।।शास्त्रोक्त रक्षा बंधन कब।।

शास्त्र कहता है –
भद्रायाम् द्वय न कर्तव्य: श्रावणी फाल्गुनी तथा।
अर्थात –
भद्रा में दो कार्य नहीं करना चाहिए पहला श्रावणी यहां  श्रावणी का अर्थ रक्षाबंधन से है। और दूसरा होलीये कार्य नहीं करना चाहिए।
फिर चाहे भद्रा  स्वर्ग,पाताल,पृथ्वी कहीं पर भी हो वह विघ्न कारक होती है।
अस्तु भारत वर्ष के सभी विद्वानों द्वारा सभी प्रतिष्ठित पंचागों में स्पष्ट किया है की रक्षा बंधन ११/०८/२०२२ को रात्रि ०८:२५ के उपरान्त ही मान्य होगा जोकि अगले दिन यानी १२/०८/२०२२ को मात्र प्रातः०७:१६ मिनट तक ही मान्य रहेगा १२ को केवल प्रातः०७:१६ तक ही है चूकी प्रतिपदा में भी रक्षा बंधन नही बाधा जाता है। प्रतिपदा भी वर्जित है।

वैदिक रक्षासूत्र

रक्षाबंधन (राखी) पर विशेष

रक्षासूत्र मात्र एक धागा नहीं बल्कि शुभ भावनाओं व शुभ संकल्पों का पुलिंदा है। यही सूत्र जब वैदिक रीति से बनाया जाता है और भगवन्नाम व भगवद्भाव सहित शुभ संकल्प करके बाँधा जाता है तो इसका सामर्थ्य असीम हो जाता है।

प्रति वर्ष श्रावणी-पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्यौहार होता है, इस दिन आचार्य पुरोहित अपने यजमान/बहनें अपने भाई को रक्षा-सूत्र बांधती हैं। यह रक्षासूत्र यदि वैदिक रीति से बनाया जाए तो शास्त्रों में भी उसका बड़ा महत्व है।

कैसे बनायें वैदिक राखी ?

वैदिक राखी बनाने के लिए सबसे पहले एक छोटा-सा ऊनी, सूती या रेशमी पीले कपड़े का टुकड़ा लें।

०१- दूर्वा

०२- अक्षत (साबूत चावल)

०३- केसर या हल्दी

०४- शुद्ध चंदन

०५ – सरसों के साबूत दाने

इन पाँच चीजों को मिलाकर कपड़े में बाँधकर सिलाई कर दें। फिर कलावे से जोड़कर राखी का आकार दें। सामर्थ्य हो तो उपरोक्त पाँच वस्तुओं के साथ स्वर्ण भी डाल सकते हैं।

वैदिक राखी का महत्त्व

वैदिक राखी में डाली जाने वाली
वस्तुएँ हमारे जीवन को उन्नति की
ओर ले जाने वाले संकल्पों को पोषित
करती हैं।

०१- दूर्वा

जैसे दूर्वा का एक अंकुर जमीन में लगाने पर वह हजारों की संख्या में फैल जाती है, वैसे ही ‘हमारे भाई या हितैषी के जीवन में भी सद्गुण फैलते जायें, बढ़ते जायें…’इस भावना का द्योतक है दूर्वा। दूर्वा गणेश जी की प्रिय है अर्थात् हम जिनको राखी बाँध रहे हैं उनके जीवन में आनेवाले विघ्नों का नाश हो जाय।

०२ – अक्षत (साबूत चावल)

हमारी भक्ति और श्रद्धा भगवान के, गुरु के चरणों में अक्षत हो, अखंड और अटूट हो, कभी क्षत-विक्षत न हो – यह अक्षत का संकेत है। अक्षत पूर्णता की भावना के प्रतीक हैं। जो कुछ अर्पित किया जाय, पूरी भावना के साथ किया जाय।

०३ – केसर या हल्दी

केसरकेसर की प्रकृति तेज होती है अर्थात् हम जिनको यह रक्षासूत्र बाँध रहे हैं उनका जीवन तेजस्वी हो। उनका आध्यात्मिक तेज, भक्ति और ज्ञान का तेज बढ़ता जाय । केसर की जगह पिसी हल्दी का भी प्रयोग कर सकते हैं। हल्दी पवित्रता व शुभ का प्रतीक है। यह नजरदोष व नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है तथा उत्तम स्वास्थ्य व सम्पन्नता लाती है।

०४- चंदन

चंदन दूसरों को शीतलता और सुगंध देता है। यह इस भावना का द्योतक है कि जिनको हम राखी बाँध रहे हैं, उनके जीवन में सदैव शीतलता बनी रहे, कभी तनाव न हो। उनके द्वारा दूसरों को पवित्रता, सज्जनता व संयम आदि की सुगंध मिलती रहे। उनकी सेवा-सुवास दूर तक फैले।

०५- सरसों

जैसे सरसों तीक्ष्ण होती है। इसी प्रकार हम अपने दुर्गुणों का विनाश करने में, समाज-द्रोहियों को सबक सिखाने में तीक्ष्ण बनें।

अतः यह वैदिक रक्षासूत्र वैदिक
संकल्पों से परिपूर्ण होकर
सर्व-मंगलकारी है।

रक्षासूत्र बाँधते समय यह
श्लोक बोला जाता है :

येन बद्धो बली राजा
दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वां अभिबध्नामि१
रक्षे मा चल मा चल।।

रक्षासूत्र बाँधते समय एक श्लोक
और पढ़ा जाता है जो इस प्रकार है-

ओम यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्यं, शतानीकाय सुमनस्यमाना:। तन्मSआबध्नामि शतशारदाय, आयुष्मांजरदृष्टिर्यथासम्।।

इस मंत्रोच्चारण व शुभ संकल्प सहित वैदिक राखी बहन अपने भाई को, माँ अपने बेटे को, दादी अपने पोते को बाँध सकती है। यही नहीं, शिष्य भी यदि इस वैदिक राखी को अपने सद्गुरु को प्रेम सहित अर्पण करता है तो उसकी सब अमंगलों से रक्षा होती है भक्ति बढ़ती है।

महाभारत में यहरक्षा सूत्र माता कुंती ने अपने पोते अभिमन्यु को बाँधी थी । जब तक यह धागा अभिमन्यु के हाथ में था तब तक उसकी रक्षा हुई, धागा टूटने पर अभिमन्यु की मृत्यु हुई। इस प्रकार इन पांचवस्तुओं से बनी हुई वैदिक राखी को शास्त्रोक्त नियमानुसार बांधते हैं हम पुत्र-पौत्र एवं बंधुजनों सहितवर्ष भर सूखी रहते हैं।

रक्षा सूत्रों के विभिन्न प्रकार

विप्र रक्षा सूत्र- रक्षाबंधन के दिन किसी तीर्थ अथवा जलाशय में जाकर वैदिक अनुष्ठान करने के बाद सिद्ध रक्षा सूत्र को विद्वान पुरोहित ब्राह्मण द्वारा स्वस्तिवाचन करते हुए यजमान के दाहिने हाथ मे बांधना शास्त्रों में सर्वोच्च रक्षा सूत्र माना गया है।

गुरु रक्षा सूत्र- सर्वसामर्थ्यवान गुरु अपने शिष्य के कल्याण के लिए इसे बांधते है।

मातृ-पितृ रक्षा सूत्र- अपनी संतान की रक्षा के लिए माता पिता द्वारा बांधा गया रक्षा सूत्र शास्त्रों में “करंडक” कहा जाता है।

भातृ रक्षा सूत्र- अपने से बड़े या छोटे भैया को समस्त विघ्नों से रक्षा के लिए बांधी जाती है देवता भी एक दूसरे को इसी प्रकार रक्षा सूत्र बांध कर विजय पाते है।

स्वसृ-रक्षासूत्र- पुरोहित अथवा वेदपाठी ब्राह्मण द्वारा रक्षा सूत्र बांधने के बाद बहिन का पूरी श्रद्धा से भाई की दाहिनी कलाई पर समस्त कष्ट से रक्षा के लिए रक्षा सूत्र बांधती है। भविष्य पुराण में भी इसकी महिमा बताई गई है। इससे भाई दीर्घायु होता है एवं धन-धान्य सम्पन्न बनता है।

गौ रक्षा सूत्र- अगस्त संहिता अनुसार गौ माता को राखी बांधने से भाई के रोग शोक डोर होते है। यह विधान प्राचीन काल से चला आ रहा है।

वृक्ष रक्षा सूत्र – यदि कन्या को कोई भाई ना हो तो उसे वट, पीपल, गूलर के वृक्ष को रक्षा सूत्र बांधना चाहिए पुराणों में इसका विशेष उल्लेख है।

वैदिक रक्षा-सूत्र (रक्षाबंधन)

वैदिक रक्षाबंधन – प्रतिवर्ष श्रावणी-पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्यौहार होता है, इस बार ११ अगस्त २०२२ गुरुवार को राखी बांधने का शुभ मुहूर्त – रात्रि ०८:२५ के उपरान्त से लेकर दूसरे दिन यानी १२/०८/२०२२ को प्रातः ०७:१६ तक ही है। इस दिन बहनें अपने भाई को रक्षा-सूत्र बांधती हैं। यह रक्षा सूत्र यदि वैदिक रीति से बनाई जाए तो शास्त्रों में उसका बड़ा महत्व है।

पांच वस्तुओं से बनी हुई एक राखी को सर्वप्रथम गुरुदेव के श्री-चित्र पर अर्पित करें। फिर बहनें अपने भाई को, माता अपने बच्चों को, दादी अपने पोते को शुभ संकल्प करके बांधे।

महाभारत में यह रक्षा सूत्र माता कुंती ने अपने पोते अभिमन्यु को बाँधी थी। जब तक यह धागा अभिमन्यु के हाथ में था तब तक उसकी रक्षा हुई, धागा टूटने पर अभिमन्यु की मृत्यु हुई।

इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई वैदिक राखी को शास्त्रोक्त नियमानुसार बांधते हैं हम पुत्र-पौत्र एवं बंधुजनों सहित वर्ष भर सुखी रहते हैं।

 

आचार्य स्वामी विवेकानन्द जी
श्री रामकथा व श्रीमद्भागवत कथा व्यास श्रीधाम श्री अयोध्या जी
संपर्क सूत्र:-९०४४७४१२५२

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