सर्वप्रथम आप सभी के भीतर बैठे परमाराध्य युगल प्रभूश्री सीताराम जी के पादपदमों में अनन्तकोटि दण्डवत व जय श्री सीताराम।
यूं तो कार्तिक माह का व्रत जब तक शरीर से हो पाए करते रहना चाहिए। किन्तु शास्त्रोक्त विधि का पालन यदि न हो पाए तो समय से व्रत को व्रती जनों को उत्तम ब्राह्मण विद्वानों द्वारा उद्यापन करना चाहिए।
स्कन्दपुराण के वैष्णव खण्ड में कार्तिकमाह का महात्म्य स्वयं पितामहः ब्रह्मा जी वर्णन करते है। वही विध जैसा वाप्त है !आप सभी के समक्ष यथावत करता हूँ।
जो पुण्यात्मा कार्तिक माह व्रत का पालन करनेवाला हो वह कार्तिक शुककपक्ष की चतुर्दशी को व्रत की पूर्ति व भगवान श्रीहरि विष्णु की प्रीति के लिए व्रत का उद्यापन करे।
सर्वप्रथम यथा शक्ति माता तुलसी के ऊपर एक मण्डप बनवावे।उसे केले के खंभों से संयुक्त करके नाना प्रकार की धातुओं से उसकी विचित्र शोभा बढ़ावे। मण्डप के चारों ओर सुंदर दीपकों की श्रेणी सजावे। उस मण्डप में सुंदर बन्दनवारों से सुशोभित चार द्वार बनावे और उन्हें फूलों तथा चवँर से सुसज्जित करे।द्वारों पर पृथक-पृथक मिट्टी के द्वारपाल बनाकर उनकी पूजा करे। उन द्वारपालों के नाम इस प्रकार हैं।
जय, विजय, चण्ड, प्रचण्ड, नन्द, सुनन्द, कुमुद और कुमुदाक्ष। इन्हें चारों दरवाजे पर दो -दो के क्रम से स्थापित कर भक्तिपूर्वक इनका पूजन करें।
माता तुलसी की जड़ के समीप चार रंगों से सुशोभित सर्वतोभद्रमण्डल और उसके ऊपर पूर्णपात्र तथा पंचरत्न से युक्त कलश की स्थापना करें। कलश के ऊपर शंख-चक्र गदा-पद्मधारी भगवान श्री हरि विष्णु का पूजन करें। भक्तिपूर्वक उस तिथि में उपवास करें तथा रात्रि में गीत, वाद्य, कीर्तन आदि मंगल मय आयोजनों के साथ रात्रि जागरण करें। जो भगवान विष्णु के लिए जागरण करते समय भक्तिपूर्वक भगवत्सम्बन्धी पदों का गान करते हैं वे सैकड़ो जन्मों की पाप राशि से मुक्त हो जाते हैं। रात्रि जागरण के उपरांत पूर्णिमा तिथि में एक या यथा शक्ति सपत्नीक ब्राह्मण देवता को निमंत्रित करें।
प्रातः काल स्नान और देव पूजन करके यज्ञकुण्ड की वेदी पर अग्नि स्थापन करें और ब्राह्मणों द्वारा अतो देव मन्त्र के द्वारा भगवान विष्णु की प्रीति के लिए खीर और तिल की आहुति दें। यज्ञोपरांत ब्राह्मण ब्राह्मणी को श्रीहरि विष्णु व माता लक्ष्मी मां कर सविधि पूजन करें और उन्हें यथा शक्ति विधिवत भोजन प्रसाद करावे व वस्त्र, रत्न, द्रव्य-दक्षिणा प्रदान करें। इस प्रकार वेद विहित उद्यापन कर ब्राह्मणों का आशीर्वाद ले और स्वयं भगवद्प्रसाद को सपरिवार ग्रहण करे ।
परमपीता ब्रह्मा जी देवर्षि नारद जी से कहते हैं वत्स जो भी मनुष्य ,, इस व्रत को सविध उद्यापन करते हैं! वे धन्य और पूजनीय हैं उन्हें उत्तम फल की प्राप्ति होती है। उनके शरीर मे स्थित सभी पापताप तत्क्षण नष्ट हो जाते हैं। जो श्रद्धा पूर्वक कार्तिक व्रत के उद्यापन का महात्म्य सुनता या सुनाता है, वह भगवान श्री हरि विष्णु का सायुज्य गति प्राप्त करता है इसमें तनिक भी संदेह नहीं।
हे भद्र सुनो भगवान द्वादशी तिथि को चातुर्मास सयन से उठे, त्रयोदशी को देवताओं से मिले और चतुर्दशी को सबने मिलकर उनका दर्शन – पूजन किया इसी कारण उस तिथि में प्रभु का पूजन करना चाहिए। गुरु की आज्ञा से भगवान विष्णु की सुवर्ण मयी प्रतिमा का पूजन करे। इस पूर्णिमा को, श्री अयोध्या, वृंदावन या पुष्कर की यात्रा सर्वश्रेष्ठ मानी गयी है।
हे वत्स कार्तिकमाह की अंतिम तीनो तिथियों में स्नान ध्यान से सम्पूर्ण कार्तिकमाह के स्न्नान का फल अभीष्ट हो जाता है।
त्रयोदशी में समस्त वेद जाकर प्रणियों को पवित्र करते हैं।
चतुर्दशी में यज्ञ और देवता सब जीवों को पावन करते हैं, और पूर्णिमा में भगवान श्रीहरि विष्णु से अधिष्टित संपूर्ण श्रेष्ठ तीर्थ ब्रह्मघाती और शराबी आदि सभी पापात्माओं को शुद्ध करते हैं।
जो ग्रहस्थ इन तीन तिथियों में ब्रह्मणकुटुम्ब को भोजन से दक्षिणा प्रदान करता है वह अपने समस्त पितरों का उद्धार करके परम पद को प्राप्त होता है।जो उक्त तीनों दिन श्रीमद्भगवद्गीता,श्रीरामचरितमानस, या श्रीमद्भागवत का पाठ करता है वह जल से कमल के पत्तों की भाँति पापों से कभी लिप्त नहीं होता ऐसा करने वाले कुछ मनुष्य देवता व सिद्ध होते हैं।
कार्तिकमाह कि अंतिम तीन तिथियों में सभी प्रकार के पुण्यों का उदय होता है। उनमें पूर्णिमा का विशेष महत्व है।
आचार्य स्वामी विवेकानन्द जी सरस सङ्गीत मय श्री रामकथा
श्रीमद्भागवत कथा व्यास व ज्योतिर्विद श्री धाम श्री अयोध्या जी
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