देश के 54 शक्तिपिठो में से एक – थावेवाली माता का मंदिर

वैसे तो बिहार में धार्मिक यात्राओं पर आने वाले या छुट्टियां मनाने आने वाले लोगों के लिए यहां कई धार्मिक और पौराणिक स्थल हैं, लेकिन यहां आने वाले लोग गोपालगंज जिले में स्थित थावे मंदिर में जाकर सिंहासिनी भवानी मां के दरबार का दर्शन कर उनका आर्शीवाद लेना नहीं भूलते.  ऐतिहासिक थावे दुर्गा मंदिर में दर्शन करने आये श्रद्धालुओं की  सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. वैसे यहां सालों भर भक्तों की कतार लगी रहती है, लेकिन चैत्र और शारदीय नवरात्र में पूजा करने का ज्यादा महत्व है.

गोपालगंज जिला मुख्यालय से करीब छह किलोमीटर दूर सिवान जाने वाले मार्ग पर थावे नाम का एक स्थान है, जहां मां थावेवाली का एक प्राचीन मंदिर है. मां थावेवाली को सिंहासिनी भवानी, थावे भवानी और रहषु भवानी के नाम से भी भक्तजन पुकारते हैं. जानकारों के मुताबिक, इस मंदिर के स्थापना की रोचक कहानी है.

जनश्रुतियों के मुताबिक राजा मनन सिंह हथुआ के राजा थे. वे अपने आपको मां दुर्गा का सबसे बड़ा भक्त मानते थे. गर्व होने के कारण अपने सामने वे किसी को भी मां का भक्त नहीं मानते थे. इसी क्रम में राज्य में अकाल पड़ गया और लोग खाने को तरसने लगे. थावे में कमाख्या देवी मां का एक सच्चा भक्त रहषु रहता था. कथा के अनुसार रहषु मां की कृपा से दिन में घास काटता और रात को उसी से अन्न निकल जाता था, जिस कारण वहां के लोगों को अन्न मिलने लगा, मान्यताओं के मुताबिक, मां का यह भक्त बाघ के गले में विषैले सांप की रस्सी बनाकर धान की दवरी करता था, परंतु राजा को विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने मां के इस भक्त को गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया.

बंदी बने रहशु से राजा ने मां भवानी को बुलाने का आदेश दिया. रहषु ने कई बार राजा से प्रार्थना की कि अगर मां यहां आएंगी तो राज्य बर्बाद हो जाएगा, परंतु राजा नहीं माने. भक्त के आह्वाहन पर चारों तरफ काले बादल छा गए. हर तरफ तेज आंधी पानी होने लगा. मां के परम भक्त रहशु भगत के आह्वाहन पर  असम के कमाख्या स्थान से चलकर यहां पहुंची थीं. कहा जाता है कि मां कमाख्या से चलकर कोलकाता (काली के रूप में दक्षिणेश्वर में प्रतिष्ठित), पटना (यहां मां पटन देवी के नाम से जानी गई), आमी (छपरा जिला में मां दुर्गा का एक प्रसिद्ध स्थान) होते हुए थावे पहुंची थीं और रहषु के मस्तक को विभाजित करते हुए साक्षात दर्शन दिए थे.

मां के प्रकट होते ही रहशु भगत का सिर फट गया और मां भवानी का हाथ सामने प्रकट हुआ. मां के प्रकटट होने पर रहशु भगत को जहां मोक्ष की प्राप्ति हुई, वहीं मां के प्रकाश से घमंडी राजा मनन सिंह का सबकुछ खत्म हो गया. राजा के सभी भवन गिर गए और राजा की मौत हो गई .मां ने जहां दर्शन दिए, वहां एक भव्य मंदिर है तथा कुछ ही दूरी पर रहषु भगत का भी मंदिर है. मान्यता है कि जो लोग मां के दर्शन के लिए आते हैं, वे रहषु भगत के मंदिर में भी जरूर जाते हैं, नहीं तो उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है. इसी मंदिर के पास आज भी मनन सिंह के भवनों का खंडहर भी मौजूद है.

यूपी और बिहार के अलावा नेपाल, बंगाल और झारखंड से भी लोगों का आने का सिलसिला लगा रहता है. यहां नवरात्र में पशु बलि देने की भी परम्परा है. यहां मां के भक्त प्रसाद के रूप में नारियल, पेड़ा और चुनरी चढ़ाते हैं. लोग मां के दरबार में खाली हाथ आते हैं, लेकिन मां के आशीर्वाद से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. मंदिर का गर्भ गृह काफी पुराना है. तीन तरफ से जंगलों से घिरे इस मंदिर में आज तक कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है. नवरात्र के सप्तमी को मां दुर्गा की विशेष पूजा की जाती है. इस दिन मंदिर में भक्त भारी संख्या में पहुंचते हैं. मां के आर्शीवाद को पाने के लिए कोई महंगी चीज की आवश्यकता नहीं. मां केवल मनुष्य की भक्ति और श्रद्धा देखती हैं. केवल उन्हें प्यार और पवित्रता की जरूरत है.

इस मंदिर की दूरी गोपालगंज से  छह किलोमीटर है. राष्ट्रीय राजमार्ग 85 के किनारे स्थित मंदिर सीवान जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर दूर है. सीवान और थावे से यहां कई सवारी गाड़ियां आती हैं. श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए जिला प्रशासन के द्वारा यहां व्यापक व्यवस्था की जाती है. यहां किसी को परेशानी न हो इसके लिए यात्री शेड बनवाया गया है. पीने के पानी की विशेष व्यवस्था की गई है. श्रद्धालुओं के लिए शौचालय का निर्माण कराया गया है.

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