पटना। राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान में मनाए जा रहे राजभाषा पखवाड़ा के तहत राजभाषा हिंदी 75 सालों में विकास की दिशा और दशा विषय पर वेबीनार का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार एवं लोक गायिका डॉ नीतू कुमारी नवगीत ने कहा कि पूरे देश की आकांक्षाओं की वाहक हिंदी भाषा है। हिंदी का सम्मान भारत माता का सम्मान है।
हम सब जिस तरह से अपने देश, राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय गान, राष्ट्रीय गीत और राष्ट्रीय चिन्ह का सम्मान करते हैं उसी तरह हमें देश की राजभाषा हिंदी का सम्मान भी करना चाहिए। भूगोल के मानचित्र पर दर्शित की गई रेखाओं मात्र से राष्ट्र का निर्माण नहीं होता। राष्ट्र बनता है समृद्ध विरासत, समेकित संस्कृति, स्वतंत्र चेतना और निज भाषा से। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जब आजादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी तब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सहित सभी प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों ने राष्ट्रीय एकता एवं स्वतंत्रता की चेतना के विस्तार के लिए हिंदी के महत्व को स्वीकार किया था।
उत्तर भारत के विभिन्न शहरों में हिंदी के प्रचार.प्रसार के लिए तो अनेक संस्थाएं बनी ही थीं। साथ ही दक्षिण और पूर्वोत्तर भारत में भी हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए अनेक संस्थाएं बनाई गई थीं। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने संघ की राजभाषा के रूप में हिंदी और देवनागरी को लिपि के रूप में स्वीकार किया। हिंदी के साथ साथ अंग्रेजी को भी सरकारी कामकाज की भाषा के रूप में स्वीकार कर लिया गया।
वर्तमान समय में हिंदी भारतीय जनमानस के व्यवहार के बल पर आगे बढ़ रही है। देश के 70 करोड़ लोग हिंदी को बोल और समझ रहे हैं। संचार माध्यमों एवं सोशल मीडिया में हिंदी की भागीदारी लगातार बढ़ रही है। बाजार जन व्यवहार से प्रभावित होता है। अलग अलग उत्पादों का निर्माण करने वाली कंपनियां अपने उत्पाद को करीब 70 करोड़ भारतवासियों तक पहुंचाने के लिए माध्यम के रूप में हिंदी भाषा और हिंदी संचार माध्यमों का उपयोग कर रही हैं।
श्वेता / पटना