पटना 28 मई 2020 : जन अधिकार पार्टी लोकतांत्रिक के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव एजाज अहमद ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मजदूरों के हित में केंद्रएवं राज्य के लिए एक सबक वाला ऐतिहासिक फैसला बताया
इन्होंने ने कहा कि जिस प्रकार से मजदूरों के मामले में केंद्र सरकार एक दूसरे पर दोषारोपण की राजनीति कर रही थी उसका भी पोल खुल गया क्योंकि जहां एक ओर केंद्र सरकार दावा कर रहा था कि 85% रेलवे का किराया उनके द्वारा वहन किया जा रहा है वहीं 15% संबंधित राज्य सरकारों के द्वारा वहन की जाने की बातें की जा रही थी, लेकिन इन दोनों के दावे विपरीत आज के फैसले से यह पूरी तरह से स्पष्ट रूप से सामने आ गया कि केंद्र एवं राज्य सरकारे झूठे दावे के सहारे लोगों को भ्रम में रखे हुए थे, जिसके कारण ही आज सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए यह बात स्पष्ट किया कि संबंधित राज्य सरकार और जहां मजदूरों को जाना है वहां की राज्य सरकार दोनों मिलकर मजदूरों के रेल भाड़ा का खर्च वहन करेंगे और भारत सरकार की ओर से रेल मंत्रालय यात्रियों के खाने तथा पीने की समुचित व्यवस्था करेगी ।
एजाज ने आगे कहा कि यह फैसला ऐतिहासिक इस मामले में भी माना जाएगा क्योंकि जब मजदूरों की जान जा रही थी तब भी ना तो केंद्र सरकार का और ना ही संबंधित राज्य सरकार का इस ओर ध्यान था, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से केंद्र एवं राज्य सरकार अपनी अपनी जवाबदेही का निर्वहन सही ढंग से करेगी और मजदूरों को उनके हाल पर छोड़ने वाली सरकारें अब शायद ऐसा करने से पहले दस बार सोचेंगी।
इन्होंने ने आगे कहा कि अफसोस की बात है कि जहां एक ओर जन अधिकार पार्टी लोकतांत्रिक के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह पूर्व सांसद पप्पू यादव लोगों को दिल्ली से तो दूसरी ओर फिल्मी दुनिया के कलाकार सोनू सूद मुंबई जैसे शहर से मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए बसों की व्यवस्था करके उनको घरों तक पहुंचा रहे हैं , वहींदूसरी ओर बिहार के सत्तापक्ष और विपक्ष के नेता अपनी अपनी जिम्मेदारी से दूर भागते हुए मजदूरों को उनके हाल पर छोड़ने का कार्य किये। वहीं दूसरी ओर इन मजदूरों के सवाल पर राज्य और केंद्र सरकार को जहां घेरने की बात विपक्ष के द्वारा की जानी थी वहां पर विपक्ष ने मजदूरों से अलग हटकर जाति और धर्म की राजनीति करनी शुरू कर दी जहां राजद ने जातिवाद की राजनीति को तरजीह दी वहीं भाजपा ने धर्म की राजनीति करने में ही स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं क्योंकि इन दोनों दलों को मजदूरों से वोट नजर नहीं आता है धर्म और जाति में इन्हें वोटर दिखता है और उन्माद तथा जातीय गोलबंदी की शॉर्टकट राजनीति से ही इन दोनों का हित सधता है।