“हिंदी भारत माता की भाल की बिंदी”, हिंदी दिवस पर वर्चुअल परिचर्चा

जमुई- आज सोमवार को विश्व हिंदी दिवस के के अवसर पर केकेएम कॉलेज के परिसर में अर्थशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ प्रो गौरी शंकर पासवान की अध्यक्षता में विश्व में हिंदी की दशा और दिशा विषय पर एक वर्चुअल विचार गोष्ठी आयोजित की गई l
अपने अध्यक्षीय संबोधन में बोलते हुए अर्थशास्त्र के विभागाध्यक्ष एवं मुंगेर विश्वविद्यालय के वित्तीय सलाहकार डॉ गौरी शंकर पासवान ने कहा कि हिंदी भारत माता की भाल की बिंदी है l अतः इसकी रक्षा तथा सम्मान करना प्रत्येक भारतीय नागरिकों का परम कर्तव्य और दायित्व है l उन्होंने कहा कि हिंदी स्वतंत्रता की साधिका है l स्वतंत्रता से पूर्व राजनेताओं ने वादा किया था कि हिंदी ही भारत की राजरानी होगी लेकिन आजादी के बाद हिंदी रूपी शकुंतला से किए गए वायदे को राजनेता रूपी दुष्यंतो ने विस्मृत कर दिया l हिंदी के साथ दूरभिसंधि हुई 14 सितंबर 1949 को संविधान की धारा 343 (1) में हिंदी को राष्ट्रभाषा एवं राजभाषा बनाने की घोषणा तो की गई ,किंतु इसी धारा 343 (2) में विदेशी भाषा अंग्रेजी को भी 15 वर्षों के लिए सहचरी भाषा के रूप में संवैधानिक मान्यता दे दी गई l यहीं पर हिंदी के साथ छल और कपट हुआ l फल स्वरूप जो अंग्रेजी दासी बन कर भारत आई थी, वह पटरानी बन गई तथा जो हिंदी रानी थी वह दासी बन गई उन्होंने कहा कि हिंदी की दुर्दशा के लिए राजनेता और हमारी शिक्षा नीति मुख्य रूप से जिम्मेदार है l

प्रो.पासवान ने कहा कि हिंदी विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली दूसरी भाषा है l. टोक्यो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर होजू मीतनाका के एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार संसार में चीनी भाषा के बाद सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा हिंदी है सातवीं शताब्दी में सरहपाद की लेखनी से उत्पन्न हिंदी करीब 13 सौ सालों से अकेले अपने दम पर विश्व मंच पर अपनी श्रेष्ठ पहचान बना पाई है, और मजबूती से उसपर खड़ी भी है उन्होंने कहा कि हिंदी के संवर्धन के बिना देश का विकास असंभव है l कोई भी विकसित राष्ट्र अपनी राष्ट्रभाषा के बदौलत ही आगे बढ़ा है

राजनीतिक विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ देवेंद्र कुमार गोयल ने कहा कि हिंदी राष्ट्रीय एकता और अस्मिता की संवाहिका है l हिंदी राष्ट्रभाषा है, लेकिन सरकार का कार्य हिंदी में नहीं, बल्कि अंग्रेजी में हो रहा है l यह हिंदी का अपमान है l उन्होंने कहा कि देसी मुंह में विदेशी जीभ लगाकर अंग्रेजी में फराटेदार वार्तालाप करना भी हिंदी का अपमान और अंग्रेजों की मानसिक गुलामी का प्रतीक है उन्होंने कहा कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने हिंदी को ग्लोबल भाषा बनाने में जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है तथा फिलहाल निभा रही है वह सराहनीय है l

अर्थविद प्रो सरदार राम ने कहा कि हिंदी स्नेह ,सहयोग, सहानुभूति और संवेदनाओं की भाषा है l इसके माध्यम से किसी भी बात को सरल और सहजता से अभिव्यक्त किया जा सकता है हिंदी जब भारत का राष्ट्रभाषा है तब फिर भारत का ऑफिशियल कार्य भी हिंदी में ही होना चाहिए, न कि विदेशी भाषा अंग्रेजी में l
केकेएम कॉलेज के प्रो.यू एन घोष ने कहा कि हिंदी भारत की शान और गौरव है l विद्यापति सूर ,तुलसी, मीरा ,भारतेंदु मैथिलीशरण गुप्त, निराला, पंत जैसे कवियों ने हिंदी को सिंचा है तो दूसरी ओर कबीर, जायसी रहीम और रसखान जैसे कवियों ने हिंदी को अपनी प्रतिभा से पल्लवीत किया है अतः हिंदी का ज्ञान हर इंसान के लिए जरूरी है क्योंकि हिंदी में भाषा बनने की क्षमता है
अंग्रेजी के प्रो. सजिंदा खातून ने कहा कि हिंदी जनता की भाषा है l देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा हिंदी है l अंग्रेजी शासन से पहले फारसी सरकारी कामकाज की भाषा थी l अंग्रेजों के शासन काल में अंग्रेजी को राज्याश्रय मिला, किंतु हिंदी को कभी राज्याश्रय नहीं मिला l अंग्रेजी में पढ़ना लिखना और ज्ञान प्राप्त करना कोई खराब बात नहीं है, लेकिन अंग्रेजी पढ़ कर अंग्रेज बन जाना ही खराब है l

प्रो रणविजय कुमार सिंह ने कहा कि स्वतंत्र राष्ट्र के लिए राष्ट्रभाषा और राष्ट्रध्वज अनिवार्य अंग होता है l राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र मुक है और राष्ट्रध्वज के बिना स्वाभिमानशून्य l गुरु नानक और गुरु गोविंद जी ने हिंदी को आशीर्वाद दिया है l गांधीजी सरदार पटेल ने हिंदी का समर्थन किया l विवेकानंद, सुभाष चंद्र बोस ने भी हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की वकालत की थी l लाजपत राय, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, लोकमान्य तिलक ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का परामर्श किया था l लेकिन आज हिंद में ही हिंदी का अपमान हो रहा है जो कतई उचित नहीं है
वर्चुअल विचार गोष्ठी में प्रो अनिंदो सुंदर पोले, प्रो निरंजन दुबे ,प्रो नंदकिशोर यादव, शिक्षक दिनेश मंडल, मंटू पासवान, श्याम जी ,उत्तम कुमार भारतीय तथा छात्र अतुल, विपुल ,आशीष, इत्यादि ने हिंदी भाषा को प्रोत्साहन तथा सम्मान देने की वकालत की है l

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