सरकार के चलाए कार्यक्रमों और योजनाओं की मदद से कला और लोक कला को मिल रहा बढ़ावा

भारतीय संस्कृति को सिर्फ कुछ शब्दों या चंद लेखों में उल्लेख नहीं किया जा सकता है। यहां की भाषा, खान-पान, रहन-सहन, वेस-भूसा में काफी विविधता है। लेकिन फिर भी विविधता में एकता ही भारत की खूबसूरती है। इसी खूबसूरती का प्रदर्शन आईसीसीआर(भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद) क्राफ्ट मेला के रूप में कर रहा है। तीन दिनों के लिए आयोजित इस मेले में भारत के अलग-अलग हिस्सों से आए कलाकार अपनी कलाओं का प्रदर्शन कर रहे हैं।

मेले में शामिल हर एक उत्पाद हाथों से बना कर तैयार किया गया और पर्यावरण के अनुकूल है। इसमें गुजरात की अजरक, महाराष्ट्र की मगन खादी वर्धा, समुंद्री सीप से बना उत्पाद, हांथी के गोबर से बना पेपर तक शामिल है।

एक कलाकार हमेशा तारीफ का भूखा होता है। ये काफी हद तक डॉ. इस्माइल मोहम्मद से बात करने के बाद पता चल जाता है। डॉ. मोहम्मद कपड़े को प्राकृतिक रंगों में रंगने की कला अजरक को दशकों से सहेजते आ रहे हैं। जब उनसे पीबीएनएस ने बात कि तो उन्होंने बताया “अजरक का काम मैंने 1974 से ही शुरू कर दिया था। शुरूआती दौर में मुझे समझ नहीं थी इसी लिए मैं केमिकल रंगों से ही कपड़ो को रंगा करता था। WHO के जारी दिशा के अनुसार केमिकल से रंगे कपड़ों से स्किन कैंसर का खतरा अधिक होता है। ये बात जानते ही मैंने प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।”

अजरक डिजाइन को बनने के लिए कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। अजरक डिजाइन को हल्दी, इमली के बीज, अनार के छिलके, नील रंग इत्यादि से सूती और चंदेरी के कपड़ो में बनाया जाता है। डॉ. मोहम्मद आगे बताते हैं, उनके बनाए हुए कपड़े विदेश के लोग काफी पसंद करते हैं। लेकिन कच्छ में कभी-कभी पानी की किल्लतों के कारण व्यापार में मुश्किलें आ जाती हैं। अजरक डिजाइन पूरा करने के बाद इससे निकला पानी मिट्टी की गुणवत्ता को भी काफी नुकसान पहुंचता है। लेकिन ये समस्या का समाधान पीएम मोदी की योजना मेगा क्लस्टर के तहत डेढ़ करोड़ की लागत से बने वाटर रीसाइक्लिंग प्लांट के जरिए हुआ। जिससे मिट्टी को भी हानि नहीं पहुंचती और पानी की बचत भी होती है।

अजरक को अब पॉलिस्टर कपड़ों के ऊपर भी बनाया जाने लगा है। पॉलिस्टर में अजरक डिजाइन सूती कपड़े के मुकाबले अधिक आकर्षित दिखता है और दाम में भी कम होता है। इसकी वजह से पारंपरिक रूप से बनती आ रही अजरक के बाजारों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। साथ ही बाजारों में इन कपड़ों की नकल भी होने लगी है।

डॉ. मोहम्मद बताते हैं कि वो दिल्ली कई दशकों से आ रहे हैं। सरकार द्वारा ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन से व्यापार तो होता ही है। साथ ही वो अपने पुराने ग्राहकों से भी मिल सकते हैं। जो डॉ. मोहम्मद के लिए सबसे अधिक आनंद की बात है।

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