( कमल किशोर )
औरंगाबाद। भारत की सबसे बड़ी ऊर्जा उत्पादक कंपनी एनटीपीसी के पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी एनपीजीसी लिमिटेड द्बारा नवीनगर में बनाए जा रहे बिजली घर का निर्माण पूरा हो गया है। इसकी तीसरी और आखिरी यूनिट भी बनकर तैयार हो गई है तथा शनिवार से इसके सिक्रोनाइजेशन के बाद तीसरी यूनिट का ट्रायल रन शुरू हो गया है। फिलहाल इस पर 251 मेगावाट उत्पादन का लोड डाला गया है लेकिन 22 जनवरी से इसे फुल लोड यानी 66० मेगावाट उत्पादन क्षमता के साथ 72 घंटे तक लगातार चलाया जाएगा और इसके बाद यह यूनिट भी व्यावसायिक बिजली उत्पादन के लिए पूरी तरह तैयार हो जाएगी। यह जानकारी देते हुए एनपीजीसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विजय सिह ने बताया कि 72 घंटे के ट्रायल रन के साथ ही सफलतापूर्वक संचालन के पश्चात यह प्रोजेक्ट अब राष्ट्र को समर्पित करने के लिए पूरी तरह तैयार हो जायेगा। इसकी दो यूनिट से पहले ही 132० मेगावाट बिजली का वाणिज्यिक उत्पादन किया जा रहा है।
19400 करोड़ रुपए की लागत से बनी है यह परियोजना
श्री सिह ने बताया कि 19412 करोड़ की लागत से बनी इस बेहद महत्वाकांक्षी योजना के तहत 66० मेगावाट की कुल 3 इकाइयां बननी थी। दो इकाइयां वाणिज्यिक उत्पादन कर रही हैं जिनसे कुल 132० मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है। उन्होंने कहा कि बिहार सरकार के साथ हुए करार के अनुसार इस प्रोजेक्ट से निर्मित बिजली का 85% बिहार को दिया जाना है। इस प्रकार अब तक बिहार को 1122 मेगावाट बिजली मिल रही है।
तीन इकाइयों से 1980 मेगावाट बिजली का होगा उत्पादन
उम्मीद की जा रही है कि फरवरी माह से तीसरी यूनिट से भी बिजली का वाणिज्यिक उत्पादन शुरू हो जाएगा तब इस प्रोजेक्ट की कुल वाणिज्यिक बिजली उत्पादन क्षमता 198० मेगावाट हो जाएगी जिसमें से बिहार का हिस्सा 1683 मेगावाट होगा। इसके साथ ही 1०% बिजली उत्तर प्रदेश, 4% बिजली झारखंड तथा 1% बिजली सिक्किम राज्य को दी जानी है। एनपीजीसी की तीनों यूनिटों से बिजली उत्पादन शुरू होने के बाद बिहार बिजली के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर हो जाएगा और प्रदेशवासियों को बिजली की किल्लत नहीं झेलनी पड़ेगी। इस प्रकार इतिहास में पहली बार बिहार न केवल बिजली उत्पादन में आत्मनिर्भर होगा बल्कि अन्य राज्यों को भी बिजली दी जाएगी। बिहार को न केवल पर्याप्त ऊर्जा मिलेगी बल्कि बिहार को आर्थिक रूप से भी काफी फायदा होगा।
बिहार को हर वर्ष सस्ती बिजली मिलने से होगा डेढ़ सौ करोड़ रुपए का फायदा
मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने बताया कि अभी बिहार जहां से बिजली खरीद रहा है उसकी तुलना में एनपीजीसी द्बारा उत्पादित बिजली 1० पैसे प्रति यूनिट कम कीमत पर उपलब्ध हो रही है। एक दिन में इस बिजलीघर की 66० मेगावाट की एक इकाई डेढ़ करोड़ यूनिट बिजली का उत्पादन करती है। इस प्रकार एक यूनिट से प्रतिदिन बिहार को लगभग 15 लाख रुपए की बचत हो रही है। तीनों यूनिट से प्रतिदिन 45 लाख रूपये की बचत होगी।
सुपरक्रिटिकल टेक्नोलॉजी पर आधारित यह परियोजना प्रदूषण रहित
उन्होंने बताया कि एनपीजीसी से उत्पादित होने वाली बिजली इसलिए भी सस्ती है क्योंकि यह देश का पहला सुपर क्रिटिकल टेक्नॉलोजी से बना पावर प्रोजेक्ट है। इसमें कोयले की खपत कम होती है। सामान्य तौर पर एक यूनिट बिजली के उत्पादन में 6०० ग्राम कोयला खर्च होता है जबकि सुपर क्रिटिकल पावर प्रोजेक्ट में 55० से 56० ग्राम तक ही कोयले की खपत होती है। उन्होंने बताया कि एनपीजीसी की कोल लिकेज सीसीएल के कोयला खदानों से है जो 2०० से 25० किलोमीटर के अंदर ही स्थित हैं। इस प्रकार इतनी नजदीक से कोयला आने की वजह से ढुलाई का खर्च भी कम हो जाता है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक यूनिट में प्रतिदिन 9००० मीट्रिक टन कोयले की खपत होती है। यह पावर प्रोजेक्ट 297० एकड़ में फैला हुआ है जिसमें टाउनशिप के लिए 15० एकड़ जमीन और रेल कॉरिडोर के निर्माण के लिए 63 एकड़ जमीन शामिल है। इस प्रोजेक्ट को 125 क्यूसेक पानी की आवश्यकता है जो सोन नदी के इंद्रपुरी बराज से उपलब्ध कराया जा रहा है। इस परियोजना को चालू रखने के लिए 7.०3 मिलियन टन कोयले की आवश्यकता होगी जिसकी आपूर्ति नॉर्थ करणपुरा कोलफील्ड कर रहा है जिसका स्वामित्व सीसीएल के पास है।
मुख्य कार्यकारी अधिकारी विजय सिंह के कार्यकाल में पूरी हुई तीनों इकाइयां
6 सितंबर 2०19 को इसकी पहली यूनिट से कमर्शियल उत्पादन का शुभारंभ केन्द्रीय विद्युत मंत्री आर. के. सिंह ने किया था। दूसरी यूनिट से 23 जुलाई 2०21 को कमर्शियल उत्पादन शुरू हुआ। इस प्रकार यह भी एक रिकार्ड है कि इतने कम समय में तीनों यूनिट बन कर तैयार हो गयी। वर्ष 2०14 में बॉयलर के निर्माण के साथ ही इस परियोजना का वास्तविक निर्माण कार्य शुरू हुआ था। 2०17 में बॉयलर लाइटर प्रक्रिया पूरी की गई थी और 2०19 में ट्रायल ऑपरेशन शुरू किया गया था।