जानिए निर्जला एकादशी/भीमसेनी एकादशी व्रत की महिमा

जानिए निर्जला एकादशी/भीमसेनी एकादशी व्रत की महिमा

============================

निर्जला एकादशी व्रत २१ जून २०२१ सोमवार को रखें

=================================

चावल वजिर्त क्यों वर्ष की चौबीसों एकादशियों में चावल “न” खाने की सलाह दी जाती है। ऐसा माना गया है कि इस दिन चावल खाने से प्राणी रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म पाता है, किन्तु द्वादशी को चावल खाने से इस योनि से मुक्ति भी मिल जाती है।

 

एकादशी के विषय में शास्त्र कहते हैं,

*न विवेकसमो बन्धुर्नैकादश्या: परं व्रतं’*

यानी विवेक के सामान कोई बंधु नहीं है

और एकादशी से बढ़ कर कोई व्रत नहीं है।

 

पांच ज्ञान इन्द्रियां, पांच कर्म इन्द्रियां और एक मन, इन ग्यारहों को जो साध ले, वह प्राणी एकादशी के समान पवित्र और दिव्य हो जाता है।

 

एकादशी जगतगुरु विष्णुस्वरुप है, जहां चावल का संबंध जल से है, वहीं जल का संबंध चंद्रमा से है। पांचों ज्ञान इन्द्रियां और पांचों कर्म इन्द्रियों पर मन का ही अधिकार है। मन ही जीवात्मा का चित्त स्थिर-अस्थिर करता है। मन और श्वेत रंग के स्वामी भी चंद्रमा ही हैं, जो स्वयं जल, रस और भावना के कारक हैं, इसीलिए जलतत्त्व राशि के जातक भावना प्रधान होते हैं, जो अक्सर धोखा खाते हैं।

 

एकादशी के दिन शरीर में जल की मात्र जितनी कम रहेगी, व्रत पूर्ण करने में उतनी ही अधिक सात्विकता रहेगी।

 

महाभारत काल में वेदों का विस्तार करने वाले भगवान व्यास ने पांडव पुत्र भीम को इसीलिए निर्जला एकादशी (वगैर जल पिए हुए) करने का सुझाव दिया था। आदिकाल में देवर्षि नारद ने एक हजार वर्ष तक एकादशी का निर्जल व्रत करके नारायण भक्ति प्राप्त की थी। वैष्णव के लिए यह सर्वश्रेष्ठ व्रत है।

 

चंद्रमा मन को अधिक चलायमान न कर पाएं, इसीलिए व्रती इस दिन चावल खाने से परहेज करते हैं।

 

एक और पौराणिक कथा है कि माता शक्ति के क्रोध से भागते-भागते भयभीत महर्षि मेधा ने अपने योग बल से शरीर छोड़ दिया और उनकी मेधा पृथ्वी में समा गई। वही मेधा जौ और चावल के रूप में उत्पन्न हुईं। ऐसा माना गया है कि यह घटना एकादशी को घटी थी। यह जौ और चावल महर्षि की ही मेधा शक्ति है, जो जीव हैं। इस दिन चावल खाना महर्षि मेधा के शरीर के छोटे-छोटे मांस के टुकड़े खाने जैसा माना गया है, इसीलिए इस दिन से जौ और चावल को जीवधारी माना गया है।

 

आज भी जौ और चावल को उत्पन्न होने के लिए मिट्टी की भी जरूत नहीं पड़ती। केवल जल का छींटा मारने से ही ये अंकुरित हो जाते हैं। इनको जीव रूप मानते हुए एकादशी को भोजन के रूप में ग्रहण करने से परहेज किया गया है, ताकि सात्विक रूप से विष्णुस्वरुप एकादशी का व्रत संपन्न हो सके।

 

सभी व्रतों में एकादशी का व्रत श्रेष्ठ माना गया है और एकदाशी के व्रतों में निर्जला‌ एकादशी व्रत को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है. ज्येष्ठ मास में जब गर्मी पूरे तेवर दिखा रही होती है तब यह व्रत आता है।

 

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहां जाता है जो एक्कीस जून सोमवार को पड़ रही है. इस एकादशी को भीमसेनी, भीम एकादशी और पाण्डव एकादशी भी कहा जाता है।

 

पानी नहीं पीते हैं इस व्रत में जैसा का नाम से ही स्पष्ट होता है.निर्जला यानि इस व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है। इसीलिए इसे निर्जला व्रत कहा जाता है. जल

के साथ साथ अन्न भी ग्रहण नहीं किया जाता है. इतना ही नहीं इस व्रत में कठोर नियमों का भी पालन करना होता है. जिस कारण से व्रत सबसे कठिन व्रत कहलाता है।

 

 व्रत की विधि

============

यह व्रत पंचांग के अनुसार आरंभ करना चाहिए. एकादशी का व्रत दशमी की तिथि से ही प्रारंभ हो जाता है. इस व्रत में सूर्योदय से लेकर अगले दिन द्वादशी तिथि के सूर्य उदय तक जल और भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है।

 

पूजा विधि

===========

सुबह स्नान करने के बाद पूजा स्थान को शुद्ध करें और व्रत का संकल्प लें. इसके बाद भगवान विष्णु की प्रिय वस्तुओं का अर्पण और भोग लगाएं. पीले वस्त्र और पीले रंग के मिष्ठान का भोग उत्तम माना गया है. इसके बाद पूजा आरंभ करें और व्रत का पालन करें।

 

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष में चौबीस एकादशियां होती हैं। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी या भीमसेनी एकादशी कहते हैं। इस व्रत में भोजन करना और पानी पीना वर्जित है। धर्मग्रंथों के अनुसार, इस एकादशी पर व्रत करने से वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य मिलता है।

 

निर्जला एकादशी की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद सबसे पहले शेषशायी भगवान विष्णु की पंचोपचार पूजा करें। इसके बाद मन को शांत रखते हुए ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें। शाम को पुन: भगवान विष्णु की पूजा करें व रात में भजन कीर्तन करते हुए धरती पर विश्राम करें। दूसरे दिन किसी योग्य ब्राह्मण को आमंत्रित कर उसे भोजन कराएं तथा जल से भरे कलश के ऊपर सफेद वस्त्र ढक कर और उस पर शर्करा (शक्कर) तथा दक्षिणा रखकर ब्राह्मण को दान दें।

 

इसके अलावा यथाशक्ति अन्न, वस्त्र, आसन, जूता, छतरी, पंखा तथा फल आदि का दान करना चाहिए, इसके बाद स्वयं भोजन करें। इस दिन विधिपूर्वक जल कलश का दान करने वालों को वर्ष भर की एकादशियों का फल प्राप्त होता है। इस एकादशी का व्रत करने से अन्य तेईस एकादशियों पर अन्न खाने का दोष छूट जाता है-

 

एवं य: कुरुते पूर्णा द्वादशीं पापनासिनीम् ।

सर्वपापविनिर्मुक्त: पदं गच्छन्त्यनामयम् ॥

 

इस प्रकार जो इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है,

वह समस्त पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।

 

निर्जला एकादशी व्रत कथा

====================

एक बार जब महर्षि वेदव्यास पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प करा रहे थे। तब महाबली भीम ने उनसे कहा- पितामह। आपने प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं तो एक दिन क्या, एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता- मेरे पेट में वृक नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्य व्रत से वंचित रह जाऊंगा?

तब महर्षि वेदव्यास ने भीम से कहा- कुंतीनंदन भीम ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करो और तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। नि:संदेह तुम इस लोक में सुख, यश और मोक्ष प्राप्त करोगे। यह सुनकर भीमसेन भी निर्जला एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए और समय आने पर यह व्रत पूर्ण भी किया। इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।

 

निर्जला एकादशी का महत्व

====================

०१. निर्जला एकादशी के व्रत से साल की सभी

२४ एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है।

 

०२. एकादशी व्रत से मिलने वाला पुण्य सभी तीर्थों और दानों से ज्यादा है। मात्र एक दिन बिना पानी के रहने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश हो जाता है।

 

०३. व्रती (व्रत करने वाला) मृत्यु के बाद यमलोक न जाकर भगवान के पुष्पक विमान से स्वर्ग को जाता है।

 

०४. व्रती को स्वर्ण दान का फल मिलता है। हवन, यज्ञ करने पर अनगिनत फल पाता है। व्रती विष्णुधाम यानी वैकुण्ठ पाता है।

 

०५. व्रती चारों पुरुषार्थ यानी धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को प्राप्त करता है।

 

०६. व्रत भंग दोष- शास्त्रों के मुताबिक अगर निर्जला एकादशी करने वाला व्रती, व्रत रखने पर भी भोजन में अन्न खाए, तो उसे चांडाल दोष लगता है।

 

अस्तु आज बालक वृद्ध, अथवा रोगी को छोड़ कर यह व्रत सभी को रहना चाहिए।

 

आचार्य स्वामी विवेकानन्द जी

ज्योतिर्विद, वास्तुविद

श्रीधाम श्री अयोध्या जी

संपर्क सूत्र:-9044741252‏

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *