भारत अनेक त्योहारों का देश है। और भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग त्योहार अलग और दिलचस्प तरीके से मनाए जाते हैं। रोशनी का त्योहार दीपावली भी इससे अछूता नहीं है। भारत के विभिन्न हिस्सों में लोग विभिन्न प्रथाओं, अनुष्ठानों और बहुत कुछ के साथ विविध तरीकों से दिवाली मनाते हैं। भारत के अधिकांश हिस्सों में, दिवाली को देवी लक्ष्मी की पूजा करके, घरों को दीयों से रोशन करके, प्रियजनों को उपहार देकर और पटाखे फोड़कर मनाया जाता है। इस आलेख में हम देश के विभिन्न हिस्सों में मनाई जाने वाली दिवाली के बारे में जानेंगे।
पश्चिम बंगाल में ऐसे मनाई जाती है दिवाली
बंगाल में दिवाली के दिन काली पूजा या श्यामा पूजा की जाती है। देवी काली को हिबिस्कस के फूलों से सजाया जाता है और मंदिरों व घरों में उनकी पूजा की जाती है। भक्तजन मां काली को मिठाई, दाल, चावल और मछली भी चढ़ाते हैं। आपको बता दें, कोलकाता में दक्षिणेश्वर और कालीघाट जैसे मंदिर काली पूजा के लिए प्रसिद्ध हैं। इसके अलावा, काली पूजा से एक रात पहले, बंगाली घर में 14 दीये जलाकर बुरी शक्ति को दूर करने के लिए भूत चतुर्दशी अनुष्ठान का पालन करते हैं। कोलकाता के पास बारासात जैसी जगहों पर, काली पूजा दुर्गा पूजा के रूप में भव्य तरीके से होती है, जिसमें थीम वाले पंडाल होते हैं।
वाराणसी की दिवाली है खास
वाराणसी में देवताओं की दिवाली मनाई जाती है, जिसे देव दीपावली के नाम से जाना जाता है। भक्तों का मानना है कि इस दौरान देवी-देवता गंगा में डुबकी लगाने के लिए धरती पर आते हैं। गंगा नदी में प्रार्थना और दीये की पेशकश की जाती है और दीपों और रंगोली से सजे किनारे बेहद मंत्रमुग्ध कर देने वाले लगते हैं। देव दीपावली कार्तिक मास की पूर्णिमा को पड़ती है और दिवाली के पंद्रह दिन बाद आती है।
ओडिशा में दिवाली पर पूजते हैं अपने पूर्वजों को
ओडिशा में दिवाली के अवसर पर लोग कौरिया काठी करते हैं। यह एक ऐसा अनुष्ठान है जिसमें लोग स्वर्ग में अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं। वे अपने पूर्वजों को बुलाने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए जूट की छड़े जलाते हैं। दिवाली के दौरान, उड़िया लोग देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश और देवी काली की पूजा करते हैं।
महाराष्ट्र में की जाती है गायों की पूजा
महाराष्ट्र में दिवाली की शुरुआत वासु बरस की रस्म से होती है। इस रस्म में गायों की पूजा की जाती है। इसके अलावा प्राचीन चिकित्सक धन्वंतरि को श्रद्धांजलि देने के लिए लोग धनतेरस मनाते हैं। दिवाली के अवसर पर, महाराष्ट्रीयन लोग देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं और पति और पत्नी के प्यार का जश्न मनाते हुए ‘दिवाली चा पड़वा’ मनाते हैं। यह त्योहार ‘भाव बीज’ और ‘तुलसी विवाह’ के साथ समाप्त होता है, जो शादियों की शुरुआत का प्रतीक होता है।
दिवाली के बाद शुरू हो जाता है गुजराती नव वर्ष
दिवाली के साथ ही गुजरात के लोगों का वर्तमान साल खत्म हो जाता है। गुजराती लोग दिवाली के अगले दिन गुजराती नव वर्ष, बेस्तु बरस मनाते हैं। उत्सव की शुरुआत वाघ बरस से होती है, उसके बाद धनतेरस, काली चौदस, दिवाली, बेस्तु बरस और भाई बीज के पर्व आते हैं।
गोवा और दक्षिण राज्यों में ऐसे मनाते हैं दिवाली
गोवा में, दिवाली का त्योहार भगवान कृष्ण को समर्पित है जो राक्षस नरकासुर का वध करते हैं। दिवाली से एक दिन पहले नरकासुर चतुर्दशी के दिन राक्षस के विशाल पुतले बनाए और जलाए जाते हैं। दिवाली के दौरान, गोवा और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में कई लोग पाप से मुक्त होने के लिए अपने शरीर पर नारियल का तेल लगाते हैं।