मथुरा मंदिर का इतिहास- भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली

भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली और उनकी रासलीलाओं के लिए विश्वविख्यात मथुरा में सालभर में करोड़ों श्रद्धालु मंदिर के दर्शन करने आते हैं। वैसे तो इस पूरे जिले में हजारों मंदिर हैं, लेकिन कुछ मंदिर सदियों से विशेष महत्व रखते हैं। यहां मथुरा नगर, वृंदावन, गोवर्धन, गोकुल, बरसाना और नंदगांव का अस्तित्व श्रीकृष्ण के जन्म से भी पहले से है। श्रीकृष्ण के इस भव्य एवं दिव्य मंदिर का इतिहास पिछले दो हजार साल में काफी उतार-चढ़ाव का रहा है। आतताइयों ने इसे कम से कम तीन बार नष्ट किया, लेकिन भक्तों की श्रद्धा एवं विश्वास में कोई कमी नहीं आई। आज भी हर साल भारी तादाद में कृष्ण उपासक यहाँ आकर अपने को धन्य महसूस करते हैं और ‘जय कन्हैयालाल की’ का उद्‍घोष करते हैं।

पौराणिक इतिहास के अनुसार, करीब 5 हजार साल पहले भगवान विष्णु ने अपना 22वां अवतार मनुष्य योनि में कृष्ण के रूप में लिया था। वे द्वापर युग में भद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की रात 12 बजे कंस की कारागार (जेल) में देवकी के गर्भ से जन्मे थे। तब कंस (एक राक्षस) मथुरा का राजा था और उसने अपनी बहन देवकी और उनके पति वसुदेव महाराज को बंदी बनाकर कारागार में डलवा दिया था। कृष्ण कारागार के अंदर ही देवकी की 8वीं संतान के रूप में पैदा हुए। रंग सांवला कुछ नीला होने की वजह से उन्हें कृष्ण पुकारा गया।

3 बार टूटा, 4 बार बनाया जा चुका है यह मंदिर
ग्रंथों के अनुसार, मथुरा में जिस जगह पर आज कृष्‍ण जन्‍मभूमि मंदिर है, वह कंस के शासनकाल में मल्‍लपुरा क्षेत्र के कटरा केशव देव में कंस का कारागार हुआ करता था। इसी कारागार में रोहिणी नक्षत्र में आधी रात को कृष्ण का जन्म हुआ था। बाद में कृष्ण के हाथों ही राजा कंस समेत असंख्य राक्षस मारे गए। मान्यता हैं कि मथुरा कारगार, यानी कृष्ण जन्मस्थान पर पहले मंदिर का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र यानी प्रद्युम्न के बेटे अनिरुद्ध के पुत्र व्रजनाभ ने ही सर्वप्रथम उनकी स्मृति में केशवदेव मंदिर की स्थापना की थी।
इसके बाद यह मंदिर 80-57 ईसा पूर्व बनाया गया था। इस संबंध में महाक्षत्रप सौदास के समय के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि किसी ‘वसु’ नामक व्यक्ति ने यह मंदिर बनाया था। इसके बहुत काल के बाद दूसरा मंदिर सन् 800 में विक्रमादित्य के काल में बनवाया गया था, जबकि बौद्ध और जैन धर्म उन्नति कर रहे थे। हालांकि, महमूद गजनवी ने सन् 1017 ई. में आक्रमण कर यहां लूट मचा दी और मंदिर को ध्वस्त कर दिया।
कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा में बने भव्य मंदिर को देखकर लुटेरा महमूद गजनवी भी आश्चर्यचकित रह गया था। उसके मीर मुंशी अल उत्वी ने अपनी पुस्तक तारीखे यामिनी में लिखा है कि गनजवी ने मंदिर की भव्यता देखकर कहा था कि इस मंदिर के बारे में शब्दों या चित्रों से बखान करना नामुमकिन है। उसका अनुमान था कि वैसा भव्य मंदिर बनाने में दस करोड़ दीनार खर्च करने होंगे और इसमें दो सौ साल लगेंगे। ईस्वी सन् 1017-18 में महमूद गजनवी ने मथुरा के समस्त मंदिर तुड़वा दिए थे। बाद में इसे महाराजा विजयपाल देव के शासन में सन् 1150 ई. में जज्ज नामक किसी व्यक्ति ने बनवाया। यह मंदिर पहले की अपेक्षा और भी विशाल था, जिसे 16वीं शताब्दी के आरंभ में सिकंदर लोदी ने नष्ट करवा डाला।
ओरछा के राजा वीर सिंह देव बुंदेला ने इसी स्थान पर चौथी बार मंदिर बनवाया। ओरछा के शासक राजा वीरसिंह जू देव बुन्देला ने पुन: इस खंडहर पड़े स्थान पर एक भव्य और पहले की अपेक्षा विशाल मंदिर बनवाया। इसके संबंध में कहा जाता है कि यह इतना ऊंचा और विशाल था कि यह आगरा से दिखाई देता था। कई बार बने और टूटे इस मंदिर पर अंतिम प्रहार औरंगजेब ने किया। सन् 1669 में इस मंदिर की भव्यता से चिढ़कर औरंगजेब ने इसे तुड़वा दिया और इसके एक भाग पर ईदगाह का निर्माण करा दिया। इसके बाद ईदगाह को तो कोई हिंदू राजा नहीं हटा सके, हालांकि इस ईदगाह के पीछे ही महामना पंडित मदनमोहन मालवीयजी की प्रेरणा से उद्योगपति जुगलकिशोर बिड़ला द्वारा यहां मंदिर के गर्भ गृह का पुनर्रुद्धार और निर्माण कार्य शुरू कराया गया। जो फरवरी 1982 में पूरा हुआ। लेकिन अब यह विवादित क्षेत्र बन चुका है क्योंकि जन्मभूमि के आधे हिस्से पर ईदगाह है और आधे पर मंदिर।
जन्मभूमि मंदिर के अलावा मथुरा में भूतेश्वर महादेव, ध्रुव टीला, कंस किला, अम्बरीथ टीला, कंस वध स्थल, पिप्लेश्वर महादेव, बटुक भैरव, कंस का अखाड़ा, पोतरा कुंड, गोकर्ण महादेव, बल्लभद्र कुंड, महाविद्या देवी मंदिर आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। मथुरा का अन्य आकर्षण असिकुंडा बाजार स्थित ठाकुर द्वारिकाधीश महाराज का मंदिर है। यहां देश के सबसे बड़े व अत्यंत मूल्यवान हिंडोले द्वारिकाधीश मंदिर के ही हैं, जो कि सोने व चांदी के हैं। मथुरा में यमुना के प्राचीन घाटों की कुल संख्या 25 है। उन्हीं सब के बीच स्थित है- विश्राम घाट। जहां प्रात: व सांय यमुनाजी की आरती उतारी जाती है। यहां पर यमुना महारानी व उनके भाई यमराज का मंदिर भी मौजूद है। विश्राम के घाट के सामने ही यमुना पार महर्षि दुर्वासा का आश्रम है।
मथुरा आने के लिए देशभर के शहरों से सीधी ट्रेन चलती हैं। यहां वृंदावन में हेलीपैड भी है, जहां हेलीकॉप्टर से पहुंचा जा सकता है। नजदीकी एयरपोर्ट आगरा का हवाई अड्डा है। आगरा यहां से करीब 60 किमी की दूरी पर है। हरियाणा, दिल्ली, मध्य प्रदेश और राजस्थान से मथुरा के लिए सीधी बसें भी चलती हैं।

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