सनातन पर सवाल उठाने वालों पहले समझिए “सत्य सनातन वैदिक धर्म का सूक्ष्म परिज्ञान”

सन् ज्ञानम् तनोती विस्तारयति इति सनातन:
सन् ज्ञान धातु है।

अर्थ:–  शश्वत चिरस्थाई निरंतर जो ज्ञान का विस्तार करे वही सनातन है।

दूसरी व्युत्पत्ति:-
सदा भव:सनातन:

अर्थ:– जो सदा से था, है, और रहेगा वही सनातन है।

धर्म क्या है?
जो धारण किया जाये वही धर्म है।
धरयेती धर्म:

अस्तु शाश्वत चिरस्थाई निरंतर ज्ञान का विस्तार करते हुवे जो धारण किया जाए वही सनातन धर्म है।
जिसका परिज्ञान अनादि काल से श्रुति, स्मृतियों (वेद , पुराणेतिहास ) के माध्यम से हम सभी के बीच समुपलब्ध है।
रामस्तवराज में जो सनत्कुमार संहिता से लिया गया एक
श्लोकार्ध से स्पष्ट है –

सनातनम् राम महम् भजामि
अर्थात् हम सभी सनातनी प्रभू श्री राम का भजन करते हैं।

 

१- शाश्वतम् दृढ़, स्थिरम्, एष धर्मः सनातनः ( एष धर्मः सनातनः ) उत्तररामचरित 5. 22.
(क) जो शाश्वत हो।
(ख)जो दृढ़ स्थिर हो
(ग)जो निरंतर हो
(घ)जो आदि अंत रहित हो वह सनातन है।
जिसे सरल शब्द में सत्य सनातन वैदिक धर्म कहते है।

चूंकि सत्य सनातन वैदिक धर्म अनादि काल से इस भू मंडल को महिमा मंडित कर रहा है अस्तु समस्त देवी देवता या यूं कह लें की ३३ कोटि देवता ही इसके है।
वैसे ये कहना भी उतना प्रासंगिक नहीं है
क्यों की जिस सनातन धर्म का मूल उद्देश्य ही सभी जीवों ,पशुओं, सम्पूर्ण प्रकृति का सदा सर्वदा मंगल करना ही है वही वास्तव में सत्यसनातन वैदिक धर्म हैं।
आइए इसे एक श्लोक से और समझते है –
श्लोक:-  सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्  दुःखभाग्भवेत्।।

अर्थ – “सभी प्राणी मात्र सुखी होवें, सभी संतुष्ट परिपुष्ट हों, निरोगी हों, सभी सज्जन हों ,किसी को किसी भी प्रकार का दुःख न रहे।

जरा सा विचार करें जिस सत्य सनातन वैदिक धर्म की परिकल्पना वसुधैवकुटुंबकम् की हो वास्तव में वही सनातन है।

श्री रामचरित मानस जी में स्पष्ट है
जिस राम राज्य की उस समय वर्णन किया गया है वह उपरोक्त सनातन वैदिक धर्म के उपरोक्त श्लोक को अक्षरस: सत्य कर रहा है।

चौ:- अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा
नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना

भावार्थ:- किसी की अल्प अवस्था में मृत्यु नहीं होती, न किसी को कोई पीड़ा होती है। सभी के शरीर सुंदर और निरोग हैं। न कोई दरिद्र है, न दुःखी है और न दीन ही है। न कोई मूर्ख है और न शुभ लक्षणों से हीन ही है।
सभी सुंदर हैं सभी सुंदर शरीर,मन बुद्धि, वाले हैं।

 

चौ:- चारिउ चरन धर्म जग माहीं। पूरि रहा सपनेहुँ अघ नाहीं
राम भगति रत नर अरु नारी। सकल परम गति के अधिकारी

भावार्थ:- धर्म अपने चारों चरणों (सत्य, शौच, दया और दान) से जगत् में परिपूर्ण हो रहा है, स्वप्न में भी कहीं पाप नहीं है। पुरुष और स्त्री सभी रामभक्ति के परायण हैं और सभी परम गति (मोक्ष) के अधिकारी हैं।

इसी सत्य सनातन वैदिक धर्म की वास्तविकता है जिस रामराज्य की परिकल्पना महात्मा गांधी जी ने की वह ऐसा ही है।

आचार्य स्वामी विवेकानन्द
श्री रामकथा, व श्रीमद्भागवत कथा व्यास
श्री धाम श्री अयोध्या उ. प्र.
संपर्क सूत्र:-9044741252

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