भाग०३
कृपण के धन की भाँति मीरा ठाकुर जी को अपने से चिपकाये माँ के कक्ष में आ गई। वहाँ एक झरोखे में लकड़ी की चौकी रख उस पर अपनी नई ओढ़नी बिछा ठाकुर जी को विराजमान कर दिया। थोड़ी दूर बैठ उन्हें निहारने लगी। रह रह कर आँखों से आँसू झरने लगे।
आज की इस उपलब्धि के आगे सारा जगत तुच्छ हो गया। जो अब तक अपने थे वे सब पराये हो गये और आज आया हुआ यह मुस्कुराता हुआ चेहरा ऐसा अपना हुआ जैसा अब तक कोई न था। सारी हंसी खुशी और खेल तमाशे सब कुछ इन पर न्यौछावर हो गया। ह्रदय में मानों उत्साह उफन पड़ा कि ऐसा क्या करूँ, जिससे यह प्रसन्न हो।
अहा, कैसे देख रहा है मेरी ओर ? अरे मुझसे भूल हो गई। तुम तो भगवान हो और मैं आपसे तू तुम कर बात कर गई।आप कितने अच्छे हैं जो स्वयं कृपा कर उस संत से मेरे पास चले आये। मुझसे कोई भूल हो जाये तो आप रूठना नहीं, बस बता देना। अच्छा बताओ उन महात्मा की याद तो नहीं आ रही वह तो तुम्हें मुझे देते रो ही पड़े थे। मैं तुम्हें अच्छे से रखूँगी- स्नान करवाऊँगी, सुलाऊँगी और ऐसे सजाऊँगी कि सब देखते ही रह जायेंगे। मैं बाबोसा को कह कर तुम्हारे लिए सुंदर पलंग, तकिये, गद्दी,और बढ़िया वागे (पोशाक) भी बनवा दूँगी। फिर कभी मैं तुम्हें फुलवारी में और कभी यहाँ के मन्दिर चारभुजानाथ के दर्शन को ले चलूँगी। वे तो सदा ऐसे सजे रहते है जैसे अभी-अभी बींद (दूल्हा ) बने हो।
मीरा ने अपने बाल सरल ह्रदय से कितनी ही बातें ठाकुर का दिल लगाने के लिए कर डाली। न तो उसे कुछ खाने की सुध थीं और न किसी और काम में मन लगता था। माँ ने ठाकुर जी को देखा तो बोली, “क्या अपने ठाकुर जी को भी भूखा रखेगी? चल उठ भोग लगा और फिर तू भी प्रसाद पा।”
मीरा: अरे हाँ, यह बात तो मैं भूल ही गई। फिर उसने भोग की सब व्यवस्था की।
दूदा जी का हाथ पकड़ उन्हें अपने ठाकुर जी के दर्शन के लिए लाते मीरा ने उन्हें सब बताया।
मीरा: बाबोसा उन्होंने स्वयं मुझे ठाकुर जी दिए और कहा कि स्वप्न में ठाकुर जी ने कहा कि अब मैं मीरा के पास ही रहूँगा।
दूदाजी ने दर्शन कर प्रणाम किया तो बोले,” भगवान को लकड़ी की चौकी पर क्यों ? मैं आज ही चाँदी का सिंहासन मंगवा दूंगा।”
मीरा: हाँ बाबोसा। और मखमल की गादी तकिये, चाँदी के बर्तन, वागे और चन्दन का हिंडोला भी।
दूदाजी : अवश्य बेटा। सब सांझ तक आ जायेगा।
मीरा: पर बाबोसा, मैं उन महात्मा से ठाकुर जी का नाम पूछना भूल गई।
दूदाजी : मनुष्य के तो एक नाम होता है। पर भगवान के जैसे गुण अनन्त है वैसे उनके नाम भी। तुम्हें जो नाम प्रिय लगे, चुन ले।
मीरा: हाँ आप नाम लीजिए।
ठीक है। कृष्ण, गोविंद, गोपाल, माधव, केशव, मनमोहन , गिरधर बस, बस बाबोसा। मीरा उतावली हो बोली- यह गिरधर नाम सबसे अच्छा है। इस नाम का अर्थ क्या है?
दूदाजी ने अत्यंत स्नेह से ठाकुर जी की गिरिराज धारण करने की लीला सुनाई। बस तभी से इनका नाम हुआ गिरधर।
मीरा भाव विभोर हो मूर्छित हो गई।
क्रमशः