कृषि सशक्तिकरण: दुनिया का पेट भर रहे हैं देश के अन्नदाता

भारत का खाद्य भंडार दुनिया की जरूरतों को पूरा करने के लिए पूरी तरह तैयार है। जी हां, दुनिया जब स्थिर खाद्य आपूर्ति के लिए विश्वसनीय वैकल्पिक स्रोतों की तलाश में है, ऐसे में भारत ”वसुधैव कुटुम्बकम” की अपनी धारणा को साकार करते हुए कई खाद्य असुरक्षित देशों के लिए संकट के समय के मित्र के रूप में उभरा है। कोविड महामारी हो या फिर, रूस-यूक्रेन संकट के बीच गेहूं की आपूर्ति के लिए मिस्र जैसे देश भारत पहुंच रहे हैं। दरअसल, रूस और यूक्रेन दोनों देश गेहूं के प्रमुख उत्पादक और निर्यातक हैं। ऐसे में भविष्य में यह संकट अन्य देशों तक भी पहुंचने की संभावना है। ऐसे में भारत में प्रभावशाली वृद्धि दर्ज की गई है जिसका वार्षिक निर्यात 50 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है।

कृषि उत्पादों के निर्यात में अभूतपूर्व बढ़ोतरी

पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार के कदमों और देश के किसानों की मेहनत का असर है कि भारत अब दुनिया का पेट भरने जा रहा है। देश के किसानों ने यह सुनिश्चित किया है कि वे दुनिया की सेवा के लिए तैयार हैं। केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि मिस्र ने भारत को गेहूं आपूर्तिकर्ता के रूप में मंजूरी दे दी है। इस संबंध में केंद्रीय मंत्री ने एक ट्वीट भी किया। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा कि ” भारतीय किसान दुनिया का पेट भर रहे हैं। मिस्र ने भारत को गेहूं आपूर्तिकर्ता के तौर पर मंजूरी दी है। दुनिया स्थिर खाद्य आपूर्ति के भरोसेमंद वैकल्पिक स्रोत की खोज में है। ऐसे में मोदी सरकार आगे आई है। हमारे किसानों ने भंडारों को भरा रखा और हम दुनिया की सेवा करने के लिए तैयार है।

गेहूं-चावल और चीनी का बढ़ा निर्यात

चीनी का निर्यात 34,503 करोड़ रुपए के स्तर पर पहुंचा है जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड स्तर है। बीते पांच साल में चीनी का निर्यात 12 गुना बढ़ा है। वहीं अगर हम बात करें 2017-18 की तो इस अवधि में 6.2 लाख टन के मुकाबले 2021-22 में 75 लाख टन चीनी निर्यात किया गया है। यह दर्शाता है कि किस तरह से निर्यात में एक बड़ी वृद्धि दर्ज की गई है। वहीं अगर गेहूं के निर्यात को लेकर बात हो तो गेहूं का निर्यात एक साल में ढाई गुना से ज्यादा बढ़ा है। 15,890 करोड़ के गेहूं निर्यात के साथ 5 साल में करीब 25 गुना की बढ़ोतरी देखी गई है। चावल के निर्यात में भी 2021-22 में 9.35 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इस अवधि में 9.6 अरब डॉलर के चावल का निर्यात किया गया है। चावल के निर्यात को अगर हम दूसरे शब्दों में समझें तो फसल वर्ष 2021-22 में देश का कुल खाद्यान्न उत्पादन रिकॉर्ड 31.60 करोड़ टन पहुंचने का अनुमान है। इसी के साथ पिछले फसल वर्ष में कुल खाद्यान्न उत्पादन 31.07 करोड़ टन रहा था। इस वर्ष गेहूं का उत्पादन रिकॉर्ड 11.13 करोड़ टन रहने का अनुमान जताया गया है। पिछले वर्ष गेहूं का उत्पादन 10.95 करोड़ टन रहा था। 2021-22 के दौरान चावल का कुल उत्पादन 12.79 करोड़ टन रिकॉर्ड अनुमानित है। इस साल तिलहन उत्पादन 3.71 करोड़ टन रह सकता है।

भारतीय गेहूं का आयात करने वाले शीर्ष 10 देश

2021-22 में भारतीय गेहूं का आयात करने वाले शीर्ष देशों में बांग्लादेश, नेपाल, संयुक्त अरब अमीरात, श्रीलंका, यमन, अफगानिस्तान, कतर, इंडोनेशिया, ओमान, मलेशिया शामिल है। देश के कृषि क्षेत्र में केंद्र सरकार की तमाम योजनाओं और नीतिगत बदलावों का ही नतीजा है कि आज देश में कृषि उत्पादन ही नहीं बढ़ा है बल्कि विश्व स्तर पर भारत खाद्यान्न की जरूरत पूरा करने के लिए एक मजबूत देश के रूप में उभरा है।

दुनिया के सबसे बड़े आयातकों में से एक मिस्र गेहूं के लिए भारत पहुंचा

दुनिया के सबसे बड़े आयातकों में से एक मिस्र पहले गेहूं के लिए यूक्रेन और रूस पर निर्भर था। लेकिन रूस और यूक्रेन के बीच पिछले 50 दिनों से अधिक से जारी संघर्ष के कारण मिस्र और रास्तों की तलाश करते हुए भारत तक पहुंचा है। रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष के कारण वैश्विक बाजारों में गेहूं की उपलब्धता में भारी गिरावट दर्ज की गई है। दोनों देश गेहूं के प्रमुख उत्पादक और निर्यातक देश हैं। इसलिए जैसा कि दुनिया स्थिर खाद्य आपूर्ति के लिए विश्वसनीय वैकल्पिक स्रोतों की तलाश में है, केंद्र सरकार दुनिया के सामने यह प्रस्ताव लेकर सामने आई है।

भारत से 10 लाख टन गेहूं का आयात करना चाहता है मिस्र

मिस्र भारत से 10 लाख टन गेहूं आयात करना चाहता है और उसे अप्रैल में 2.40 लाख टन गेहूं की जरूरत होगी। यही वजह है कि मिस्र के कृषि मंत्री ने गेहूं के आयात के लिए भारत को एक नए स्रोत के रूप में अपनाने की घोषणा की है। 24 फरवरी के बाद भारत में गेहूं के निर्यात में तेजी से इजाफा हुआ है। स्थिति यह भी है कि अफ्रीका, पश्चिमी एशिया और दक्षिण पूर्वी एशिया के अधिकांश देश अपनी जरूरत के लिए भारत से गेहूं की मांग करने लगे हैं। ऐसे में रूस और यूक्रेन की अनुपस्थिति की भरपाई भारत काफी हद तक कर रहा है।

भारत ही एकमात्र देश जिसके पास बड़ी मात्रा में अधिशेष गेहूं भंडार

यह कहना बिलकुल भी गलत नहीं होगा कि इस समय भारत ही एकमात्र देश है जिसके पास बड़ी मात्रा में अधिशेष गेहूं भंडार है। आसान उपलब्धता के अलावा भारत को इन देशों को गेहूं की आपूर्ति करने का भौगोलिक लाभ भी हासिल है। हाल ही में पीएम मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से बात करते हुए कहा कि यदि विश्व व्यापार संगठन अनुमति दे तो भारत दुनिया को खाद्यान्न उपलब्ध करा सकता है। पीएम के इस कथन का सीधा अर्थ है कि भारत में पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न है। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने भी हाल ही कहा था कि भारत के पास पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न का भंडार मौजूद है जो देश की जरूरतों को ही नहीं दुनिया के नए देशों की खाद्यान्न की जरूरतों को पूरा कर सकता है।

देश में खाद्यान्न प्रचुरता के कारण दो अच्छी बातें दिखाई दे रही हैं। पहली, सरकार के मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम के काम न सिर्फ कोविड महामारी की वजह से लगाए गए बल्कि लॉकडाउन का मार से गरीबों को बचाया जा सका बल्कि इस समय दुनिया की तुलना में देश में महंगाई भी कम है। दूसरा रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत ने वैश्विक खाद्यान्न जरूरतों की पूर्ति के मद्देनजर गेहूं निर्यात का अभूतपूर्व मौका अपने हाथों में ले लिया है। यह आम आदमी और अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा सहारा बन गया है।

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