सम्मेलन में बिहार झारखण्ड अकेडमी ऑफ क्लिनिकल एम्ब्रायोलॉजिस्ट की स्थापना की हुई घोषणा
पटना : इंडियन फर्टिलिटी सोसाइटी बिहार चैप्टर, मणिपाल एसोसिएशन ऑफ़ क्लिनिकल एम्ब्र्योलॉजिस्ट और पीओजीएस द्वारा प्रजनन क्षमता संरक्षण पर लेमन ट्री होटल में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मलेन रविवार को संपन्न हुआ। इस राष्ट्रीय सम्मेलन में देशभर से 300 से अधिक कैंसर और फर्टिलिटी एक्सपर्ट चिकित्सक शामिल हुए। समापन के इंडियन फर्टिलिटी सोसाइटी के डॉ सुरवीन, डॉ. पंकज तलवार, मणिपाल एसोसिएशन ऑफ़ क्लिनिकल एम्ब्र्योलॉजिस्ट के अध्यक्ष प्रो. सतीश कुमार अडिगा, पीओजीएस की डॉ. सुप्रिया जयसवाल, इंडियन फर्टिलिटी सोसाइटी बिहार चैप्टर के सचिव डॉ. हिमांशु रॉय, आयोजन सचिव डॉ. दयानिधि कुमार, डॉ. स्वप्निल सिंह और स्वीडन से आई हुई डॉ. जूडिथ मेनजेस मौजूद रहे। कार्यक्रम में अंतिम दिन प्रजनन क्षमता संरक्षण पर परिचर्चा और ऊसीते, भ्रूण और ओवेरियन टिश्यू सरंक्षण लाइव डेमोंस्ट्रेशन का आयोजन हुआ।
इंडियन फर्टिलिटी सोसाइटी बिहार चैप्टर के सचिव डॉ. हिमांशु रॉय ने बताया कि फर्टिलिटी प्रिजर्वेशन विधि से इलाज की व्यवस्था पहले विदेशों में ही थी, लेकिन अब भारत में भी इसकी शुरुआत हो गई है जिससे यहाँ के लोगों में भी फर्टिलिटी प्रिजर्वेशन को लेकर आशा बढ़ी है। डॉ. हिमांशु रॉय ने इस राष्ट्रीय सम्मेलन के सफल आयोजन को लेकर आए हुए सभी चिकित्सकों के साथ बिहारवासियों का धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन के माध्यम से निश्चित तौर पर निः संतानता को लेकर मरीज और डॉक्टर दोनों जागरूक होंगे।
वहीं आयोजन सचिव डॉ. दयानिधि कुमार ने कहा कि इस सम्मेलन में बिहार झारखण्ड अकेडमी ऑफ क्लिनिकल एम्ब्रायोलॉजिस्ट की स्थापना की घोषणा की गई है। इस सोसायटी के द्वारा सारे एम्ब्रियोलॉजिस्ट को समय समय पर अंतरराष्ट्रीय स्तर का प्रशिक्षण के साथ – साथ आधुनिक तकनीक प्रदान करना होगा। उन्होंने फर्टिलिटी प्रिजर्वेशन विधि को विस्तारपूर्वक बताते हुए कहा कि कैंसर पीड़ित महिला में फर्टिलिटी प्रिजर्वेशन तकनीक से उसकी ओवरी के हिस्से को निकाल कर प्रिजर्व कर लिया जाता है। इलाज की अवधि तक ओवेरियन टिश्यू फ्रीज रहती है। जब महिला का इलाज पूरा हो जाता है तो उसमें प्रिज़र्व की हुई टिश्यू को वापस ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है जिससे वह दोबारा नार्मल तरीके से मां बन सकती हैं।
इसी तरह कैंसर पीड़ित पुरुष के टेस्टिस के टिशू को संरक्षित कर लिया जाता है या उसके शुक्राणु को प्रिजर्व कर लिया जाता है। इलाज के बाद दंपति अपनी खुद की संतान पैदा कर सकते हैं। कार्यक्रम के अंत में देशभर से आए हुए डॉक्टरों को सम्मानित किया गया।