भाग ०५
एक दिन मीरा अपने गिरधर की पूजा से निवृत्त हो माँ के पास बैठी थीं तो अचानक बाहर से आने वाले संगीत से उसका ध्यान बंट गया। वह झट से बाहर झरोखे से देखने लगी।
भाबू! यह इतने लोग सज धज करके गाजे बाजे के साथ कहाँ जा रहे है ? यह तो बारात आई है बेटा! यह उत्तर देते माँ की आँखों में सौ सौ सपने तैर उठे।
बारात क्या होती है भाबू! यह इतने गहने पहन कर हाथी पर कौन बैठा है ?
यह तो बींद (दूल्हा ) है बेटी। बहू को ब्याहने जा रहा है। अपने नगर सेठ जी की बेटी से विवाह होगा। माँ ने दूल्हे की तरफ देखते हुये कहा।
सभी बेटियों के वर होते है क्या ? सभी से ब्याह करने बींद आते है ? मीरा ने पूछा।
हाँ बेटा ! बेटियों को तो ब्याहना ही पड़ता है। बेटी बाप के घर में नहीं खटती। चलो, अब नीचे चले। माँ ने मीरा को झरोखे से उतारने का उपक्रम किया।
मीरा ने अपनी ही धुन में मग्न कहा,” तो मेरा बींद कहाँ है भाबू ?”
“तेरा वर”? माँ हँस पड़ी।” मैं कैसे जानूँ बेटी कि तेरा वर कहाँ है, जहाँ के विधाता ने लेख लिखे होंगे, वहीं जाना पड़ेगा।
मीरा उछल कर दूर खड़ी हो गई और ज़िद करती हुईं बोली, ” आप मुझे बताइये मेरा वर कौन है ?” उसकी आँखों में आँसू भर आये थे।
माँ मीरा की ऐसी ज़िद देख आश्चर्य में पड़ गई और बात बनाते हुए बोली,”बड़ी माँ से याँ अपने बाबोसा से पूछना।
“नहीं मैं किसी से नहीं पूछुँगी, बस आप ही मुझे बतलाईये” मीरा रोते रोते भूमि पर लोट गई।
माँ ने मीरा को मनाते हुए उठाया और बोली,” अच्छा मैं बताती हूँ तेरा वर। तू रो मत। इधर देख, ये कौन है ?” ये ? ये तो मेरे गिरधर गोपाल है।
“अरी पागल ,यही तो तेरे वर है। उठ, कब से एक ही बात की रट लगाई है। “माँ ने बहलाते हुए कहा।
“क्या सच बाभू ?,सुख भरे आश्चर्य से मीरा ने पूछा।
“सच नहीं तो क्या झूठ है ? चल मुझे देर हो रही है ।”
मीरा ने गिरधर की तरफ़ ऐसे देखा, मानों आज उन्हें पहली बार ही देखा हो, ऐसे चाव और आश्चर्य से देखने लगी। मीरा रोना भूल गई। माँ का सहज ही कहा एक एक शब्द उसकी नियति भी थी और जीने के लिए सम्बल और आश्वासन भी।
क्रमशः
आचार्य स्वामी विवेकानन्द जी
ज्योतिर्विद व सरस् श्री रामकथा व श्रीमद्भागवत कथा व्यास
श्री धाम श्री अयोध्या जी
संपर्क सूत्र:-9044741252