विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं अभिनेता राजेंद्र कर्ण

दिल में अगर कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो तमाम बाधाओं के बावजूद इंसान अपनी मंजिल को प्राप्त कर ही लेता है इस कहावत को वास्तविकता के धरातल पर अक्षरशः सत्य सिद्ध कर दिखाया है विलक्षण प्रतिभा के धनी राजेंद्र ने।

जिनके नाम पर चलती थी फ़िल्में

छपरा की धरती पर जन्म लिए, जगदम कॉलेज के प्रोफेसर जे एल कर्ण के सुपुत्र राजेंद्र कर्ण। बी एस सी पास करने के पश्चात कला के प्रति रुझान के कारण. इनके चाचा जी महान लेखक,कवि, गीतकार,फाइन आर्टिस्ट ललित कुमुद जो सी आई डी पटना में सेवारत थे, की नज़र राजेंद्र कर्ण जी के तरफ गई तो ललित कुमुद जी ने इनकी मुलाकात 1987 में निर्देशक कीरन कान्त वर्मा एवं भोजपुरी फिल्मों के एक ऐसे विलेन विजय खरे जी जिनके नाम पर फ़िल्में चलती थी से कराई।

विजय खरे जी ने अपने शिष्यत्व में इन्हें शामिल किया और एक्टिंग की गूढता से परिचय कराया। 1989 में विजय खरे – दिलीप जायसवाल की फिल्म जुग जुग जियो मोरे लाल में टाइटल रोल दिया। एक्टिंग को बहुत सराहा गया फिर कीर्णकान्त वर्मा जी की फिल्म हक़ के लड़ाई में अभिनय किया।  उन दिनों SIET पटना के प्रोड्यूसर क़ासिम खुर्शीद की एक फिल्म शक जिसमे इन्होंने अभिनय किया।

90 के दशक में दूरदर्शन में अजय ओझा निर्मित टेली फिल्म में भी किया अभिनय

बिहार सरकार की एक फिल्म प्रौढ़ शिक्षा पर बनी जिसके निर्देशक सुधीर कुमार,लेखक डॉ प्रफुल्ल कुमार सिंह मौन की जिसमे कर्ण ने मुख्य भूमिका निभाई।

फिल्म गाओं गाओं में दिखाई जाती थी,  जिसके कारण सभी लोग इन्हें पहचानने लगे। 90 के दशक में दूरदर्शन में अजय ओझा निर्मित टेली फिल्म में भी अभिनय किया।

ज्ञात हो की इनका पैतृक गांव अंधरा ठाढ़ी,मधुबनी जिला है। हाल ही में इन्होंने एक मैथिलि फिल्म प्रेमक बसात किया जिसके निर्देशक रूपक शरर,निर्माता वेदांत झा।

इस मैथिलि फिल्म को लोगों ने बहुत सराहा। इनकी आने वाली फिल्में हैं। (हिंदी) आश्रमकाण्ड,धमाल पे धमाल,राइफलगंज।

(भोजपुरी) पिरितिया काहे तू लगौलु निर्माता बॉबी खान,निर्देशक मिथिलेश अविनाश। कर्ण ने छत्तीसगढ़ी फिल्म में भी अभिनय किया है। आप कहते हैं रैफलगंज शूटिंग के दौरान ओमपुरी जी से कर्ण ने सवाल किया। अच्छा कलाकार बनने के लिए क्या किया जाय। ओमपुरी जी ने कहा-अच्छे कलाकार बनने के लिए अच्छा इंसान बनना ज़रूरी होता है।

 

आप अपन व्यवसाय छत्तीसगढ़ में करते हुए फिल्मो में काम करते हैं। राजेंद्र कर्ण सूफी परम्परा से प्रभावित हैं,कहते हैं जोत से जोत जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो।

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