रोशनी और खुशियों का त्योहार दीपावली क्यों मनाई जाती है? जानिए क्या है ऐतिहासिक कारण

भारत को पर्व-त्योहारों का देश कहा जाता है। एक ऐसा देश, जहां पर्व त्योहार लोग बड़े धूमधाम से मनाते हैं। देश में पर्व त्योहारों को यूं ही नहीं मनाया जाता, त्योहारों को मनाने के पीछे कई महत्वपूर्ण कारक छिपे होते हैं। कार्तिक माह की अमावस्या पर रोशनी और खुशियों के त्योहार दीपावली मनाने के पीछे भी बेहद दिलचस्प कारण छिपे हैं। आइए आज जानते हैं भारतीय संस्कृति में रोशनी और विविधता से भरा पर्व दीपावली क्यों मनाई जाती है? इस त्यौहार को मनाने के पीछे कौन से ऐतिहासिक कारण हैं? और मौजूदा दौर में दीपावली को किस तरह से मनाई जाती है।

क्यों मनाई जाती है दीपावली

दीपावली मनाने के पीछे मुख्य रूप से तीन कारण माने जाते हैं। पहला और सबसे प्रमुख कारण मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम 14 साल के वनवास के बाद धर्मनगरी अयोध्या लौटे और इसी खुशी में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था। जैसा की रामचरितमानस में वर्णित है कि रानी कैकई की दासी मंथरा की साजिश की वजह से भगवान श्रीराम को राजा दशरथ ने 14 साल के वनवास पर भेज दिया था। दरअसल, वह अयोध्या का राजकाज उनके बेटे भरत को दिलाना चाहती थी, लेकिन प्रभु श्री राम सभी भाइयों में सबसे बड़े थे और सारे भाई उनसे बहुत प्रेम करते थे। इसलिए भगवान राम के वनवास जाने के बाद भी भरत राजा नहीं बनें और प्रभु श्री राम की वनवास से लौटने का इंतजार किया।

माता लक्ष्मी की आराधना

हिंदू धर्म में माता लक्ष्मी को धन-संपदा की देवी कहा गया है। ऐसे में लोग अपने सुखों की प्राप्ति के लिए दीपावली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इसमें मां लक्ष्मी स्वयं भक्तों के घर आती है। भक्त माता लक्ष्मी को खुश करने के लिए मुख्य द्वार पर तोरण, रंगोली आदि से सजाते हैं। साथ ही सनातन धर्म में स्वास्तिक चिन्ह को बहुत शुभ माना जाता है, इसलिए दिवाली के दिन मुख्य द्वार पर स्वास्तिक चिन्ह भी बनाई जाती है। मान्यताओं के अनुसार स्वास्तिक चिन्ह बनाने से भक्तों पर माता लक्ष्मी की विशेष कृपा बरसती है एवं सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

भगवान कृष्ण ने किया था राक्षस का वध

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया थ। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दिए जलाए और इसके साथ इसी दिन समुद्र मंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए थे। जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही है। इन तमाम घठकों के एक साथ जुड़ने की वजह से दीपावली का दिन बेहद खास हो जाता है।

पांच दिनों तक धूम धाम से चलता है यह उत्सव

दीपावली के जश्न में यूं तो लोग बहुत पहले से डूब जाते हैं, लेकिन मुख्य रूप से इस त्यौहार की रौनक 5 दिनों तक दिखाई देती है। सबसे पहले कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा अर्चना की जाती है। इसी दिन नए वस्त्रों और बर्तनों को खरीदना शुभ माना जाता है। अगले दिन यमराज के निमित्त नरक चतुर्दशी का व्रत व पूजन किया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था‌, इसे हम छोटी दिवाली के नाम से भी जानते हैं।

तीसरे दिन कार्तिक अमावस्या को दीपावली का पर्व मनाया जाता है, जिससे मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। अमावस्या की अंधेरी रात में दीयों की रोशनी शमा को रंगीन बना देती है। इसके अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। गोवर्धन पूजा में गोबर से गोवर्धन बनाया जाता है और उसे भोग लगाया जाता है‌। अंतिम दिन भैया दूज के साथ यह पर्व खत्म होता है।

जाहिर है मौजूदा दौर में हमारे देश के सबसे लोकप्रिय और हर्ष का त्यौहार दीपावली को जाना जाता है। दीपावली से पहले ही लोग अपने घरों की साफ सफाई करते हैं, अपने घरों को विभिन्न लाइटों और कलर्स से सजाते हैं। इस दिन सभी धर्म सभी, संप्रदाय के लोग मिलजुल कर बड़े हर्षोल्लास से खुशियां मनाते हैं।

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