कोयला मंत्रालय की नई पहल, अब कोयला उत्खनन के साथ मिलेगा हरियाली को बढ़ावा

कोयला खनन से भूमि का क्षरण होता है, लेकिन अब कोयला मंत्रालय के तहत कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) की नई परियोजनाएं न केवल भूमि को उसके मूल आकार में बनाएं रखेंगी, बल्कि कोयला खनन गतिविधि के साथ-साथ हरियाली को भी बढ़ावा दें रही है। पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए ओपनकास्ट कोयला खनन संचालन और उस पर सघन वृक्षारोपण के बाद भूमि को हरा भरा करने पर जोर दिया जा रहा है।

प्रदूषण को कम और कार्बन ऑफसेट को बढ़ाने में मिली मदद

ऐसी कई ग्रीनफील्ड परियोजनाओं में से एक, सीआईएल की सबसे बड़ी परियोजना मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में चल रही है। जयंत ओपनकास्ट कोयला परियोजना भूमि की बहाली के साथ कोयला खनन से परे देखने और दिन-ब-दिन हरित आवरण बढ़ाने के मिशन के साथ यह योजना काम कर रही है। इससे प्रदूषण के प्रभाव को काफी हद तक कम करने में मदद मिली है और कार्बन ऑफसेट को बढ़ाने में भी मदद मिली है। यह परियोजना सीआईएल की सहायक कंपनी नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एनसीएल) के अधीन है।

खनन से पहले की तुलना में अधिक हुई हरियाली

नई दिल्ली में कोयला मंत्रालय के सचिव (कोयला) द्वारा जयंत परियोजना की पर्यावरण और वन मंजूरी की विस्तृत समीक्षा के दौरान एक आश्चर्यजनक खुलासा हुआ। एनसीएल द्वारा प्रस्तुत परियोजना के सेटेलाइट डेटा ने खनन से पहले की तुलना में अधिक ग्रीन कवर का खुलासा किया। बड़े लीजहोल्ड क्षेत्र में संचालित किसी भी मेगा कोयला परियोजना के लिए यह एक उपलब्धि है।

क्या है जयंत कोयला परियोजना

जयंत कोयला परियोजना लगभग 3200 हेक्टेयर क्षेत्र में संचालित होती है जिसकी वार्षिक कोयला उत्पादन क्षमता 25 मिलियन टन है। परियोजना में खनन कार्य वर्ष 1975-76 में शुरू हुआ था। वर्ष 1977-78 से बड़े स्तर पर उत्खनन के लिए बड़ी क्षमता वाली हेवी अर्थ मूविंग मशीन (एचईएमएम) जैसे ड्रैगलाइन, फावड़ा, डंपर आदि के साथ शुरू किया गया था। परियोजना से उत्पादित कोयला शक्तिनगर, उत्तर प्रदेश में स्थित एनटीपीसी के सिंगरौली सुपर थर्मल पावर स्टेशन में जाता है। जिसकी उत्पादन क्षमता 2000 मेगावाट है। समर्पित मेरी-गो-राउंड (एमजीआर) प्रणाली के माध्यम से कोयले को बिजली संयंत्र तक पहुंचाया जा रहा है।

इन प्रजातियों का हुआ पौधारोपण

ग्रीन कवर मिशन के अनुरूप, परियोजना में और उसके आसपास हर साल बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किया जा रहा है जिसमें मध्य प्रदेश राज्य वन विकास निगम लिमिटेड (MPRVVNL) की मदद ली जा रही है। पौधों में जामुन, जंगल जलेबी, सीसम, सिरस, महुआ, सुबाबुल, बेल, आंवला, कचनार, करंज, नीम, अमलतास, बांस, बोगनविलिया, कैसिया, गुलमोहर, खमेर, पेल्टोफोरम आदि प्रजातियां शामिल हैं।

साभार : NewsOnAir

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