भारत की पहली शिक्षिका, महिला सशक्तीकरण की मिसाल थी सावित्रीबाई फुले

( डा. नम्रता आनंद)
पटना, 10 मार्च भारत की पहली शिक्षिका सावित्री बाई फुले का जन्म 03 जनवरी 1831 में महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव गांव में हुआ था। सावित्रीबाई फुले ऐसी शख्स थी जिन्होंने समाज द्वारा लड़कियों की शिक्षा के विरोध के बावजूद उन्हें शिक्षित करने का प्रण लिया।ऐसे समय में उन्होंने शिक्षा पर कार्य करना शुरू किया, जब शिक्षा के सारे द्वार स्त्रियों के लिए प्रायः बंद थे।

उन्होंने सदियों से शिक्षा से महरुम शोषित वंचित, दलित-आदिवासी और स्त्री समाज को अपने निस्वार्थ प्रेम, सामाजिक प्रतिबद्धता, सरलता तथा अपने अनथक सार्थक प्रयासों से शिक्षा पाने का अधिकार दिलवाया। समाज सुधारक क्रांति ज्योति सावित्री बाई फुले युग नायिका बनकर उभरीं। अपनी तीक्ष्ण बुद्धि, निर्भीक व्यक्तित्व, सामाजिक सरोकारो से ओत-प्रोत सावित्री बाई फुले ने स्त्री जीवन को गौरवान्वित किया एवं सामाजिक न्याय को लक्षित किया। आज के ज़माने में महिला सशक्तिकरण इतना अधिक हुआ है तो इसका सबसे पहला श्रेय सावित्रीबाई फुले को जाता है।सावित्री बाई फुले ने 19वीं सदी में महिलाओं के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सती प्रथा, बाल विवाह जैसी कुरीतियों के विरुद्ध आवाज उठाई।

सावित्री बाई फुले न केवल सामाजिक कार्यकर्ता शिक्षिका थीं बल्कि वे कोमल हृदय चेतनाशील, कवयित्री भी थीं।सावित्रीबाई फुले न केवल भारत की पहली अध्यापिका और पहली प्रधानाचार्या थीं, बल्कि वह सम्पूर्ण समाज के लिए एक आदर्श प्रेरणा स्त्रोत, प्रख्यात समाज सुधारक, जागरूक और प्रतिबद्ध कवयित्री, विचारशील चिन्‍तक, भारत के स्त्री आन्‍दोलन की अगुआ भी थीं। सावित्रीबाई फुले एक ऐसी ही शख्स है जिन्होंने स्त्री शिक्षा के लिए न केवल संधर्ष किया बल्कि पहली बार उनके लिए बालिका विद्यालय की भी स्थापना की। वह पहली महिला थी जो बालिकाओं की शिक्षिका भी थी और उनके विद्यालय की संस्थापक भी।

सावित्रीबाई फुले ने अपने पति और सामाजिक क्रान्तिकारी नेता ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर लगातार एक के बाद एक बिना किसी आर्थिक मदद और सहारे के लड़कियों के लिए कई स्कूल खोलकर, सामाजिक क्रान्ति का बिगुल बजा दिया था।सावित्रीबाई फुले ने न केवल शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व काम किया ल्कि भारतीय स्त्री की दशा सुधारने के लिए उन्होंने ‘महिला मण्डल’ का गठन कर भारतीय महिला आन्दोलन की प्रथम अगुआ भी बन गईं।सावित्रीबाई फुले 19 वीं शताब्दी की वह सुनहरी किरण थी, जिसमें ब्रिटिश उपनिवेशवाद के भीतर अपनी न केवल आभा बिखेरी बल्कि अंधविश्वास, पाखंड, ढोंग धार्मिक कर्मकांडों को चीर कर ज्ञान के स्रोत को अछूतों एवं स्त्रियों के लिये रेखांकित किया।

समाज में अंधविश्वास कुरीति-रूढ़ि परम्पराओं के विरुद्ध शिक्षा, ज्ञान, समता और नारी समानता के लिए लड़ने वाली भारत की पहली शिक्षिका, समाज सुधारने वाली पहली क्रांतिकारी नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेत्री सावित्रीबाई फुले की पुण्यतिथि पर उन्हें शत:शत नमन।

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