हरिद्वार महाकुम्भ का पहला शाही स्नान ११ मार्च को चुका है. लेकिन दूसरा शाही स्नान १२ अप्रैल. २०२१ को चैत्र अमावस्या और सोमवती अमावस्या के दिन होगा. मान्यता है कि अमावास्या के दिन स्नान और दान करने से बड़ा पुण्य प्राप्त होता है. इस दिन पितरों का तर्पण-पिंडदान भी किया जाता है।
१३ अप्रैल को नव सम्वत्सर स्नान होगा. इस दिन को महाकुम्भ के विशेष स्नान की मान्यता है. इसी तरह १४ अप्रैल मेष सञ्क्रान्ति पर शाही स्नान होगा. मेष संक्रान्ति पर होने वाले इस स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन को अमृत योग का दिन माना जाता है।
२१ अप्रैल को भी स्नान है। २१ अप्रैल २०२१ को रामनवमी के सुअवसर पर महाकुम्भ का बड़ा स्नान होगा। इस दिन भी लाखों श्रद्धालु गङ्गा में डुबकी लगाएंगे. रामनवमी के दिन नदियों का जल ग्रहों की चाल के कारण अत्यन्त पवित्र हो जाता है। वहीं, २७ अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा पर महाकुम्भ का अन्तिम शाही स्नान है।
२७ अप्रैल २०२१ को हरिद्वार महाकुम्भ का अन्तिम शाही स्नान होगा. इस दिन पड़ने वाली चैत्र पूर्णिमा के अवसर पर करोड़ों श्रद्धालु मां गङ्गा में डुबकी लगाएंगे. इस दिन को अमृत योग का दिन माना जाता है।
कुम्भ के समय विशेष स्नानों वाली तिथियों के दिन ग्रहों की विशेष दशा होती है. कुम्भ के लिए प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक तय है. इनमें से प्रत्येक स्थान पर हर बारह वर्ष में महाकुम्भ का आयोजन होता है, जो कुम्भ स्थल से बहते गङ्गा जल को औषधीय गुणों से भर देती है. इन दिनों गङ्गा जल को छूने मात्रा से अमृत्व की प्राप्ति होती है।
हर बारह वर्षों में आने वाले इस महाकुम्भ पर हिंदुओं की विशेष आस्था है. हालांकि, दूसरे धर्मों से जुड़े विदेशी श्रद्धालु भी कुम्भ स्नान का महत्व मानते हुए कुम्भ में स्नान को पहुंचते हैं।
दो महाकुम्भों के मध्य में छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुम्भ का भी आयोजन होता है. मान्यता है कि कुंभ मेला क्षेत्र से गुजर रही पवित्र नदी में स्नान से मनुष्य के मोक्ष प्राप्ति का रास्ता खुल जाता है।
आचार्य स्वामी विवेकानन्द जी
ज्योतिर्विद व सरस् श्री रामकथा व श्रीमद्भागवत कथा प्रवक्ता श्रीधाम श्री अयोध्या जी
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