सडक पर आकर किसानों के लिए आंदोलन किया गया और सरकार, पुलिस भी कुछ नहीं कर पाए । न्यायालय ने भी केवल पर्यवेक्षक भेजकर सब कुछ पुलिस पर छोड दिया एवं पुलिस भी प्रतिकार नहीं कर पाई । इस आंदोलन में तलवारें और अन्य हथियारों का उपयोग किया गया, देशविरोधी नारे लगाए गए । यह आंदोलन नहीं है, अपितु देश के विरोध में एक युद्ध छेडा गया है । इसे युध्द न कहते हुए ‘लोकतांत्रिक आंदोलन’ कहा जा रहा है । इस आंदोलन में ऐसा क्या नहीं हुआ, जिसे हम अनैतिक और कानून विरोधी है, ऐसा कहें ? इसमें सहभागी लोगों ने इसे कानून के दायरे में बिठाया है । इस आंदोलन ने देश के लोकतंत्र का दुरुपयोग किया है, ऐसा स्पष्ट प्रतिपादन सुदर्शन वाहिनी के प्रमुख संपादक और अध्यक्ष श्री. सुरेश चव्हाण ने किया । वे हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘चर्चा हिन्दू राष्ट्र की’ के अंतर्गत ‘किसान आंदोलन या देशविरोधी षड्यंत्र?’ इस विशेष परिसंवाद में बोल रहे थे । यह कार्यक्रम ‘यू ट्यूब लाइव’ और ‘फेसबुक’ के माध्यम से 34000 से भी अधिक लोगों ने देखा.
प्रसिध्द लेखिका और ‘मानुषी’ मासिक पत्रिका की संपादिका प्रा. मधु पूर्णिमा किश्वर ने इस अवसर पर कहा, ‘देश स्वतंत्र होने के उपरांत अभी तक विविध सरकारों तथा यहां के समाज ने वामपंथी, इस्लामी गुट और इन्हें धन की आपूर्ति करनेवाली विदेशी संस्थाओं को चाहे जैसे कानून बनाने की खुली छूट दी है । इसलिए उनकी अनुमति के बिना कोई भी नया कानून नहीं बनेगा, इसकी उन्हें आदत हो गई है । कानून मंत्रालय का भी इनके विरोध में जाने का साहस नहीं है, ऐसा खेदपूर्वक कहना पड रहा है । इसके विपरीत भारत हिन्दूबहुल देश होते हुए भी सरकार भी हिन्दुओं के विरुद्ध व्यवहार करती है, यह अनेक उदाहरणों से स्पष्ट हुआ है । वर्तमान में जन्म से हिन्दू बने नेता भी देश में हिन्दुओं के विरोध में विष और समाज में विषमता फैला रहे हैं । ऐसा ही होता रहा, तो हमारा हिन्दू समाज कब तक मजबूत बना रहेगा ?’