सूर्य उपासना के महापर्व पर बुधवार को राजधानी पटना समेत पुरे पूर्वी भारत के विभिन्न शहर दुल्हन की तरह सजे। हजारों की संख्या में व्रती अपने परिवार के साथ छठ घाट पर पहुंचे और अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य प्रदान किया। गुरुवार की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य प्रदान कर पूजा संपन्न करेंगे। पटना के विभिन्न कालोनियों और राज्य के गांव में भी कृत्रिम सरोवर बनाए गए हैं। इन कृत्रिम सरोवरों में व्रती अस्ताचलगामी सूर्य और उगते सूर्य को अर्घ्य देने की व्यवस्था की गयी है।
प्रशासन और विभिन्न सामाजिक संगठनों के द्वारा विभिन्न छठ घाटो पर किसी भी प्रकार की परेशानी न हो इसका पूरा ख्याल रखा गया है।
चार दिवसीय छठ महापर्व के तीसरे दिन शाम को डूबते सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है। श्रद्धालु घाट पर जाने से पहले बांस की टोकरी में पूजा की सामग्री, मौसमी फल, ठेकुआ, कसर, गन्ना आदि सामान सजाते हैं और इसके बाद घर से नंगे पैर घाट पर पहुंचते। छठ पहला ऐसा पर्व है जिसमें डूबते सूर्य की पूजा की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। बिहार, झारखंड और यूपी के कुछ हिस्सों में मनाए जाने वाले इस पावन पर्व को बहुत ही शालीनता, सादगी और आस्था से मनाये जाने की परंपरा है।
सादगी और संयम का प्रतीक महापर्व छठ उगते और डूबते सूर्य की पूजा करने वाला एकमात्र पर्व है। यह कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। लोकपर्व छठ सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व दिवाली के 6 दिन बाद मनाया जाता है।
बता दें कि इस साल 8 नवंबर को छठ का पहला दिन था जिस दिन नहाए खाए के साथ पर्व की शुरुआत हुई, 10 नवंबर यानि आज छठ पूजा का तीसरा दिन है जब श्रद्धालु घाटों पर संध्या अर्घ्य देने पहुंचें। 11 नवंबर यानी चौथे दिन छठ पूजा का प्रातः अर्घ्य दिया जाएगा और इसके साथ ही महापर्व छठ का पारण होगा।
मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्यों बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे लोग आस्था के साथ मनाते हैं। इस पर्व में सूर्य देव और छठी मइया की पूजा विधि-विधान से की जाती है।
इस तरह शुरू हुई ये परंपरा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, छठी मैया को ब्रह्मा की मानसपुत्री और भगवान सूर्य की बहन माना गया है। छठी मैया निसंतानों को संतान प्रदान करती हैं। संतानों की लंबी आयु के लिए भी यह पूजा की जाती है। वहीं यह भी माना जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे का वध कर दिया गया था। तब उसे बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा को षष्ठी व्रत (छठ पूजा) रखने की सलाह दी थी।
सप्तमी के दिन छठ का पारण
छठ का चौथा दिन यानी कि सप्तमी के दिन सुबह उगते सूरज को अर्घ्य देकर विधि-विधान से पूजा संपन्न की जाती है। इस दिन घाटों पर खास रौनक दिखती है और महिलाएं छठी माता के गीत गाती हैं। सूर्योदय के साथ ही सुबह का अर्घ दिया जाता है और इस तरह छठ पूजा का पारण यानी समापन होता है। इसके बाद ही घाटों पर प्रसाद दिया जाता है।
(Disclaimer: इस खबर और लेख में दी गई तस्वीर, जानकारियां और सूचनाएं साभार और सामान्य जानकारियों पर आधारित हैं)