सुप्रीम कोर्ट की केंद्र को सलाह कोरोना को रोकने के लिए देशभर में फिर से लॉकडॉउन लगाने पर विचार करें

नई दिल्ली. देशभर में इन दिनों कोरोना वायरस (Coronavirus 2nd Wave) के संक्रमण के चलते हाहाकार मचा है. हर रोज़ करीब 4 लाख नए केस सामने आ रहे हैं. लिहाज़ा देश के मौजूदा हालात से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र सरकार को कई अहम सुझाव दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने वायरस के संक्रमण पर लगाम लगाने के लिए लॉकडाउन की सलाह दी है. इसके अलावा उच्चतम न्यायालय ने वैक्सीन की खरीद पॉलिसी को फिर से रिवाइज करने को कहा है. कोर्ट ने कहा है कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो सार्वजनिक स्वास्थ्य के अधिकार में बाधा उत्पन्न होगी जो संविधान के अनुच्छेद 21 का एक अभिन्न अंग है.

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, एल नागेश्वर राव और एस रवींद्र भट की बेंच ने कहा कि लॉकडाउन लगाने से पहले सरकार सुनिश्चित करे कि इसका सामाजिक और आर्थिक प्रभाव कम पड़े.

कोर्ट के मुताबिक जिन लोगों पर लॉकडाउन का असर पड़ सकता है उनके के लिए खास इंतज़ाम किए जाएं.

राष्ट्रीय नीति बनाने का सुझाव

देशभर में इन दिनों हॉस्पिटल को लेकर मारामारी जैसे हालात है. लोग हॉस्पिटल में बेड न मिलने की शिकायत कर रहे हैं. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को हॉस्पिटल में दाखिले के लिए राष्ट्रीय नीति बनाने की सलाह दी है. कोर्ट ने ये नीति दो हफ्ते के अंदर बनाने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक किसी को भी स्थानीय आवासीय प्रमाण या पहचान प्रमाण की कमी के लिए अस्पताल में भर्ती या आवश्यक दवाओं से वंचित नहीं किया जाएगा

वैक्सीन की खरीद पर कोर्ट की सलाह

पिछले महीने 20 अप्रैल को केंद्र सरकार ने वैक्सीन की खरीद को लेकर नई रिवाइज पॉलिसी का ऐलान किया था. केंद्र ने कहा था कि अब वो सिर्फ 50 फीसदी ही वैक्सीन की खरीद करेगा. जबकि बाकी बचे 50 प्रतिशत वैक्सीन अब सीधे राज्य और प्राइवेट कंपनी मंहगे दरों पर खरीद सकेंगे. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने सुझाव दिया कि टीकों की खरीद को केंद्रीकृत किया जाए, और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के भीतर वितरण को विकेंद्रीकृत किया जाए.

टीकाकरण अभियान पर मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों दोनों को अगले 6 महीनों के लिए वैक्सीन स्टॉक की मौजूदा और अनुमानित उपलब्धता के बारे में जानकारी देने को कहा है. टीकाकरण की कीमत निर्धारण में हस्तक्षेप न करने के लिए केंद्र की दलीलों का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने स्पष्टीकरण मांगा कि क्या किसी दूसरे विकल्प पर विचार किया गया था ताकि टीकाकरण अभियान को तेज किया जा सके.

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