दिल्ली डायरी : सैर दिल्ली के मीनारों की

कमल की कलम से !

कुतुबमीनार के बारे में सभी जानते हैं पर हम आपको कुछ ऐसी मीनारों की सैर कराते जा रहे हैं जो लोगों की नजर में बिल्कुल ही नहीं है.लोग इनके बारे में बिल्कुल नहीं जानते हैं.जैसे हस्तसाल मीनार,स्वतंत्रता संग्राम मीनार,चोर मीनार की
एक एक करके इस तरह के हर मीनारों की सैर हमने कराया है.अब आप सभी तैयार हो जायें आज के अद्भुत मीनार की सैर को.आज आपको ले चलते हैं कोस मीनार के सैर पर. जी हां कोस मीनार. जानकारी एकत्रित किया तो पता चला कि कोस मीनार दिल्ली के चिड़ियाघर में,बदरपुर बॉर्डर बस स्टैंड के पास,मथुरा रोड में या सरिता विहार में मिलेगा.

पता चला कि चिड़ियाघर के कोस मीनार को लोहे के जंगले से बन्द कर दिया गया है जहाँ तक आप तब ही पहुँच सकते जब कि आपको पहले से पता हो कि यहाँ कोस मीनार देखने जाना हो. इसके बाद भी नजदीक से नहीं बल्कि दूर से ही देख सकते क्योंकि इसे चारों तरफ से घेर दिया गया है.हमने सब जगह पता किया पर कोई नहीं बता पाया कि इन जगहों पर कोई कोस मीनार नाम की कोई मीनार भी है.दूसरे ही दिन अंत में सरिता विहार पहुँचा.खोज के क्रम में पढ़ा था कि एक कोस मीनार जसोला अपोलो हॉस्पिटल के पीछे है.

वहाँ पहुँच कर आस पास के बीसियों लोगों से पूछा पर कोई भी नहीं बता पाया.मैंने GPS लगाया तो वो दाएँ बाएँ करते हुए गोल गोल घुमा के 2 किलोमीटर का चक्कर लगवा कर फिर हॉस्पिटल के पास ही ले आया और फिर वही रास्ता दिखा रहा था. प्यास बहुत तेज लग रही थी तो सड़क किनारे ठेले पर निम्बू पानी पीने पहुँच गया.निम्बू पानी पीते हुए उस से भी पूछा.उसने हाथ घुमाते हुए इशारा करते हुए बोला आप यहाँ से ऑटो लेकर हॉस्पिटल के पीछे गाँव चले जाओ वहाँ मिल जाएगा. मतलब फिर वहाँ जहाँ से अभी घूम आया था.
पर यह क्या अचानक मेरी नजर सामने पड़ी जिधर उसने इशारा किया था तो मैं हतप्रभ रह गया.

कोस मीनार का बोर्ड और उसके पीछे पेड़ों के पीछे छुपा मीनार दिख गया.मैंने निम्बू पानी बाले को बहुत डाँटा कि ये सामने का चीज और तुमलोगों को नहीं पता है.उसने खीसें निपोर कहा अरे ये कोस मीनार है? रोज देखते थे पर जानते नहीं थे ,खैर मेरी खोज पूरी हुई. दिल्ली की पुरातात्विक धरोहर कोस मीनारों के साथ कैसी अनदेखी हो रही ये इसे देखने पर पता चलता है.कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी’ जैसी पहचान वाला समाज अपनी भाषाओं के साथ उससे जुड़ी अपनी पहचान से भी दूर हो रहा है.

अब आपको बतायें कोस मीनार है क्या?

जैसा कि नाम से प्रकट है कि ऐसा स्तंभ जो कोस(दूरी) बताता हो.कोस और मीनार,इन दो शब्दों को मिलाकर बनता है एक तीसरा शब्द कोस-मीनार.कोस मूल रूप से संस्कृत शब्द रोस से बनाहै.एक पुरानी मशहूर कहावत है,पोस्ती ने पी पोस्त ,नौ दिन चला अढ़ाई कोस.फारसी में अफीम को पोस्त कहते हैं.
‘कोस’शब्द दूरी नापने का एक पैमाना है.’कोस’का मतलब है दूरी की एक माप जो लगभग दो मील यानि सवा तीन किलोमीटर के बराबर होती है.प्राचीन भारत में कोस से मार्ग की दूरी मापी जाती थी.

कोस मीनार का प्रयोग शेर शाह सूरी के जमाने में सड़कों को नियमित अंतराल पर चिन्हित करने के लिए किया जाता था.
ग्रैंड ट्रंक रोड के किनारे हर कोस पर मीनारें बनवाई गई थीं.
अधिकतर इन्हें 1556-1707 के बीच बनाया गया था.
कई मीनारें आज भी सुरक्षित हैं तथा इन्हें दिल्ली-अंबाला राजमार्ग पर देखा जा सकता है.दिल्ली से करनाल जाने के रास्ते में आप को ऐसी 4 मीनारें देखने को मिल जाती है.

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की सुरक्षित स्मारकों में 110 कोस मीनारें हैं.ये कोस मीनार मुख्यत: दिल्ली,सोनीपत,करनाल , पानीपत,कुरुक्षेत्र,अंबाला,लुधियाना,जालंधर,अमृतसर से पेशावर (पाकिस्तान)तक और आगरा में मौजूद है.ये तो आप जानते ही होंगें कि डाक सेवा का जन्मदाता शेरशाह सूरी ही था
अलाउद्दीन खिलजी के समय में शाही डाक ले जाने के लिए तेज धावकों और घुड़सवारों का इस्तेमाल होता था.

अलाउद्दीन खिलजी जब भी राजधानी से बाहर होता था, वह राजमार्ग पर हर आधी कोस पर चौकियाँ स्थापित कर देता था,जिनमें डाक ले जाने वाले घुड़सवार या धावक होते थे.डाक का इंतजाम “महकमा बारिद” करता था.सन् 1321 में जब गयासुद्दीन तुगलक ने मुहम्मद तुगलक को वारंगल फतह करने भेजा तो डाक का यह सिलसिला दक्षिण तक फैल गया.विदेशी यात्री इब्नबतूता के लेखों से पता चलता है कि उस जमाने में हर तीन कोस पर गांव बसाए गए जिनके बाहर कोस मीनार स्थापित किए गए.

इनमें डाकिए रखे गए.इनके पास दो गज लंबा डंडा होता जो सोटा कहलाता था.इसके एक सिरे पर तांबे के बड़े बड़े घुंघरू बंधे होते थे.ये डाकिये एक हाथ में डाक थैला लेकर सोटा बजाता हुआ दौड़ता था.घुंघरूओं की आवाज एक मील दूर से ही सुन कर आगे वाले मीनार का डाकिया तैयार हो जाता था और थैला प्राप्त होते ही बिना किसी देरी के आगे दौड़ पड़ता था.

चलते चलते एक मजेदार बात बताते चलें कि‘न्रू’धातु में प्रकाश वाले भाव से ही बना हिब्रू भाषा में‘मनोरा’अर्थात चिराग़ या लैम्प.अरबी भाषा में इसका रूप हुआ‘मनारा’. बाद में‘मनारा’ शब्द ने मीनार का रूप लिया यानी प्रकाश स्तंभ.मस्जिदों के स्तंभ भी ‘मीनार’ कहलाने लगे क्योंकि यहां से लोगों को जगाने का काम किया जाता था.पुराने जमाने के लाईट हाऊस में सबसे ऊपरी मंजिल पर आग ही जलाई जाती थी.ये प्रकाश मीनार कहलाता था.

लोधी गार्डन में भी एक कोस मीनार है.जिसमें ऊपर की तरफ निगरानी रखने के लिए एक खिड़की भी बनी हुई है.
यह मीनार लोधी गार्डन के भीतर कोने में बने शौचालय के पास है.यह कोस मीनार एक पतले सिलेंडर के आकार की ऊपरी तरफ एक नक्काशीदार निगरानी खिड़की वाली है.
लोदी गार्डन मूल रूप से गांव था जिसके आस-पास 15वीं-16वीं शताब्दी के सैय्यद और लोदी वंश के स्मारक थे.

सरिता विहार कोस मीनार पहुंचने के लिए जसोला अपोलो मेट्रो स्टेशन से अपोलो हॉस्पिटल की तरफ गेट से बाहर निकलते ही सामने में ही ये मीनार है.बस स्टैंड भी अपोलो हॉस्पिटल है.बदरपुर बॉर्डर जाने बाली हर बस यहाँ से गुजरती है.469,405,493 नम्बर की बस यहाँ तक के लिए मिल जाएगी.निजी सवारी से आने पर यहाँ गाड़ी पार्किंग की कोई समस्या नहीं है.

कल फिर रु ब रु करायेंगे एक और मीनार से !

 

 

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