ज्ञान रंजन मिश्रा, आरा (भोजपुर)
“टमटम पड़ाव”
रोहन अपने गांव जाने के लिए पिछली रात दिल्ली रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़ा और अगली सुबह जब बुआ बिहार के आरा जिला की छोटे से रेलवे स्टेशन बनाई उतरने के बाद जब बाहर की ओर निकलता है और देखता है कि चारों को सन्नाटा छाया हुआ है. अचानक उसके मुंह से एक शब्द निकलता है,कहां गई वह टमटम गाड़ियां. जिस पर बैठकर हम अपने घर का रास्ता तय करते थे. वहां के लोगों से उसने पूछा तो पता चला कि ना टमटम गाडिया रही ना टमटम चलाने वाले उसके इकवान. बचा है तो सिर्फ एक टूटा फूटा साइन बोर्ड जिस पर लिखा था “टमटम पड़ाव”.
टमटम गाड़ियां ना सिर्फ गरीब लोगों के लिए एक आय का प्रमुख स्रोत थी बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन का एक प्रमुख साधन भी. उस पर बैठ खेत खलियान एवं प्रकृति का आनंद लेते हुए 10 से 12 लोग आसानी से अपने घर तक की यात्रा किया करते थे. ना उससे कोई वायु प्रदूषण का खतरा ना ही सड़क दुर्घटना की आशंका.
टमटम गाड़ियों की संरचना:-
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टमटम गाड़ियां एक विशेष प्रकार की गाड़ियां होती थी. लकडी नुमा वाह़य संरचना बनाकर उसमें लकड़ी का ही एक पहिया जोड़ दिया जाता था.उसके बाहरी हिस्से पर आगे की ओर घोड़े को बांधने की लिए एक विशेष प्रकार की व्यवस्था होती थी.जिसका लगाम उसे चलाने वाले के हाथ में होती थी. घोड़े के खुर में लोहे का ना लगा होता था ताकि जब घोड़ा गाड़ी को लेकर के सड़क पर दौड़े तो उसके पैर के नीचेले हिस्से पर चोट ना लगे. इस घोड़े के नाल का बिहार में आज जी काफी महत्व है. लोग जिससे अंगूठी बनाकर के पहनते हैं. वह मानते हैं कि इससे ग्रह कटते हैं. दिनभर टमटम गाड़ी चलाने के बाद उसका एकवान शाम में घोड़े की मालिश करता था और उसकी फूल में जो ना लगा होता था उसे चेक करता. कहीं नाल ढीला तो नहीं हो गया है. यदि ढीला नजर आता तो उसे ठोकर कैसेट करता था.
प्राचीन भारतीय नगरीय सभ्यता सिंधु घाटी की पतन का एक प्रमुख कारण थी घोड़े एवं रथो का अभाव. आर्य के पास उच्च कोटि के घोड़े एवं बेहतर टमटम गाडिया थी. जिन के माध्यम से वह हिंद कुश पर्वतों को पार करते हुए सिंधु घाटी में प्रवेश करते हैं. उन्हीं टमटम गाड़ियों पर बैठकर युद्ध किए और विजय के उपरांत एक नये साम्राज्य की स्थापना की. प्राची मुगल काल में भी वही शासक शक्तिशाली मामा जाता था जिसकी सेना में घोड़े गाडिया शामिल होते थी.
आज इन टमटम गाड़ियों का बदला हुआ स्वरुप बड़े लोगों की शादियों में एक प्रतीक चिन्ह के रूप में नजर आती है. 26 जनवरी के 3 दिन बाद जब राष्ट्रपति भवन में बिटि़ग रीटी्ट सेरेमनी का आयोजन होता है तो हमें उन्हीं बग्गी गाड़ियों पर राष्ट्रपति बैठे नजर आते हैं.
टमटम गाडिया आय एवं प्रकृति के साथ संतुलन का एक बैठक उदाहरण था:-
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आज सरकार जिस तरीके से वायु प्रदूषण को लेकर के चिंतित नजर आती है और उससे निपटने के लिए नित नये प्रयोग किया जा रहे हैं जैसे ईरिक्शा, पेट्रोल एवं डीजल के स्थान पर इलेक्ट्रिक गाड़ियों को अपनाना. इसी क्रम में सरकार को यह भी ध्यान रखनी चाहिए कि जिस तरीके से 20 साल पहले तक टमटम गाड़ियां छोटी दूरियों के लिए सड़कों पर परिवहन के साधन के तौर पर चला करती और उसे चलाने वाले भी बहुत शिक्षित नहीं होते थे. फिर भी वह अपने आए किस रूट बनाए रखने के साथ ही साथ प्रकृति की भी रक्षा किया करते थे.
कोई भी समाज सभ्य समाज तभी समझा जाता है जब वह प्राचीन परंपराओं एवं संस्कृतियों को सजो करके रखे. आज जरूरत है परिवहन के क्षेत्र में नवाचार के के साथ ही साथ प्राचीन परिवहन के साधन को भी जीवित खा जाए. बिहार अपने सांस्कृतिक विविधता के लिए विश्व प्रसिद्ध है जैसे छठ पूजा एवं मधुबनी पेंटिंग.
भारत में बुलेट ट्रेन की योजना तैयार हो चुकी है. इस पर कार्य भी शुरू हो चुका है. इससे परिवहन के साधन मैं एक नया आयाम जुड़ जाएगा और साथी साथ रफ्तार थी बढ़ेगी. आज समय की मांग भी है. लेकिन इसके साथ ही साथ जो हमारे सचिन भारत की बुलेट ट्रेन जिसे हम टमटम गाड़ियों के नाम से भी जानते हैं उसके अस्तित्व के बारे में भी गंभीरता से विचार करने की जरूरत है. इसे ना सिर्फ एक परिवहन साधन के तौर पर बल्कि सामाजिक एवं आर्थिक न्याय के लिए भी जरुरी समझना चाहिए.