महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह को गुमनामी के गर्द गुब्बारों से निकाल कर समाज के मुख्यधारा से जोड़ने के लिए बिहार के कुछ साहसी युवाओं ने उनके नाम से शुक्रिया वशिष्ठ नामक एक संस्थान की शुरुआत की है, जिसका शुभारंभ 15 अगस्त को गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह के हाथो किया गया.
50 मेधावी छात्रों को निशुल्क शिक्षा, आवास और भोजन की व्यवस्था
पटना के आशियाना नगर अभियंता नगर ए/16 में शुक्रिया वशिष्ठ संस्थान का कार्यालय खोला गया है, जहां वशिष्ठ नारायण सिंह के ज्ञान विज्ञान को आमजन तक पहुंचाने के लिए एक विशेष अभियान की शुभारंभ की गई है।
शुक्रिया वशिष्ठ संस्थान के प्रबंध निदेशक हैं, गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह के भतीजे मुकेश कुमार सिंह जबकि इसके सचिव हैं, पटना ग्रीन हाउसिंग के प्रबंध निदेशक भूषण कुमार सिंह बबलू इस संस्थान में प्रति वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता परीक्षा का आयोजन कर 50 मेधावी छात्रों को शुक्रिया वशिष्ठ कार्यक्रम के तहत चयनित कर उनके निशुल्क शिक्षा आवास और भोजन की व्यवस्था की जाएगी .
इस संस्थान के द्वारा मेडिकल व इंजीनियरिंग के प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी कराई जाएगी. ट्रस्टी भूषण कुमार सिंह बबलू ने बताया कि सीमित संसाधनों के बावजूद हौसले बुलंद है प्रारंभ में 50 छात्रों का लक्ष्य रखा गया है, धीरे-धीरे संसाधन बढ़ने पर इस तदाद को बढ़ाया जाएगा .
यह संस्थान पूरी तरह से गैर वित्तीय संस्थान
वशिष्ठ नारायण सिंह बिहार की धरोहर है सरकारी उपेक्षा के कारण गुमनामी का जीवन जी रहे इस महान विभूति से बिहारी अस्मिता की पहचान जुड़ी हुई है, पूरी दुनिया इनके प्रतिभा का लोहा मानती है, पर घर में ही उपेक्षित हैं, इसी कारण इस महान विभूति के ज्ञान विज्ञान को आमजन तक पहुंचाने के लिए उनके भतीजे मुकेश कुमार सिंह के साथ मिलकर उन्होंने शुक्रिया वशिष्ठ नामक संस्थान की शुरुआत की है. उन्होंने बताया कि यह संस्थान पूरी तरह से गैर वित्तीय संस्थान होगा जहां किसी भी छात्र से ₹1 का भी अनुदान नहीं लिया जाएगा पूरी व्यवस्था वे खुद कर रहे हैं.
आयोजित उद्घाटन सत्र में बिहार राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष श्रीमती दिल मणि मिश्रा वशिष्ठ बाबू के भाई राम अयोध्या सिंह अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा बिहार प्रदेश अध्यक्ष डा विजय राज सिंह समाजसेवी शैलेश कुमार सिंह संतोष कुमार मिश्रा सारण हेल्पलाइन के अनूप नारायण सिंह समाजसेवी विकास चंद्र गुड्डू बाबा प्रोफ़ेसर बीके सिंह अदम्या अदिति अदम्या अदिति गुरूकुल के गुरू डा एम रहमान मुन्नाजी रजनीश राजपूत समेत कई गणमान्य उपस्थित थे.
जानिए कौन है गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह और क्यों है चर्चा में
तकरीबन 40 साल से मानसिक बीमारी सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित वशिष्ठ नारायण सिंह पटना के एक अपार्टमेंट में गुमनामी का जीवन बिता रहे हैं. अब भी किताब, कॉपी और एक पेंसिल उनकी सबसे अच्छी दोस्त है.
पटना में उनके साथ रह रहे भाई अयोध्या सिंह बताते है, “अमरीका से वह अपने साथ 10 बक्से किताबें लाए थे, जिन्हें वह आज भी पढ़ते हैं. बाकी किसी छोटे बच्चे की तरह ही उनके लिए तीन-चार दिन में एक बार कॉपी, पेंसिल लानी पड़ती है.”वशिष्ठ नारायण सिंह ने आंइस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती दी थी,उनके बारे में मशहूर है कि नासा में अपोलो की लांचिंग से पहले जब 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए तो कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन एक था.
पटना साइंस कॉलेज में बतौर छात्र ग़लत पढ़ाने पर वह अपने गणित के अध्यापक को टोक देते थे. कॉलेज के प्रिंसिपल को जब पता चला तो उनकी अलग से परीक्षा ली गई जिसमें उन्होंने सारे अकादमिक रिकार्ड तोड़ दिए.
पांच भाई-बहनों के परिवार में आर्थिक तंगी हमेशा डेरा जमाए रहती थी. लेकिन इससे उनकी प्रतिभा पर ग्रहण नहीं लगा.
प्रतिभा की पहचान वशिष्ठ नारायण सिंह जब पटना साइंस क़ॉलेज में पढ़ते थे तभी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन कैली की नज़र उन पर पड़ी. कैली ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और 1965 में वशिष्ठ नारायण अमरीका चले गए.
साल 1969 में उन्होंने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की और वॉशिंगटन विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर बन गए. नासा में भी काम किया लेकिन मन नहीं लगा और 1971 में भारत लौट आए.
पहले आईआईटी कानपुर, फिर आईआईटी बंबई, और फिर आईएसआई कोलकाता में नौकरी की. इस बीच 1973 में उनकी शादी वंदना रानी सिंह से हो गई. घरवाले बताते हैं कि यही वह वक्त था जब वशिष्ठ जी के असामान्य व्यवहार के बारे में लोगों को पता चला.
उनकी भाभी प्रभावती बताती हैं, “छोटी-छोटी बातों पर बहुत ग़ुस्सा हो जाना, पूरा घर सर पर उठा लेना, कमरा बंद करके दिन-दिन भर पढ़ते रहना, रात भर जागना उनके व्यवहार में शामिल था.
वह कुछ दवाइयां भी खाते थे लेकिन वे किस बीमीरी की थीं, इस सवाल को टाल दिया करते.”इस असामान्य व्यवहार से वंदना भी जल्द परेशान हो गईं और तलाक़ ले लिया. यह वशिष्ठ नारायण के लिए बड़ा झटका था.
तक़रीबन यही वक्त था जब वह आईएसआई कोलकाता में अपने सहयोगियों के बर्ताव से भी परेशान थे. भाई अयोध्या सिंह कहते हैं, “भइया (वशिष्ठ जी) बताते थे कि कई प्रोफ़ेसर्स ने उनके शोध को अपने नाम से छपवा लिया, और यह बात उनको बहुत परेशान करती थी.
साल 1974 में उन्हें पहला दौरा पड़ा, जिसके बाद शुरू हुआ उनका इलाज. जब बात नहीं बनी तो 1976 में उन्हें रांची में भर्ती कराया गया. घरवालों के मुताबिक़ इलाज अगर ठीक से चलता तो उनके ठीक होने की संभावना थी. लेकिन परिवार ग़रीब था और सरकार की तरफ से मदद कम.
1987 में वशिष्ठ नारायण अपने गांव लौट आए,लेकिन 89 में अचानक ग़ायब हो गए. साल 1993 में वह बेहद दयनीय हालत में डोरीगंज, सारण में पाए गए.