केदारनाथ उत्तराखण्ड के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। यह स्थान समुद्रतल से 3584 मीटर की ऊँचाई पर हिमालय पर्वत के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित है। केदारनाथ धाम और मंदिर तीन तरफ पहाड़ों से घिरा है। एक तरफ है करीब 22 हजार. फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड।
उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर
उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है| जयोतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही समस्त पापो से मुक्ति मिल जाती है| यह उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है, ( मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है) जो कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है। ये शिलाखंड भूरे रंग की हैं। इसका गर्भगृह प्राचीन है जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है।
केदारनाथ मंदिर न सिर्फ तीन पहाड़ बल्कि पांच नदियों का संगम भी है यहां- मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी। इन नदियों में से कुछ का अब अस्तित्व नहीं रहा लेकिन अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद है।
मन्दिर गर्मियों के दौरान केवल 6 महीने के लिये खुला रहता है जबकि सर्दियों में ये बन्द रहता है। इस दौरान क्षेत्र में भारी बर्फबारी के कारण आस-पास का इलाका बर्फ की चादर से ढका रहता है।
ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा भगवान शंकर का वास
हिमालय के केदार पर्वत पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित हैं।
प्रसिद्ध हिन्दू संत आदि शंकराचार्य को देश भर में अद्वैत वेदान्त के प्रति जागरूकता फैलाने के लिये जाना जाता है। चारों धामों की स्थापना के उपरान्त 32 वर्ष की आयु में उन्होंने इसी स्थान पर समाधि ली थी।
केदारनाथ धाम में शिवजी को अत्यंत पूजा क्यों की जाती है ?
ऐसा माना जाता है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या अर्थात (परिवार वालो की हत्या) के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे | लेकिन भगवान शंकर पांडवो से गुस्सा थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए , पर भगवान शंकर पांडवो को वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे । भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए।
भगवान शंकर ने बैल का रूप धारण करके अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था कि भगवान शंकर इन पशुओ के झुण्ड में उपस्थित है । तभी भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिए ।
अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल का रूप धारण कर पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। तब भीम पूरी ताकत से बैल पर झपटे , लेकिन बैल भूमि में अंतध्र्यान करने लगा। तब भीम ने बैल का पीठ का भाग पकड़ लिया। और भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तुरंत दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ धाम में पूजे जाते हैं।
इसलिए केदारनाथ धाम में शिवजी को अत्यंत पूजा जाता है |