वट सावित्री व्रत को सौभाग्य देने वाला और संतान की प्राप्ति में सहायक व्रत माना गया है। इस व्रत की तिथि को लेकर भिन्न मत हैं। एक मत के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यह व्रत करने का विधान है, वहीं दूसरे मत के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को व्रत करने की बात कही गई है।
इस मौके पर महिलाओं ने संयुक्त रूप से बताया कि वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा और सावित्री-सत्यवान की कथा के विधान की वजह से यह व्रत वट सावित्री के नाम से जाना जाता है। सावित्री को भारतीय संस्कृति में ऐतिहासिक चरित्र माना जाता है। सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वती भी होता है।
हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को महिलाएं वट सावित्र का व्रत रखकर पूजा अर्चना करती है। वट सावित्री का व्रत उत्तर भारत में ज्येष्ठ मास की अमावस्या एवं दक्षिण भारत की महिलाएं ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, इस देवी सावित्री ने यमराज से अपने मरे हुए पति के प्राण पुनः वापस मांगकर उन्हें जीवित कर लिया था। तभी से विवाहित सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना से यह व्रत रखती है।
मधुबनी से संतोष कुमार शर्मा की रिपोर्ट