37 वर्ष की उम्र में पटना की सड़को पर अखबार बेच कर भूखे पेट रह वक्त व हालात से संघर्ष करते हुए बिहार दारोगा परीक्षा में चयनित हुए त्रिपुरारी यादव की संघर्ष गाथा किसी ख्वाब के हकीकत में बदलने से कम नही।9 अक्टूबर 1978 को बिहार के बांका जिले के शंभूगंज थाना क्षेत्र के बरौथा गांव में ललित यादव के घर पुत्र रत्न के रूप में जन्मे त्रिपुरारी का बचपन भूख गरीबी बेबसी के बीच बीता ।किसान पिता ने तमाम बाधाओ के बावजूद त्रिपुरारी को पढने के लिए गांव के सरकारी स्कूल में भेजा।बडे भाई शंभू भी उसी स्कूल में अगली कक्षा में पढते थे उनकी किताबो को पढ कर इन्होंने अपनी स्कूली और कालेज की पढाई पूरी की।वर्ष 2000 में पिंकी देवी से परिणय सूत्र में बंधे ।एक पुत्र और दो पुत्रियों के पिता त्रिपुरारी गांव में बच्चों को ट्यूशन पढा कर खेती कर किसी तरह अपने परिवार की गाड़ी को खींच रहे थे। शिक्षक बनने के लिए बी एड किया।पर नौकरी नहीं मिली इसी बीच वर्ष 2014 में बिहार दारोगा की बहाली निकली।पत्नी ने जबरदस्ती फार्म भरवाया तथा तैयारी के लिए पटना भेजा यहां कोई ठौर ठिकाना नहीं था एक परिचित एम एल सी उपेंद्र प्रसाद थे जिन्होंने दरोगा प्रसाद राय मार्ग अवस्थित अपने सरकारी आवास में रहने की जगह दी ।तैयारी के लिए कई कोचिंग संस्थानो में गए पर बिना पैसा किसी ने एडमिशन नहीं लिया इसी बीच 11रूपये में पढाने वाले नया टोला में एम सिविल सर्विसेज के गुरू डॉ एम रहमान से मिले ।उन्होंने न सिर्फ निशुल्क पढाया बल्कि समय समय पर आर्थिक मदद भी की ।संस्थान के निदेशक मुन्ना जी का भी सहयोग रहा।प्रति दिन दस किलोमीटर पैदल चल कर कोचिंग आना जाना शुरू हुआ बच्चों की भी चिंता थी सो चार बजे सुबह उठकर पटना जंक्शन से पेपर लेकर गांधी मैदान बस स्टैंड में बेचना शुरू किया पैसा नहीं रहने पर नोटबंदी के समय कई दिनों तक भूखे पेट भी रहना पड़ा।एक ही कपड़ा कई कई दिनों तक पहनना पडता था केवल गुरु रहमान को विश्वास था कि सफलता जरूर मिलेगी।इसी वर्ष 11 जुलाई को दारोगा का दौड़ था और 10 जुलाई को इनके पिता जी का देहांत हो गया बावजूद इसके गुरु रहमान की प्रेरणा से दौड में शामिल हुए और सफल भी हुए।पुनः जुलाई माह में ही रिटेन परीक्षा हुई। सितंबर में फाइनल रिजल्ट आया।299 रिक्तियों में 97 लोग ही अंतिम रूप से सफल घोषित किए गए हैं जिनमें त्रिपुरारी का स्थान 84 वा है। परिवारिक जिम्मेदारी बेरोजगारी गरीबी से संघर्ष करते सफलता प्राप्त करने वाले त्रिपुरारी अपनी सफलता का श्रेय वेद व कुरान के ज्ञाता गुरु डॉ एम रहमान को देते हुए कहते हैं कि उचित मार्गदर्शन में किया गया परिश्रम कभी बेकार नहीं जाता।
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