ज्ञान रंजन मिश्रा / बिहार पत्रिका
एक प्रमुख अर्थशास्त्री का कथन है – किसी देश की जनता तब तक गरीबी की अवस्था में बनी रहती है, जब तक उसे लालच एवं प्रलोभन दिया जाता है और जिस दिन उसे राजनैतिक एवं आर्थिक विचारों से अवगत करा देते हैं उसी दिन वह अपने भाग्य का विधाता बन जाती है और गरीबी रुपी खाई को पार कर जाती है.
किसी भी लोकतांत्रिक देश की महत्वपूर्ण विशेषता होती है चुनाव प्रणाली. चुनाव प्रणाली प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष हो सकती है. जो इस बात पर निर्भर करती है कि वहां जनसंख्या का आकार कैसा है. जिस लोकतांत्रिक देश की जनसंख्या का आकार बड़ा होता है वहां अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली अपनाई जाती है. भारत इसी श्रेणी में आता है.
भारत की जनता अपने सांसदो को चुनती हैं और यह सांसद अपने बीच से प्रधानमंत्री का चुनाव करते हैं. जब तमाम राजनैतिक पार्टी चुनाव मैदान में उतरती है तो उन्हें अपने आप को एक दूसरे से अलग प्रस्तुत करने एवं अपने पार्टी की विचारों से अवगत कराने के लिए घोषणापत्रों का सहारा लेना पड़ता है.
चुनावी घोषणापत्रों की यात्रा पर नजर डाले तो पाएंगे कि प्रारंभिक दौर के चुनावों में घोषणापत्र पार्टी की संपूर्ण राजनैतिक कार्यप्रणाली एवं विचारधाराओ को प्रकट करती थी. उन्हीं राजनैतिक कार्य प्रणाली एवं विचारधाराओं के आधार पर चुनाव लड़ा जाता था. आज सभी राजनैतिक पार्टी के घोषणापत्रों मे राजनैतिक विचारधाराओं का स्थान खत्म होता जा रहा है. उसका स्थान भौतिक वस्तुएं एवं प्रलोभनो ने ले लिया है.
वर्तमान में बीजेपी ही एक ऐसी पार्टी है जो अपनी घोषणापत्रों मे पार्टी की विचारधारा प्रकट करती हुई चुनाव में चुनाव में उतरती है- चाहे वह राम मंदिर का मुद्दा हो या हिंदू राष्ट्र. इस पार्टी के अंदर भी कुछ हद तक भौतिक वस्तुओ का समावेश हो चुका है.
अन्य सभी पार्टियां तो इसमें महारत हासिल कर चुकी है
यहां एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि क्या कारण है कि चुनावी घोषणापत्रों मे साइकिल,स्कूटी एवं लैपटॉप जैसी भौतिक वस्तुओं को शामिल करना पड़ा. इस पर गंभीरता से विचार करने के बाद हम पाते हैं कि उन सभी राजनैतिक पार्टियों को लगता है कि हमारे द्वारा प्रस्तुत लंबे चौड़े घोषणापत्रो को कभी पूरा नहीं किया जा सकता है. जनता भी इसे अच्छी तरह से जानती है. इसलिए हम क्यों नहीं उन्हें सीधे प्रभावित करने वाले भौतिक वस्तुओं को ही शामिल कर दे. वो भी ऐसी वस्तुएं जो सीधे युवाओं से जुड़ी हो.
बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू पार्टी ने अपनी घोषणापत्र मे ग्रामीण क्षेत्र की छात्राओं को साइकिल देने का प्रस्ताव रखा और चुनाव जीतने के बाद उन्होंने दिया भी. इसे एक नई एवं सराहनीय घोषणापत्र माना गया. क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र की स्कूली लड़कियों को काफी दूर तक पैदल चलकर स्कूल का रास्ता तय करना पड़ता था.
वह भी ऐसे स्थान से जहां सरकारी एवं निजी परिवहन की सुविधा उपलब्ध नहीं थी. लेकिन जिस तरह से दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी के घोषणा पत्र में कॉलेज जाने वाली लड़कियों को स्कूटी देने का वादा किया गया है,वह कितना लॉजिकल है. वह भी दिल्ली जैसे शहरो के लिए. जहां सार्वजनिक परिवहन की सुविधा बेहतर है रोड से लेकर के मेट्रो तक. यहां एक दूसरा महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि चुनावी घोषणा पत्र मे जिस नवीन भौतिक आयाम को शामिल किया जा रहा है क्या वास्तव में उससे देश का भला हो पाएगा. हम एक नए एवं बेहतर विचारधाराओ का समावेश कर एक नई राजनीतिक सोच वाली युवा पीढी की कतार तैयार कर पाएंगे. जो आने वाले समय में देश को नया दिशा दे सके. इस पर सभी राजनैतिक पार्टियों को गंभीरता से विचार करने की जरुरत है. उनका मकसद सिर्फ चुनाव जितना ना हो बल्कि बेहतर राजनैतिक विचारधाराओं से युक्त प्रतिस्पर्धा पूर्ण माहौल तैयार कर उन्हें शिक्षित करना भी होना चाहिए.