गया जिला मुख्यालय से लगभग 38 किमी और टिकारी से 13 किमी. उत्तर अवस्थित केसपा गाव में प्रसिद्ध मां तारा देवी का मंदिर स्थित है। यूं तो यहा पूजा-अर्चना करने भक्तजन वर्ष भर आते हैं, परंतु आश्विन माह में शारदीय नवरात्र में मां तारा देवी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
इस अवसर पर श्रद्धालुओं व भक्तजनों द्वारा देवी के समक्ष घी के दिए जलाते हैं, जो नौ दिन तक अनवरत जलता रहता है। यही कारण है कि यह मंदिर धार्मिक और लोक आस्था का महाकेन्द्र माना जाता है। इसका वर्णन अनेक पौराणिक ग्रंथों में भी है।
जब समुद्र मंथन से निकले विष को लोक कल्याण के लिए भगवान शिव पी लिए और उसके प्रभाव से मूर्छित हो गए तो तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। तभी मां तारा देवी प्रकट हुई और भगवान शिव को अपनी गोद में लेकर अपना दूध पिलाने लगी। दूध के प्रभाव से विष समाप्त हो गया और तभी से मां तारा की जय जयकार तीनों लोकों में होने लगी और उनकी पूजा अर्चना होने लगी। जबकि गाव का नाम कश्यप ऋषि के नाम पर केसपा है।
कहा जाता है कि कश्यप ऋषि का प्राचीन काल में यहां आश्रम था।
मां तारा देवी और मंदिर की स्थापना कब और किसने किया किसी को कोई जानकारी नही है। गाव के बुजुर्ग भी इस संबंध में कुछ नही जानते।
कच्ची मिट्टी और गदहिया ईट से निर्मित मंदिर के गर्भ गृह की दीवार 4-5 फीट मोटी है। गर्भ गृह की सुन्दर नक्काशिया मंदिर में प्रवेश करने वाले श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है। गर्भ गृह में विराजमान मां तारा देवी की वरद हस्त मुद्रा में उत्तर विमुख 8 फीट उंची आदमकद प्रतिमा काले पत्थर की बनी है। मां तारा के दोनों ओर दो यागिनिया खड़ी है। प्रतिमा पर प्राकृत भाषा में कई लेख उत्कीर्ण है जिसे आज तक पढ़ा नही जा सका है। मंदिर के चारों ओर एक बड़ा चबूतरा है।
आश्विन में शारदीय नवरात्र और चैत में बसंती नवरात्र के अवसर पर श्रद्धालुओं की अपार भीड़ यहा जुटती है। बाहर से आए श्रद्धालु 9 दिनों तक मंदिर परिसर में रहकर नवरात्र का पाठ करते हैं। इस दौरान बहुत सारे श्रद्धालु अपने जीवन में सुख, शाति और समृद्धि के लिए अखण्ड दीप जलाते हैं। जो नौ दिनों तक अनवरत जलते रहता है। यहा एक त्रिभुजाकार विशाल हवन कुण्ड है, जिसमें सालों भर आहुति डाली जाती है। लेकिन वो भरता कभी नही है। यही कारण है कि आस्था और विश्वास का केन्द्र माना जाने वाली मां तारा देवी के दर्शन हेतु श्रद्धालुओं की अपार भीड़ लगी रहती है।
प्रत्येक वर्ष शारदीय और वसंती नवरात्र के अवसर पर महाअष्टमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। साथ ही भव्य सास्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। मंदिर तक टिकारी एवं कुर्था से सड़क मार्ग से लगभग 13 किमी दूरी तय कर पहुंचा जा सकता है।
साभार : अनूप नारायण सिंह