कर्नाट वंशीय व खंडवाला कुलीन अवशेषों का यहां पर लगातार मिलना कोई नई बात नहीं है। बीते दिन मधुबनी जिले के पंडौल प्रखंड के ईशहपुर गांव में ग्रामीणों द्वारा मिट्टी खुदाई में एक दिवाल और सिक्के मिले हैं। इसके बाद मधुबनी जिला प्रशासन व पुरातत्व विभाग को ग्रामीणों ने सूचित किया है। पुरातत्व विभाग के लोग यहां पहुंच रहे हैं। सभी प्रकार की अन्वेषण जारी है।
अंचलाधिकारी, थानाध्यक्ष के द्वारा बुधवार से ही यहां निरीक्षण जारी है, जहां ग्रामीणों द्वारा अवशेष प्राप्त हुए हैं। खुदाई में मिले ईंट, सिक्के और मटका को मधुबनी जिलाधिकारी को सुपुर्द कर दिया गया है।
मधुबनी जिला प्रशासन द्वारा पुरातत्व विभाग को इसकी जानकारी दी गई है। जांच का विषय यह है कि किस काल की सभ्यता संस्कृति को यह दर्शाती है। ग्रामीणों द्वारा यहां मिट्टी खुदाई की गई है, जिसमें ढेर सारे अवशेष मिले हैं। खुदाई क्रम में सभ्यता संस्कृति से जुड़ी कई आश्चर्यजनक बात दिखने की खबर है।
मिथिलांचल के इर्द-गिर्द पौराणिक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक विरासत की कथाओं का चर्चा कौन नहीं जानता। जिला में बाबूबरही प्रखंड के बलिराजगढ़, झंझारपुर प्रखंड के परसाधाम सूर्य मंदिर, मधुबनी मुख्यालय का भौआरा गढ, राजनगर का दरभंगा राज के अवशेष की चर्चा कई इतिहास की पन्ना में जगह-जगह की गई है।
जिलेवासी ईशहपुर में ऐतिहासिक अवशेष मिलने की घटना को इतिहासकार सरिसब पाही से होकर गुजरने वाली प्राचीन कालीन अमरावती नदी से जोड़कर देख रहे हैं।
मिथिला रिसर्च इन्स्टीच्यूट के डॉक्टर मित्रनाथ झा लाल ने बताया कि इस खुदाई से इलाके के अन्य जानकारियां मिलने की संभावना जाग उठी है। डॉक्टर झा ने कहा कि ईशहपुर-संकोर्थु स्थित अमरावती नदी क्षेत्र में भूमि व अवशेष की जांच पड़ताल समग्र रूप से होनी चाहिए।
वहीं, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय स्नातकोत्तर मैथिली विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ० रमण झा ने बताया कि अमरावती नदी का इतिहास प्राचीन है। पहले अमरावती नदी विकसित थी। तब सरिसब पाही एक मुख्य व्यापारिक केंद्र हुआ करता था, जिसे हाट बाजार कहा जाता था। अभी उस जगह को हाटी गांव कहा जाता है। जब यहां व्यापार चरम पर था उस समय लगभग 1319 ई. से 1325 ई. के मध्य बाहरी आक्रमणकारियों द्वारा यहां के व्यापारिक स्थान को बर्बाद कर दिया गया। हाट को लूट लिया तथा बहुत सारे व्यापारी मारे गए।
सरिसब पाही में वर्तमान में अभी भी ऐसे दो स्थान काफी ऊंचे टीले की तरह हैं, जो इस बात की पुष्टि करते हैं। यहां व्यापारिक प्रतिष्ठान था। सरिसब पाही पश्चिमी पंचायत स्थित ठठेरी टोल और दर्जी टोल यह दोनों अमरावती नदी के पूर्वी तट पर स्थित हैं। इसी नदी किनारे सिद्धेश्वर नाथ महादेव का मंदिर भी हैं।कहा जाता है, कि व्यापारी व्यापार प्रारंभ करने से पूर्व प्रतिदिन यहां पूजा कर करते थे। यहां के तटीय क्षेत्र से मिट्टी के सिक्के, तांबे के सिक्के मिलना भी इस बात का प्रमाण है ।
डॉ. झा ने कहा कि बंगाल में सेन वंश का राजा बल्लाल सेन का आधिपत्य था। उन्होंने उस समय मिथिला के कुछ प्रमुख क्षेत्रों को अपने साम्राज्य में मिला लिया था, जिसमें सरिसब पाही भी था।सरिसब पाही आर्थिक दृष्टिकोण से परिपूर्ण था। कहा जाता है यहां विशेष प्रकार का नमक ‘ऊस’ मिलता था।
इस बाबत सरिसब-पाही के मुखिया रामबहादुर चौधरी ने कहा कि सिक्के की बनी वस्तु तथा ध्वनि उत्पन्न करने वाले बड़ घंंटा वस्तु आदि का व्यापार यहां मुख्य रूप से होता है। आज भी यहां बड़ी मात्रा में घंटी व घंटा का निर्माण ठठेरी टोला में किया जाता है। ऐसे में अमरावती नदी किनारे स्थिति उक्त व्यापारिक केंद्रों के ऊंचे टीले यथा सातो डीह, मनकी डीह सहित ईसहपुर-संकोर्थु स्थित उक्त स्थानों का पुरातत्व विभाग द्वारा जांच व खुदाई की जाए तो काफी कुछ मिलने की संभावनाएं हैं।
मधुबनी से संतोष कुमार शर्मा की रिर्पोट