राजा, ज़मीनदार और रईसों का शान था बग्घी.
बिहार में १९ वीं सदी के मध्य में पटना शहर का विस्तार पश्चिम दरवाजा से पश्चिम में दूर तक हो चला था. प्राचीन पटना में कुल ६४ दरवाज़ा था, उसमें पश्चिम दरवाज़ा मुख्य दरवाज़ा था.
१५४० ईसवीं में हुमांयू को हरा कर मुग़ल साम्राज्य पर नियंत्रण के बाद शेरशाह सूरी पटना आया. गंगा किनारे बसा पटना उन दिनों एक छोटा सा क़स्बा भर था.
सन १५४० इसवी में शेरशाह के द्वारा उस समय के पांच लाख रुपये में, पटना में एक किला का निर्माण किया गया था. चहारदिवारी से घिरे किले के मध्य में एक राजमार्ग का निर्माण किया गया, जिसके पूर्वी तथा पश्चिमी छोर पर लकड़ी के दो विशाल द्वार बनवाए गए थे. कालक्रम में काष्ठ द्वार के स्थान पर द्वार के स्तंभ पत्थर से निर्मित हुए. उन्हीं में से पश्चिमी द्वार का एक स्तंभ आज भी सुरक्षित है.
पटना के नायब सूबेदार अज़ीम-मुश-शान ने १७०४ -१२ ई० में दोनों द्वारों का जीर्णोद्धार किया. अठारहवी सदी में पटना के कमिश्नर लॉर्ड मेटकाफ (१८२०-२४ ई०) ने ध्वस्त द्वार के अवशेष स्तंभ को पुनरुत्थान कर के एक ऐतिहासिक स्मारक के रूप में प्रतिष्ठित किया.
बाद में पटना के रईस दीवान बहादुर राधाकृष्ण जालान के द्वारा शेरशाह के किले के अवशेष पर निर्मित भवन में हीरे जवाहरात तथा चीनी वस्तुओं का एक निजी संग्रहालय बनाया गया था.
पटना के पश्चिम में एक नए शहर बस चूका था. नए शहर के वाशिंदे, जिनमें यूरोपियन और संपन्न स्थानीय निवासी, राजा, ज़मीनदार और रईस थे, उनकी निर्भरता अलग अलग जरूरतों के लिए पुराने शहर पर थी और पुराने शहर के वाशिंदों का पारिवारिक कार्य, सरकारी दफ्तरों और शिक्षण सुविधाओं के लिए नए शहर पर निर्भरता थी. दोनों जगह के वाशिंदों की परस्पर निर्भरता को देखते हुए एक तेज गति वाले वाहन की जरूरत महसूस की गयी.
पटना शहर में अब तक लोग टमटम की सवारी ही कर रहे थे. यह दो घोड़ों द्वारा खींचा जाने वाला गाड़ी सदियों पुरानी व्यवस्था थी. लेकिन अब संपन्न, अमीर लोगों के लिए तेज गति वाले वाहन की जरूरत थी.
उधर पाश्चात्य देशों में राजा, अमीर और संपन्न लोग तेज घोड़ों की या घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले बग्घी की सवारी करते थे.
पटना के जमींदार एवं शायर नवाब उल्फत हुसैन फ़रयाद पहले हिंदुस्तानी थे, जिसके पास बग्घी थी. सन १८२० इसवी में पटना के तत्कालीन कमिश्नर लार्ड एच.सी. मेटकॉफ़ ने यह बग्घी इंग्लैंड से मंगवा कर फ़रयाद को तोहफे में दिया था.
उसके बाद पटना के नवाब एवं प्रतिष्ठित बैंकर लुफ्त अली खान दूसरे रईस थे जिनके पास यह बग्घी थी. उन्होंने इसे कलकत्ता से मंगवाया था. पटना के सड़कों पर बग्घी का चलना लोगों के लिए कौतुहल का विषय बन गया, शहर वासी बहुत उत्सुकता से चलते हुए इसे देखा करते थे, बाद में शीघ्र ही यह शहर के रईसों का पसंदीदा वाहन बन गया. शहर में कौन रईस कितने घोड़ों के वाहन की सवारी करता है, यह उस व्यक्ति की सम्पन्नता का मापदंड बन गया.