दिल्ली डायरी : अद्भुत स्टीम इंजन म्यूजियम

कमल की कलम से !
सैर रेवाड़ी रेलवे हेरिटेज म्यूजियम की :

भारतीय रेलवे की चार विरासत दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे (1999), नीलगीरी माउंटेन रेलवे (2005), कालका शिमला रेलवे (2008) और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, मुंबई (2004) को यूनेस्को ने वैश्विक विरासत सूची में जगह दी है.इसके अलावा दो स्थल माथेरन लाइट रेलवे और कांगड़ा घाटी रेलवे को भी आनेवाले दिनों में धरोहर में शामिल किए जाने वाली विरासतों में यूनेस्को ने रखा है.

भारतीय रेलवे ने करीब 230 भाप इंजन, 110 विशिष्ट कोच और वैगन को अलग अलग जगहों पर संग्रहालय और हेरिटेज पार्क में लोगों को देखने के लिए रखा है. इनमें से कई 100 साल से भी पुराने हैं जो कि देखने वालों को अपने पुराने दिनों के गौरव की अनुभूति कराते हैं.

भारतीय रेलवे 160 साल से भी ज्यादा पुराने और बेहद संपन्न इतिहास के साथ देश की मूर्त और अमूर्त विरासत के कई आयामों को संजोए हुए है. रेवाड़ी स्टीम शेड की यादों को ताजा रखने के लिए 2002 में रेवाड़ी हेरिटेज स्टीम सेंटर के नाम से पुनर्विकसित किया गया जो कि दुनिया में बेहद अनूठी उपलब्धि है.

 

फिलहाल रेवाड़ी स्टीम सेंटर में 6 बड़ी लाइन और 4 छोटी लाइन के कार्यरत भाप इंजन का रख-रखाव करता है। इन भाप इंजनों में “फेरी क्वीन” (1855) भी शामिल है जिसका नाम गिनीज बुक वर्ल्ड रिकॉर्ड में सबसे पुराने कार्यरत इंजन के रूप में दर्ज हो चुका है.इसके अलावा यहां मौजूद भाप इंजन “अकबर” को सुल्तान और गदर जैसी कई बॉलीवुड फिल्मों में भी दिखाया जा चुका है.

पहले इसे रेवाड़ी स्टीम लोकोमोटिव शेड के नाम से जाना जाता था. यह हरियाणा के रेवाड़ी शहर में दिल्ली एनसीआर का एक रेलवे संग्रहालय है जो 1893 में बनाया गया था जो भारत में एकमात्र कार्यरत स्टीम लोकोमोटिव शेड है. साथ ही भारत के कुछ अंतिम जीवित स्टीम लोकोमोटिव के साथ-साथ दुनिया का सबसे पुराना अभी भी कार्यात्मक 1855-निर्मित स्टीम लोकोमोटिव फेयरी क्वीन है.यह रेवाड़ी रेलवे स्टेशन के प्रवेश द्वार के उत्तर में 400 मीटर , गुड़गांव से 50 किमी और राष्ट्रीय रेल संग्रहालय से 79 किमी की दूरी पर स्थित है.

रेवाड़ी स्टीम लोकोमोटिव शेड कई वर्षों तक उत्तर भारत में एकमात्र लोकोमोटिव शेड था. 1990 के दशक में भाप इंजनों को चरणबद्ध तरीके से बंद कर दिए जाने और जनवरी, 1994 में मीटर गेज पटरियों पर भाप इंजन बंद कर दिए जाने के बाद 2002 में फिर से खोला गया.

इसके परिसर में भारत में 16 कार्यात्मक वाष्प इंजनों में से 11 इंजन यहाँ पर दिखाई देते हैं.यहाँ पर मौजूद इंजनों के निम्नलिखित नाम हैं:

बाल्डविन AWE , जो1945 में अमेरिकी कंपनी बाल्डविन लोकोमोटिव वर्क्स द्वारा निर्मित है.

अकबर WP1761.मुगल सम्राट के नाम पर , अकबर जिसे 1963 में चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स में बनाया गया था. और इसे 1965 में सक्रिय सेवा में शामिल किया गया था जिसमें 4-6-2 पहिया होते हैं तथा 5 फीट 6 इंच (1,676 मिमी) गेज और 110 किमी / घंटा (68 मील प्रति घंटे)की गति थी. अब अधिकतम गति 45 किमी / घंटा (28 मील प्रति घंटे) तक सीमित है.
लोकोमोटिव सक्रिय सेवा से सेवानिवृत्त होने के बाद यह सहारनपुर रेलवे शेड में था जिसे अब रेवाड़ी शेड में रखा गया है.
अब इसका उपयोग दिल्ली कैंट – अलवर स्टीम एक्सप्रेस हेरिटेज ट्रेन को चलाने के लिए किया जाता है.
शहंशाह WP/P , मूल बुलेट-नोज्ड अमेरिकन बाल्डविन प्रोटोटाइप नंबर 7200 शहंशाह में से एक है , जो लखनऊ डिवीजन के चारबाग वर्कशॉप में था.इसे उत्तर रेलवे द्वारा स्टीम स्पेशल में उपयोग के लिए लाया गया था इसने भारत के सबसे पुराने रेलवे स्टेशन रॉयपुरम रेलवे स्टेशन (1856 में निर्मित) की 153वीं वर्षगांठ मनाने के लिए 26 जनवरी 2009 को रॉयपुरम और तांबरम के बीच एक सहित कई स्टीम स्पेशल भी चलाए हैं.

इसे 14 जनवरी 2012 को स्टीम एक्सप्रेस में चलाया गया.
इंजन को फिल्म की शूटिंग के लिए एक दिन में 4 लाख रुपये की राशि ली जाती है.
फिल्मों की शूटिंग के लिए लोकोमोटिव किराए पर लिए गये हैं.फिल्मों के नाम का एक बोर्ड भी यहाँ लगा हुआ है.
कुछ प्रसिद्ध फिल्म गांधी, माई फादर का हिस्सा यहां शूट किया गया था.लोकोमोटिव बर्फी जैसी फिल्मों में दिखाई दिए हैं. गुरु , लव आज कल , रंग दे बसंती और वीर-ज़ारा आदि भी शामिल हैं.लोकोमोटिव अकबर ने यहां शूट की गई कई फिल्मों में अपनी उपस्थिति दिखाया है. गदर: एक प्रेम कथा , गांधी, माई फादर , की एंड का , सुल्तान (2016 फिल्म) , गैंग्स ऑफ वासेपुर (फिल्म श्रृंखला) ,करीब करीब सिंगल (2017 फिल्म) , विभाजन (2007 फिल्म) , प्राणायाम (2011 मलयालम फिल्म), एक था चंदर एक थी सुधा (टीवी धारावाहिक)

फेयरी क्वीन स्टीम-लोकोमोटिव पर्यटकों को अक्टूबर से अप्रैल तक हर दूसरे शनिवार को दिल्ली से रेवाड़ी ले जाती है.

रेवाड़ी स्टीम लोकोमोटिव शेड को एक विरासत पर्यटन स्थल के रूप में नवीनीकृत किया गया था और दिसंबर 2002 में भारतीय रेलवे द्वारा इस संग्रहालय से जोड़ा गया था. शेड ने पुराने सिग्नलिंग के साथ-साथ भारतीय रेल नेटवर्क पर इस्तेमाल होने वाले विक्टोरियन युग की कलाकृतियों को भी प्रदर्शित किया गया है.

इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH) ने छात्रों के बीच इस संग्रहालय के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक अभियान भी शुरू किया है.

संग्रहालय सोमवार और सरकारी छुट्टियों के अलावे प्रतिदिन खुला रहता है.
इसमें 3-डी स्टीम लोको सिम्युलेटर भी है जो दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे स्टीम लोकोमोटिव राइड, 3-डी वर्चुअल रियलिटी कोच सिम्युलेटर, टॉय ट्रेन, एजुकेशनल यार्ड मॉडल ट्रेन सिस्टम, इनडोर प्रदर्शनी गैलरी, प्रोजेक्टर के साथ 35-सीटर कॉन्फ्रेंस रूम भी है. एक सदी पुरानी डाइनिंग कार, कैफेटेरिया और स्मारिका की दुकान भी है. संग्रहालय में, छोटे इंजनों के मॉडल , पुराने रेलवे उपकरण, हाथ से पकड़े जाने वाले पीतल के सिग्नल लैंप और पुरानी तस्वीरें दिखाने वाले प्रदर्शनी हॉल भी हैं. संग्रहालय की सुविधाओं में भारत में रेलवे के इतिहास और वर्तमान संचालन के बारे में 50 लोगों के बैठने की क्षमता वाले संग्रहालय के सम्मेलन कक्ष में दिन में एक या दो बार 30 मिनट लंबे वृत्तचित्र और फिल्म शो भी दिखाए जाते हैं जिसके लिए 50 रुपये का टिकट है.
प्रवेश शुल्क 10 रुपये रखा गया है.

दिल्ली से रेवाड़ी जाने के लिए सुवह से रात भर क़ई एक्सप्रेस और कुछ पैसेंजर ट्रेन है.जो 1 घण्टे से लेकर पौने दो घण्टे तक का समय लेते हैं.
रेवाड़ी जंक्शन पर उतरकर आप प्लेटफार्म संख्या 8 के द्वारा 500 मीटर के अंतिम छोर पर आप पैदल ही यहाँ पहुँच सकते हैं.

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