आवश्यकता है।विश्व के कई देश हैं जहां प्लास्टिक पूरी तरह प्रतिबंधित है।हमें भी अपनी आने वाली पीढ़ियों को ध्यान में रख कर इसका ख्याल रखना होगा और हमारी केंद्र सरकार को इसके लिए पहल करनी होगी।देश के हर नागरिक को इस पर गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता है। सरकार के द्वारा बनाए गए नियम कानून अपनी जगह हैं,लेकिन अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए स्वस्थ विरासत छोड़ना हमारा फर्ज बनता है।
हम सबों को आज से, अभी से शपथ लेनी होगी कि बाजार निकलते वक्त थैला लेकर निकलेंगे। पॉलीथिन नहीं और बिल्कुल नहीं। कोशिस ये भी हो कि प्लास्टिक की थैलियों में बंद सामग्रियों का हमसब खुद बहिष्कार करें।