चुनाव के वक़्त यहां रांची में क्या कर रहे हो ? जाओ फलां की मदद करो…… रांची से टिकटार्थियों को निपटाने का लालू स्टाइल !

राघवेन्द्र, वरिष्ठ पत्रकार

राघवेन्द्र

ये रांची में रिम्स का डायरेक्टर बंगला है। इन दिनों बिहारी राजनीति के महाबली लालू प्रसाद यहीं कैद में हैं, पहले लालू प्रसाद अस्पताल के कॉटेज में थे, पर कोरोना काल में ज्यादा सुरक्षा की दृष्टि से हेमंत सोरेन सरकार ने गठबंधन का मित्र धर्म निभाते हुए इन्हें रिम्स निदेशक के खाली पड़े विशाल बंगले में जगह दी है। अभी रिम्स में स्थायी निदेशक हैं भी नहीं सो राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यहां आराम से हैं। बिहार से राजद के टिकट चाहने वालों की भीड़ रोज इस बंगले में जुटती है, जिसे लालू प्रसाद अपने अंदाज में निपटाते हैं।

इन दिनों लालू प्रसाद और उनकी सेवा सुश्रुषा में लगे लोग भी इस भीड़ की वजह से खासे परेशान हैं। कितना भी डांटने और रोकने के बावजूद बिहार के विभिन्न जिलों से पहुंच रहे लोग हटने को तैयार नहीं। वो बंगले के बाहर के एक दुर्गा मंदिर के पास या फिर रोड पारकर होटलों में जम जाते हैं। फिर दूसरी बार मिलने की उम्मीद में। यहां पहुंचने वाले लोगों को लगता है कि अगर एक बार लालू प्रसाद का आशीर्वाद मिल गया तो फिर उनका टिकट कन्फर्म।

लालू प्रसाद की हनुमान चालीसा…
पहले रिम्स के वार्ड, फिर कॉटेज और अब डायरेक्टर बंगले में भर्ती लालू प्रसाद के बंदी जीवन में एक बात कॉमन है। वह है उनकी हनुमान भक्ति। इनके कमरे से हनुमान चालीसा पढने की तेज़ आवाज़ पहले भी आती थी और अब भी। शायद राजद के ये महाबली कुछ ज्यादा ही बेचैन हैं. रिम्स में लालू की सेवा में लगे लोग बताते हैं कि जय हनुमान ज्ञान गुण सागर का स्वर पहले इतना तेज़ नहीं था, सियासत के महाबली लालू एकाकीपन के इन क्षणों में शायद बिहार की भावी राजनीति और इस विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी की भूमिका का भी रेखा चित्र बना रहे हैं.

समाजवादी राजनीति के महाबली लालू प्रसाद का हर बात का अपना एक स्टाइल है। उन्हें हर विधानसभा क्षेत्र के कार्यकर्ताओं और नेताओं का हिसाब किताब मालूम है। इसलिए जैसे ही कोई उम्मीदवारी की बात करता है तो वो तुरन्त दल के उसके विरोधी के बारे में, उसकी तैयारियों के बारे में पूछने लगते हैं। जो सीरियस उम्मीदवार होता है, उसे राजद के किसी बड़े नेता (खासकर परिवार के) से मिलने की बात कह देते हैं। किसी किसी को देखते ही डांट लगाते हैं कि चुनाव के वक़्त यहां रांची में क्या कर रहे हो। जाओ फलां की मदद करो।

लालू प्रसाद से मिलने वालों में केवल राजद के ही नेता नहीं हैं। कांग्रेस के लगभग सभी बड़े सूरमा रांची की सैर कर आये हैं। झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री कांग्रेसी हैं, तो कुछ कांग्रेसी उनके जरिये भी लालू प्रसाद से मिलते रहे हैं। रालोसपा अब भले ही महागठबंधन से बाहर है पर जब पार्टी गठबंधन का हिस्सा थी तब उपेंद्र कुशवाहा समेत कई नेता उनसे मिलने गए ही थे।

कैदी लालू के यहां हो रहे राजनीतिक पर्यटन पर भाजपा खासी हमलावर है। रांची में भाजपा के प्रवक्ता हर दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस कर राज्य सरकार पर लालू के प्रति अतिरिक्त नियम विरुद्ध मेहरबानी का आरोप लगाते हैं। भाजपा के आरोपों का ही नतीजा है कि लालू प्रसाद के सुपुत्र तेजप्रताप यादव पर लॉक डाउन तोड़ने का केस हुआ, जिसके लपेटे में झारखंड राजद अध्यक्ष भी आये।

मिलने वाले गंभीर लोगों से बातचीत में एक बात कॉमन है कि देश को नरेंद्र मोदी ने और बिहार को नीतीश कुमार ने बर्बाद करके रख दिया है।
कोरोना काल में इन्हें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से पेरोल पर रिहाई की उम्मीद थी जो अब तक पूरी नहीं हुई। ऐसे में कबीर के दोहों को सियासी प्रतीक के रूप में इस्तेमाल कर रहे लालू प्रसाद के सन्नाटे भरे कोहराम को समझना जरुरी है …
हेमंत सरकार जिसमें राजद और कांग्रेस भी शामिल है, के तमाम प्रयासों के बावजूद राज्य सरकार इन्हें पेरोल पर छोड़ने का फैसला नहीं कर पा रही है।
आखिर लालू प्रसाद को पेरोल पर छोड़ने से हेमंत सरकार क्यों हिचक रही है, जानकार मानते हैं कि हाई कोर्ट के डर से।
कई बार तेजस्वी ने भी कहा है कि वो चिंतित हैं क्योंकि 72 साल की उम्र होने और किडनी, हृदय रोग और मधुमेह जैसी बीमारियों से जूझने के कारण उनके पिता लालू प्रसाद को महामारी के दौरान और सुरक्षात्मक उपाय करने की जरूरत है। उन्होंने ये भी कहा था कि जिनके परिवार हैं, वही महसूस कर सकते हैं कि मैं क्या कह रहा हूं।

 

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