मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है, जहां ब्रह्म मुहूर्त में पट खोले जाते हैं तो, मिलती है पूजा की हुई

मध्यप्रदेश के सतना जिले में मैहर तहसील के पास त्रिकूट पर्वत पर स्थित माता के इस मंदिर को मैहर देवी का शक्तिपीठ कहा जाता है। मैहर का मतलब है मां का हार। माना जाता है कि यहां मां सती का हार गिरा था इसीलिए इसकी गणना शक्तिपीठों में की जाती है। करीब 1,063 सीढ़ियां चढ़ने के बाद माता के दर्शन होते हैं। पूरे भारत में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है।
मान्यता है कि शाम की आरती होने के बाद जब मंदिर के कपाट बंद करके सभी पुजारी नीचे आ जाते हैं तब यहां मंदिर के अंदर से घंटी और पूजा करने की आवाज आती है। कहते हैं कि मां के भक्त आल्हा अभी भी पूजा करने आते हैं। अक्सर सुबह की आरती वे ही करते हैं। मान्यता है कि मां ने आल्हा को उनकी भक्ति और वीरता से प्रसन्न होकर अमर होने का वरदान दिया था। लोगों की मानेंं तो आज भी रात 8 बजे मंदिर की आरती के बाद साफ-सफाई होती है और फिर मंदिर के सभी कपाट बंद कर दिए जाते हैं। इसके बावजूद जब सुबह मंदिर को पुन: खोला जाता है तो मंदिर में मां की आरती और पूजा किए जाने के सबूत मिलते हैं।
आज भी यही मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन हर दिन सबसे पहले आल्हा और ऊदल ही करते हैं। इस मंदिर की पवित्रता का अंदाजा महज इस बात से लगाया जा सकता है कि अभी भी  पहला श्रृंगार आल्हा ही करते हैं और जब ब्रह्म मुहूर्त में शारदा मंदिर के पट खोले जाते हैं तो पूजा की हुई मिलती है। जो इस पर विश्वास नहीं करता वे अपनी आंखों से जाकर देख सकता है। इस रहस्य को सुलझाने हेतु वैज्ञानिकों की टीम भी डेरा जमा चुकी है लेकिन रहस्य अभी भी बरकरार है।
आल्हा और ऊदल दो भाई थे। ये बुन्देलखण्ड के महोबा के वीर योद्धा और परमार के सामंत थे। कालिंजर के राजा परमार के दरबार में जगनिक नाम के एक कवि ने आल्हा खण्ड नामक एक काव्य रचा था उसमें इन वीरों की गाथा वर्णित है। इस ग्रंथ में दों वीरों की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन है। इन दोनों भाइयों का युद्ध दिल्ली के तत्कालीन शासक पृथ्वीराज चौहान से हुआ था। पृथ्‍वीराज चौहान को युद्ध में हारना पड़ा था लेकिन इसके पश्चात आल्हा के मन में वैराग्य आ गया और उन्होंने संन्यास ले लिया था। कहते हैं कि इस युद्ध में उनका भाई वीरगति को प्राप्त हो गया था। गुरु गोरखनाथ के आदेश से आल्हा ने पृथ्वीराज को जीवनदान दे दिया था। पृथ्वीराज चौहान के साथ उनकी यह आखरी लड़ाई थी। मां के आदेशानुसार आल्हा ने अपनी साग (हथियार) शारदा मंदिर पर चढ़ाकर नोक टेढ़ी कर दी थी जिसे आज तक कोई सीधा नहीं कर पाया है।

कहते हैं कि दोनों भाइयों ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदादेवी के इस मंदिर की खोज की थी। आल्हा ने यहां 12 वर्षों तक माता की तपस्या की थी। आल्हा माता को शारदा माई कहकर पुकारा करते थे इसीलिए प्रचलन में उनका नाम शारदा माई हो गया। इसके अलावा, ये भी मान्यता है कि यहां पर सर्वप्रथम आदिगुरु शंकराचार्य ने 9वीं-10वीं शताब्दी में पूजा-अर्चना की थी। माता शारदा की मूर्ति की स्थापना विक्रम संवत 559 में की गई थी।

मैहर वाली माता मंदिर के इतिहास में जाये तो जहाँ  मां शारदा की मूर्ति(विग्रह) स्थापित  है वही माँ के  चरणों के नीचे अत्ति प्राचीन एक लेख लिखा है।  एक प्राचीन शिलालेख से मूर्ति की प्राचीन प्रमाण की पहचान होती है। श्री मैहर नगर के पश्चिम दिशा की ओर चित्रकूट पर्वत में श्रद्धेय  शारदा देवी तथा उनके बाईं ओर प्रतिष्ठापित श्री नरसिंह भगवान की पाषाण मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा आज से लगभग 1994 वर्ष पूर्व विक्रमी संवत् 559 शक 424 चैत्र कृष्ण पक्ष चतुर्दशी, मंगलवार के दिन, ईसवी सन् 502 में तोर मान हूण के शासन काल में श्री नुपुल देव द्वारा कराई गई थी।
मान्यता है कि मां शारदा की प्रथम पूजा आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी। मैहर पर्वत का नाम प्राचीन धर्मग्रंथ ‘महेन्द्र’ में मिलता है। इसका उल्लेख भारत के अन्य पर्वतों के साथ पुराणों में भी आया है। सन्‌ 1922 में जैन दर्शनार्थियों की प्रेरणा से तत्कालीन महाराजा ब्रजनाथ सिंह जूदेव ने शारदा मंदिर परिसर में जीव बलि को प्रतिबंधित कर दिया था।
मैहर केवल शारदा मंदिर के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है बल्कि इसके चारों ओर प्राचीन धरोहरें बिखरी पड़ी हैं। मंदिर के ठीक पीछे इतिहास के दो प्रसिद्ध योद्धाओं व देवी भक्त आल्हा- ऊदल के अखाड़े हैं तथा यहीं एक तालाब और भव्य मंदिर है जिसमें अमरत्व का वरदान प्राप्त आल्हा की तलवार उसी की विशाल प्रतिमा के हाथ में थमाई गई है। इसके अलावा 950 ईसा पूर्व चंदेल राजपूत वंश द्वारा बनाया गया गोलामठ मंदिर, 108 शिवलिंगों का रामेश्वरम मंदिर, भदनपुर में राजा अमान द्वारा स्थापित किया गया हनुमान मंदिर अन्य धार्मिक केंद्र हैं।

माँ शारदा(मैहर वाली माता )को विद्या की देवी कहा  जाता है और अगर ये प्रसन्न हो जाये तो हमारे ज्ञान के रस्ते खुल जाते है। नवरात्रि में इस मंत्र जप का आरंभ करने और आजीवन इस मंत्र का पाठ करने से विद्या और बुद्धि में वृद्धि होती है।

ॐ शारदा माता ईश्वरी मैं नित सुमरि तोय हाथ जोड़ अरजी करूं विद्या वर दे मोय।’

मैहर की शारदा माता को प्रसन्न करने का मंत्र इस प्रकार है।

‘शारदा शारदांभौजवदना, वदनाम्बुजे।
सर्वदा सर्वदास्माकमं सन्निधिमं सन्निधिमं क्रियात्।’

नीचे दिए गए मंत्र से मनुष्य की वाणी सिद्ध हो जाती है। समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाला यह मंत्र सरस्वती का सबसे दिव्य मं‍त्र है। सरस्वती गायत्री मंत्र : ‘ॐ वागदैव्यै च विद्महे कामराजाय धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्‌।’   कहते है इस  मंत्र की 5 माला का जाप करने से साक्षात मां शारदा प्रसन्न हो जाती हैं तथा साधक को ज्ञान-विद्या का लाभ प्राप्त होना शुरू हो जाता है।

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