‘नेम प्लेट‘ में सामाजिक बदलाव की कहानियां- भीम सिंह भवेश

कहानियाँ भ्रष्ट व्यवस्था से लड़ती हैं। कहानियाँ दकियानुसी विचारों को खदेड़ती हैं। कहानियाँ झकझोरती है मन को, हृदय के अंतः स्थल को। कहानियाँ जगाती है उस इंसान को, जो बेफिक्र सोया हो।

डॉ. भीम सिंह भवेश की दूसरी कृति है-नेम प्लेट, में नौ कहानियाँ संग्रहित हैं। चूँकि कहानीकार पहले पत्रकार हैं, इसलिए कहानियों में पत्रकारिता लेखन की शैली की धमक है।

समाज में बुजुर्गों की क्या हालत है, इसे ‘भला हो उस पंडित का’ से वाकिफ हुआ जा सकता है। बेटे पिता की पेंशन की राशि पर आस लगाए रहते हैं, लेकिन पिता अच्छा खाना खाने को तरस जाते हैं। शुक्र है उस पंडित का, जिसने ‘भाग्योदय’ के लिए किसी असहाय-बुजुर्ग को अच्छा खाना खिलाने की नसीहत दी थी, तब जाकर सुरेश नाथ को बढ़िया खाना मिलने लगा था। यह केवल सुरेश नाथ की कहानी नहीं है। हर मुहल्ले में सुरेश नाथ मिल जायेंगे।

शीर्षक कहानी ‘नेम प्लेट’ में यथार्थ है! गाँव-गिराँव में यह कहते सुना जाता है कि कैसी कुलच्छिन है वो? उसकी नजर ठीक नहीं है? सरोजा गाँव में ‘डायन काकी’ के नाम से प्रसिद्ध हो गयी। वजह, शादी होकर आयी सरोजा देवी की पति और जेठानी की मौत दो साल के भीतर ही हो गयी। अब तो गाँव में पशु मरे या आदमी, कलंक का टीका सरोजा के माथे। सरोजा का पुत्र बाद में एसपी बनता है। बरामदे में पुत्र की ‘आई.पी.एस‘ वाली नाम पट्टिका स्थितियां बदलकर रख देती है।

अमरकांत और मुखराम गाँव की गलियों से होकर शहर पहुँचे हैं। अमरकांत गाँव से कट गए, तो मुखराम का रिश्ता जुड़ा रहा। अमरकांत को इस मुकाम पर पहुँचाने के लिए गाँव में रखा गया डेढ़ बीघा रेहन खेत नहीं छूटा। एक दिन मुखराम की बातों ने उसे ऐसा झकझोरा कि……

संग्रह की अन्य कहानियाँ यथा मनरेगा आदमी की जान लेगा या…, भरभराकर गिरा इंदिरा आवास, झगड़ा खत्म, चाॅकलेट बर्फी, केसीसी का अटैक एवं हत्यारा का नाम बदल देते! व्यवस्था की लचरता पर सीधा प्रहार है।

रमरतिया के बहाने कहानीकार का ‘तंत्र’ पर सीधा प्रहार-‘हम जानते हैं नऽ, एक इंदिरा आवास बनाने में कितना पापड़ बेलना पड़ा है। तीन साल तक रनिया के बाबू मुखिया का दरवाजा नहीं छोड़े। ओकरे जानवर के सानी-पानी से लेके मुअनी-जीअनी तक दिन-रात खड़े रहे। ऊपर से चार हजार रुपया। यह बात कोई मानता ही नहीं।’

‘बेटा, लंका में रहना है, तो जय लंकेश कहना होगा’, ‘कर्ज और शत्रु को कभी बड़ा मत होने देना’, घंटा भर के लोर से जलेबी बनती है?’, ‘देह पर गिरे लाठी और चेट से निकले थाती, तो झगड़ा खत्म’, ‘शहर का एकाकी जीवन भी कोई जीवन है? चाय, टीवी और बीवी’ आदि वाक्य द्योतक हैं कि कहानीकार का अनुभव अद्भुत है।

बतौर कहानीकार भीम सिंह भवेश की यह पहली कृति है। प्रूव की थोड़ी-बहुत गलती को नजरअंदाज करें, तो नेम प्लेट सचबयानी है। साहित्यिक बगिया को ऐसी और कृति की जरूरत है, जो सच कहने की ताकत रखे। कलम की निडरता बेहद आवश्यक है मौजूदा समय में।

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