अब जमीन का भी होगा आधार नंबर, किसानों और गरीबों को मिलेगा लाभ

ग्रामीण इलाकों में लोगों के जमीन संबंधी झगड़े को खत्म करने और आर्थिक साधन बढ़ाने के लिहाज से केंद्र सरकार कई मोर्चों पर काम कर रही है। केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह ने बताया कि प्रत्येक भूखंड के लिए एक यूनिक भू-आधार नम्बर होगा। स्वामित्व और यूएलपीआईएन को जोड़कर देश के प्रत्येक भूखंड को भू-आधार नंबर मिलेगा।

राजस्व कचहरी के धक्के खाने से छुटकारा मिलेगा

 दरअसल, लद्दाख में नेशनल जेनेरिक डॉक्यूमेंट रजिस्ट्रेशन सिस्टम (NGDRS) तथा असम में विशिष्ट भूखंड पहचान संख्या (यूनिक लैंड पार्सल आइडेंटिफिकेशन नंबर- ULPIN) का शुभारंभ किया गया है। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि पंचायती राज और भूमि संसाधन में टेक्नोलॉजी की वजह से जीवन जीने की सरलता में बड़ा इजाफा होगा। सरकार, पंचायती राज मंत्रालय की फ्लैगशिप योजना स्वामित्व और भूमि संसाधन विभाग की यूएलपीआईएन योजना को जोड़कर देश के प्रत्येक भूभाग को एक यूनिक भू-आधार नंबर देने के बारे में विचार कर रही हैं। इस यूनिक नंबर के आने के बाद पैन नंबर, आधार नंबर और भू-आधार की वजह से देश में जमीनों के मामले में भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी लगभग शून्य हो जाएंगे। लोगों को राजस्व कचहरी के धक्के खाने से छुटकारा मिलेगा और कोर्ट केस कम हो जाएंगे।

बैंक लोन लेने में होगी आसानी

इस दौरान उन्होंने कहा कि जमीन का दस्तावेज होने से लोगों को बैंक से लोन प्राप्त करने में सहायता होगी। दूसरी ओर सरकार को राजस्व में फायदा होगा और प्रधानमंत्री किसान योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, फर्टिलाइजर सब्सिडी, आपदा प्रबंधन आदि योजनाओं के कार्यान्वयन में सरलता होगी।

क्या है विशिष्ट भूखंड पहचान संख्या

भूमि के प्रबंधन में धोखा-धड़ी तथा विवादों को रोकने तथा एक सामान्य रूप से विशिष्ट पहचान के लिए अलपिन प्रणाली प्रारम्भ की गई है। जिसमें भूखंड के भौगोलिक स्थिति के अनुसार सॉफ्टवेयर के माध्यम से एक विशिष्ट पहचान का सृजन हो, जिसे विशिष्ट भूखंड पहचान संख्या (यूनिक लैंड पार्सल आइडेंटिफिकेशन नंबर) का नाम दिया गया है। असम को मिला कर 14 राज्यों एवं केन्द्र शासित राज्यों में लागू किया गया है तथा छह राज्यों में पाइलट टेस्ट किया जा चुका है।

रूरल इकोनामी को मिलेगा प्रोत्साहन

उन्होंने कहा कि प्रत्येक भूभाग का एक यूनिक भू-आधार नंबर होने से ड्रोन टेक्नोलॉजी का उपयोग करके पेस्टिसाइड का छिड़काव तथा फसल बीमा योजना के तहत फसल का निरीक्षण करना आसान हो जाएगा। ड्रोन टेक्नोलॉजी का उपयोग करके दूरदराज के क्षेत्रों में डिलीवरी भी की जा सकती है। इन टेक्नोलॉजी की वजह से रूरल इकोनामी को बड़ा प्रोत्साहन मिलेगा और रोजगार सर्जन में भी इजाफा होगा।

 डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम

 भूमि संसाधन विभाग, भारत सरकार राज्यों एवं संघ राज्य क्षेत्रों के बीच भूमि संबंधी कार्यकलापों को गति देने के लिए विशेष रूप से डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम चला रहा है। इसी कार्यक्रम के अंतर्गत विकसित राष्ट्रीय जेनेरिक दस्तावेज रजिस्ट्रीकरण प्रणाली (NGDRS) तथा विशिष्ट भूखंड पहचान संख्या (ULPIN) प्रणाली को विभिन्न राज्यों एवं केंद्र शासित क्षेत्रों द्वारा अपनाया गया है।

इतने गांव का हो चुका कंप्यूटरीकरण

अभी तक भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम में 6 लाख 56 हजार 515 गांवों में से 6 लाख 11 हजार 197 गांवों का अधिकार अभिलेखों का कंप्यूटरीकरण कर लिया है। एक करोड़ 62 लाख 71 हजार 742 नक्शों में से एक करोड़ 11 लाख 51 हजार 408 नक्शों का डिजिटलीकरण कर लिया गया है। देश के 5223 रजिस्ट्री कार्यालयों में से 4884 कार्यालयों को कंप्यूटरीकृत कर लिया है, उनमें से 3997 कार्यालयों को राजस्व कार्यालयों से जोड़ भी दिया गया है। जिससे संपत्तियों की रजिस्ट्री होने के बाद दाखिल खारिज के लिए राजस्व कार्यालयों में दस्तावेज ऑटोमेटिक ऑनलाईन भेज दिया जाता है।

12 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में लागू

2021-22 में राष्ट्रीय जेनेरिक दस्तावेज रजिस्ट्रीकरण प्रणाली का कार्यान्वयन 12 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में लागू कर दिया गया है, जिससे करीब 22 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लाभ मिलेगा। अभी तक इस प्रणाली से 30.9 लाख दस्तावेजों का रजिस्ट्रीकरण किया जा चुका है, जिससे 16 हजार करोड़ से ज्यादा का राजस्व प्राप्त हुआ है।

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