वैश्विक महामारी कोविड-19 नोबल कोरोना वायरस के कारण हर क्षेत्र के रोजगार पर संकट आ पड़ा है। वहीं, हमारे प्रधानमंत्री ने भी आत्मनिर्भर बनने की बात कही है। ऐसे में मिथिला की महिलाओं और लड़कियों ने जीवटता दिखाते हुए पुरुषों से कदमताल मिला कर आत्मनिर्भर बनना शुरू कर दिया है।
जी हाँ हम बात कर रहे हैं, मधुबनी चित्रकारी यानी मिथिला पेंटिंग से खुद को जोड़ अपना खुद का रोजगार बना लिया है यहां की महिलाओं एवं लड़कियों ने।
आज बेटियां किसी भी तरह कमजोर नहीं हैं। वे आत्मनिर्भर बन रही हैं। इसके लिए उन्हें न तो बड़ी-बड़ी डिग्रियों की जरूरत है, न किसी पैरवी की। अपने जज्बे व हुनर से वे आज घर बैठे कमा रही हैं। किसी पर आश्रित नहीं। कई बेटियों ने तो घर की जिम्मेदारी तक उठा रखी है। मिथिला जैसे आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्र में यह बदलाव सामाजिक परिवर्तन के रूप में सामने आ रहा है। कभी गार्गी, मैत्रेयी, भारती, घोषा, अपाला जैसी विदुषियों के दम पर महिला शिक्षा की अलख जगाने वाले मिथिला में बेटियां आज अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं। नारी सशक्तीकरण का उदाहरण देश-दुनिया के सामने पेश कर रही हैं।
बेटियों ने ब्रश व रंग से यह कमाल कर दिखाया है। यहां की लोककला मिथिला पेंटिंग का प्रचार-प्रसार करते हुए ये बेटियां इस कला में नित नए प्रयोग कर रही हैं। पुरुष प्रधान समाज में अपने वजूद का एहसास भी करा रहीं। मिथिलांचल के मधुबनी में आज हजारों की संख्या में बेटियां मिथिला पेंटिंग में निपुण हैं। वे घर बैठे अपनी कला व हुनर से आर्थिक रूप से स्वावलंबी बन रही हैं। बाजार उनके घरों तक पहुंच रहा है। न ऑफिस जाने का झंझट, न वर्किंग ऑवर की टेंशन। जब मन किया ब्रश व पेंट लेकर बैठ गईं, और शुरू कर दिया काम। अपने पारिवारिक दायित्वों को निभाते हुए आज महिलाएं व युवतियां कमाई कर रही हैं।
इस कोरोना काल में जब लोगों के काम-धंधे ठप पड़ चुके हैं, मिथिला पेंटिंग इस क्षेत्र की महिलाओं के लिए वरदान साबित हो रही है। मिथिला पेंटिंग वाले मास्क की लगातार बढ़ती मांग ने इन्हें इस विपरीत परिस्थिति में भी कमाई का जरिया दे दिया है। कई कलाकार आज मास्क बनाकर अच्छी कमाई कर रहे हैं। इसके अलावा मिथिला पेंटिंग वाले अन्य सामान की बिक्री भी काफी हो रही है।
जिले के गजहारा की रहने वाली अंजू देवी मिथिला पेंटिंग की प्रसिद्ध कलाकार बन चुकी हैं। कहती हैं कि अपनी इस कला के बूते आज उनका परिवार खुशहाल है। परिवार की जरूरतों के साथ ही अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे सकीं। आज खुशहाल हैं। खुद पेंटिंग करती हैं और पति बाजार के कामों को देखते हैं। आज उनके पास मिथिला पेंटिंग सीखने के लिए भी कई लड़कियां आ रही हैं। उन्हें प्रशिक्षण देकर इस कला के प्रचार के साथ-साथ उपार्जन भी कर रही हैं। मिथिला पेंटिंग ने जीवन संवार दिया है। कई अवार्ड भी मिले। समाज में मान-सम्मान भी मिला।
मधुबनी जिले की महिलाओं ने सालों से अपनी कमाई से परिवार का सहारा बनी हुई हैं।
उन्होंने कहा इसने जिंदगी की जंग को आसान कर दिया। इस हुनर से न केवल नाम मिला, बल्कि अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए परिवार की मदद भी कर पा रही हूं। भारतीय ट्रैन जैसे बिहार संपर्कक्रांति, शहीद एक्सप्रेस की बोगियों पर स्केचिंग, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय परिसर में मिथिला पेंटिंग, जिले के कई थानों में पेंटिंग के साथ ही नगर में डीएम आवास में मिथिला पेंटिंग का काम मिला। इसके अलावा मधुबनी रेलवे स्टेशन व सर्किट हाउस में भी काम किया। लॉकडाउन के दौरान कपड़ों पर पेंटिंग व मास्क का काम चल रहा है।
मधुबनी से संतोष कुमार शर्मा की रिपोर्ट
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