पटना। राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश प्रवक्ता चित्तरंजन गगन ने भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी के दावे को खारिज करते हुए कहा है कि लालू प्रसाद के मुख्यमंत्रित्व काल में हीं बिहार पंचायतीराज अधिनियम 1993 बनाकर पंचायतीराज संस्थाओं को स्वायत्तता दी गई थी और राबड़ी देवी जी के मुख्यमंत्रित्व काल में हीं 2001 में पंचायत प्रतिनिधियों का चुनाव कराया गया था। राजद शासनकाल 2001 में हुये पंचायती संस्थाओं के चुनाव में हीं महिलाओं और अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए आरक्षण व्यवस्था लागू किया गया था।
भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने दावा किया है कि पहली बार आरक्षण के आधार पर एनडीए शासनकाल में हीं पंचायतों का चुनाव कराया गया था। राजद प्रवक्ता ने सुशील मोदी को याद दिलाया है कि भाजपा के विरोध के बाद भी जब पंचायत राज अधिनियम 1993 बन गया और 1996 में चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई तो भाजपा और समता पार्टी के ईशारे पर आरक्षण प्रावधानों के खिलाफ हाईकोर्ट में रिट दायर कर चुनाव पर रोक लगवा दिया गया था। सर्वप्रथम 2001 में राबड़ी देवी के मुख्यमंत्रित्व काल में हीं पंचायतों का चुनाव कराया गया और संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार 11 वीं अनुसूची में शामिल 29 विषयों को पंचायती राज संस्थाओं के साथ सम्बद्ध कर दिया गया । एनडीए की सरकार बनने के बाद बिहार पंचायत राज अधिनियम 2006 पारित कर पंचायतों के अधिकार सीमित कर दिए गए।
राज्य सरकार के नये फैसले के अनुसार अब डीडीसी के जगह पर बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी जिला परिषद के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी होंगे जबकि 73 वें संविधान संशोधन में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जिला परिषद का मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी जिलाधिकारी के समकक्ष स्तर के पदाधिकारी हीं होंगे। राजद प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि सोलह सालों के एनडीए शासनकाल में अबतक तीन तीन बार नये अधिनियम बनाये गए और हर नये अधिनियम मे पंचायतों के अधिकार सीमित करने का सिलसिला जारी है। नये संशोधनों के द्वारा पंचायती संस्थाओं को पदाधिकारियों के मातहत गिरवी रख दिया गया है। राज्य की यह सरकार संवैधानिक मजबूरी के कारण पंचायतीराज व्यवस्था के अस्तित्व को समाप्त तो नहीं कर सकता पर उसे प्रभावहीन और अधिकार विहीन बना कर केवल शोपीस रहने दिया गया है।
श्वेता / पटना