नगर निकाय चुनाव- ईवीएम से नोटा का विकल्प गायब, मतदाताओं को न चाहते हुए भी देना है सभी वोट

नियम कायदे और न्यायालय के आदेश की धज्जियां उड़ाते हुए निर्वाचन आयोग और सरकार ने आखिरकार चुनाव को करा लिया।

इस चुनाव में आम जनता के साथ सबसे बड़ा मजाक यह रहा कि ईवीएम से नोटा का ऑप्शन ही हटा दिया गया। जबकि अगर चुनाव में किसी प्रत्याशी को आम जनता पसंद नहीं करती है तो वह नोटा देकर अपनी मंशा को दर्शाती है। परंतु नोटा ऑप्शन को हटाने से बहुत सारी बहुत सारे मतदाता ऐसे थे जिन्हे इस बात की नाराजगी थी। उनका कहना था कि वे किसी प्रत्याशी को वोट नहीं देना चाहते थें लेकिन नोटा का विकल्प नहीं होने के कारण उन्हें अपना वोट बरबाद करना पड़ रहा है।

एक मतदाता का कहना था कि उन्हें सिर्फ पार्षद, डिप्टी मेयर और मेयर में किसी एक वोट करना था और सभी में नोटा देना था, पर नोटा नही होने के कारण जब उसने बाकी को वोट देने से इंकार किया तो वहां बैठे अधिकारियों ने उन्हें कहा कि किसी न किसी को देना ही होगा। मतदाताओं का कहना है कि लोकतंत्र में “नोटा” आम मतदाता का बहुत बड़ा अधिकार होता है जो उनसे छीन लिया गया।

नोटा से पहले भी वोट नहीं देने का अधिकार था भारत की चुनाव आचार संहिता, 1961 के नियम 49 (ओ) के तहत यह काफी समय से अस्तित्व में था इसके तहत कोई भी मतदाता आधिकारिक तौर पर मत नहीं देने का निर्णय ले सकता था।
पृष्ठभूमि

“जनता द्वारा, जनता के लिये, जनता का शासन ही लोकतंत्र है” अब्राहम लिंकन की यह प्रसिद्ध उक्ति लोकतंत्र की सबसे सरल और प्रचलित परिभाषा मानी जाती है। गौरतलब है कि लोकतंत्र की इस व्यवस्था में मालिकाना हक़ तो जनता का ही है लेकिन जिस तरह से जनता के प्रतिनिधि चुने जाते हैं उसे लेकर असंतोष ज़ाहिर किया जाता रहा है।

लोकतंत्र के महापर्व यानी चुनावों में यदि जनता को कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं आता है और फिर भी वह यह समझकर मतदान करती है कि दो बुरे उम्मीदवारों में से जो कम बुरा है उसके पक्ष में मतदान किया जाए तो निश्चित ही यह लोकतंत्र के लिये शुभ संकेत नहीं है।

क्या हमारी व्यवस्था ऐसा उम्मीदवार नहीं दे सकती जो जनता के हित और कल्याण के लिये प्रतिबद्ध हो, मान लिया जाए कि किन्हीं परिस्थितियों में कोई भी सुयोग्य उम्मीदवार नज़र नहीं आता तो जनता क्या करे? इस सवाल को लेकर बहुत लंबे समय तक बहस चलती रही है।

इस चुनाव में निर्वाचन आयोग और सरकार ने न्यायालय के आरक्षण संबंधी आदेश को भी दरकिनार कर चुनाव तो करा लिया पर देखना यह है कि क्या न्यायालय इस चुनाव को वैध ठहराती है या नहीं।

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