आज पयोव्रत एवं वामनावतार पर विशेष पौराणिक आख्यान

आज 31/8/2020का संदेश –

सनातन धर्म ने मानव जीवन में आने वाली प्राय: सभी समस्याओं का निराकरण बताने , करने का प्रयास अपने विधानों के माध्यम से किया है। नि:संतान दम्पत्ति या सुसंस्कृत , सदाचारी सन्तति की प्राप्ति के लिए “पयोव्रत” का विधान हमारे शास्त्रों में बताया गया है।

दैत्यराजा बलि के आक्रमण से देवता स्वर्ग से पलायन करके गुफाओं/कन्दराओं में दुखी होकर जीवन व्यतीत करने लगे | देवताओं की माता अदिति अपने पुत्रों की दुर्दशा पर बहुत दुखी हुईं एवं अपने पति कश्यप के निर्देशानुसार एक उत्तम सन्तान प्राप्त करने के उद्देश्य से “पयोव्रत” का अनुष्ठान किया। फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से द्वादशी तक किये जाने वाले इस उत्तम व्रत को करने के लिये सरोवर के किनारे वाराह (सूकर) के द्वारा खोदी गयी मिट्टी को शरीर पर लगाकर स्नान करके भगवान विष्णु का पूजन किया  ! दूध पीते हुए बारह दिन तक भूमि पर शयन करते हुए पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए यह व्रत करने के फलस्वरूप माता अदिति ने गर्भ धारण किया एवं भाद्रपद शुक्ल पक्ष की द्वादशी को स्वयं भगवान श्री हरि विष्णु कश्यप जी के आश्रम में “वामन” के रूप में प्रकट हुए।

श्रीमद्भागवत जी मे लिखा है श्लोक श्रवणायां श्रवण द्वादश्यां मुहूर्ते अभिजीत प्रभू सर्वे नक्षत्र तारध्या: चक्रस्तु जन्म दक्षिणं।। भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष श्रवण नक्षत्र मध्यान में भगवान माता अदिति के गर्भ से प्रगट हुवे और महाराजा बलि के यज्ञ में पहुँचकर भगवान वामन ने राजा बलि से तीन पग भूमि की याचना करी । फलतः दो पग में ही त्रिलोक  को माप लिया और तीसरे पग में बलि का शरीर भी अधीन कर लिया । इस प्रकार देवताओं को स्वर्ग की पुन: प्राप्ति हुई। स्वर्गीय सुखों से भी श्रेष्ठ राजा बलि को सुतललोक प्रदान करके भगवान ने उन्हें द्वादश परम भागवतों में चिर स्थान भी दिया। अकारण करुणा वरुणालय भगवान ने महाराज बलि पर पूर्ण कृपा की।

भगवान जब कृपा करते हैं तो भक्त से तीन कदम अर्थात तन , मन , एवं धन मांग लेते हैं | जब मनुष्य यह तीनों चीजें भगवान को अर्पित कर देता है तो भगवान स्वयं उसकी रक्षा करते हैं। भगवान ने छोटा सा स्वरूप बनाकर यह दिखाने का प्रयास किया है कि यदि किसी से कुछ मांगना हो अथवा लेना हो तो, अपने समस्त ऐश्वर्य का त्याग करके छोटा बनकर ही जाना चाहिए। समस्त सृष्टि का पालन करने वाले प्रभु श्रीहरि भगवान विष्णु स्वयं याचक बनकर यह सिद्ध करने का प्रयास किया है। प्रत्येक मनुष्य को भगवान वामन के अवतार से यह सीख अवश्य लेना चाहिए कि याचक कितना भी ज्ञानी व धनी हो परंतु यदि किसी से कोई ज्ञान, धन व सहायता की कामना हो तो सदैव छोटा ही बनकर यथेक्ष की प्राप्ति संभव है। जय श्री राम ।

आचार्य स्वामी विवेकानन्द जी महाराज
सरस् ख्याति लब्ध श्री रामकथा व श्रीमद्भागवत कथा व्यास
श्री अवध बिहार आश्रम श्री धामोत्तम धाम श्रीअयोध्या जी
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