प्रेस रिलीज
कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन ने ” बाल विवाह ” रोकने के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं का किया सम्मेलन
पटना 28 सितंबर, 2022। देश को सबसे ज्यादा सिविल सर्विसेज के अधिकारी देने की पहचान रखने वाले बिहार राज्य की स्थिति बाल विवाह को लेकर काफी शोचनीय है। भारत सरकार की साल 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में 12,09,260 लोगों का बाल विवाह हुआ है। यह पूरे देश के बाल विवाह का करीब 11 प्रतिशत है। बाल विवाह के मामले में बिहार, देशभर में तीसरे नंबर पर है। देश की राजनीति में अहम स्थान रखने वाले बिहार जैसे राज्य के लिए यह आंकड़े लंबे समय से चिंता का सबब बने हुए हैं। नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) द्वारा यहां आयोजित ” बाल विवाह मुक्त भारत ” अभियान में जुटी स्वयंसेवी संस्थाओं ने बिहार की इस स्थिति पर चिंता जाहिर की और सरकार से अपील की कि बाल विवाह रोकने के लिए कानून का सख्ती से पालन करवाया जाए ताकि अपराधियों के मन में खौफ पैदा हो और बाल विवाह की सामाजिक बुराई को खत्म किया जा सके। इस संबंध में केएससीएफ ने राज्य के चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर प्रदेश की राजधानी पटना में सम्मेलन आयोजित किया। इसमें बाल विवाह के पूर्ण खात्मे को लेकर गहन विचार – विमर्श हुआ। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के ताजा आंकड़े भी साल 2011 की जनगणना के आंकड़ों की तस्दीक करते हैं। सर्वे के अनुसार देश में 20 से 24 साल की उम्र की 23.3 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं जिनका बाल विवाह हुआ है। वहीं, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार प्रदेश में साल 2019 में आठ, साल 2020 में पांच और साल 2021 में 13 मामले बाल विवाह के दर्ज किए गए। इससे साफ होता है कि बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई के प्रति लोग आंखें मूंदकर बैठे हैं। सम्मेलन में जनता, सरकार और सुरक्षा एजेंसियों से बाल विवाह के मामलों में गंभीरता बरतने व सख्त से सख्त कदम उठाने की अपील की गई। सम्मेलन में बाल विवाह रोकने के लिए कानूनी पहलुओं पर चर्चा की गई। इसमें प्रमुख रूप से बाल विवाह के मामले में अनिवार्य एफआईआर दर्ज करने, बाल विवाह को जुवेनाइल जस्टिस एक्ट और पॉक्सो एक्ट से जोड़ने पर विमर्श हुआ। इसका मकसद कानून तोड़ने वालों को सख्त से सख्त सजा दिलाना है। साथ ही देश के हर जिले में बाल विवाह रोकने वाले अधिकारी (सीएमपीओ) की नियुक्ति की मांग भी उठाई गई। इन अधिकारियों को बाल विवाह रोकने के लिए उचित प्रशिक्षण देने और उन्हें अभिभावकों को इसके खिलाफ प्रोत्साहन देने की भी बात कही गई। सम्मेलन में चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की कुलपति मृदुला मिश्रा, बिहार की न्यायिक अकादमी के निदेशक राकेश मालवीय, विवि के रजिस्ट्रार मनोरंजन प्रसाद श्रीवास्तव, बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के संयुक्त सचिव धरिति जसलीन शर्मा, वीकर सेक्शन के एडीजी अनिल किशोर यादव और कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन व इसकी सहयोगी संस्था के स्टेट कन्वीनर मुख्तारुल हक समेत अनेक गणमान्य हस्तियां मौजूद रहीं।
सम्मेलन में विश्वविद्यालय की कुलपति मृदुला मिश्रा ने कहा, बाल विवाह प्राचीन काल से होता आ रहा है। बिहार के मिथिलांचल में कई सदियों से बाल विवाह की परंपरा रही है, मेरा खुद का विवाह 16 साल की उम्र में हो गया था। हालांकि बाल विवाह रोकने को कानून है लेकिन लोग परंपरा को तरजीह देते हैं। इस सामाजिक बुराई के जारी रहने में गरीबी की अहम भूमिका है। इन सबको बदलने की जरूरत है।
बाल विवाह से बच्चों के खराब होते जीवन पर चिंता व्यक्त करते हुए कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन व इसकी सहयोगी संस्था के स्टेट कन्वीनर मुख्तारुल हक ने कहा, बाल विवाह सामाजिक बुराई है और इसे बच्चों के प्रति सबसे गंभीर अपराध के रूप में ही लिया जाना चाहिए। बाल विवाह बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास को खत्म कर देता है। इस सामाजिक बुराई को रोकने के लिए हम सभी को एकजुट होकर प्रयास करना होगा। उन्होंने कहा, उनका संगठन कैलाश सत्यार्थी के नेतृत्व में सरकार, सुरक्षा एजेंसियों एवं नागरिक संगठनों के साथ मिलकर काम कर रहा है ताकि राजस्थान को बाल विवाह मुक्त किया जा सके।