पटना का गुमनाम मसीहा … पीड़ित मानवता की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर देने वाले पटना के गुरमीत सिंह


खास रिपोर्ट बिहार पत्रिका से पारस नाथ  20 वर्षों से गुरमीत सिंह लावारिस मरीजों की सेवा कर रहे हैं। ऐसे हर दिन तीन से चार मरीज पटना के पीएमसीएच में आते हैं, जो गंभीर बीमारी या हादसे के शिकार होते हैं। इन मरीजों को अस्पताल में डॉक्टर और दवा तो मिल जाते है, लेकिन कोई अपना नहीं मिलता। गुरमीत सिंह ऐसे मरीजों की सेवा करते हैं। हर दिन लावारिस मरीजों को खाना खिलाते हैं… पीएमसीएच बिहार के सबसे बड़े अस्पताल में से एक है।

यहां हर दिन ऐसे तीन से चार मरीज आते हैं, जिनका कोई नहीं होता।इलाज के बाद अन्य जरुरतों के लिए ये दूसरे पर आश्रित होते हैं। गुरमीत सिंह ऐसे ही मरीजों की प्रति दिन सेवा करते हैं।इनके लिए ये प्रतिदिन रात में खाना लेकर अस्पताल आते हैं।जरुरत पड़ने पर इन्हें जरुरी दवा भी खरीद कर देते हैं।अस्पताल प्रशासन ने 2 बार उन्हें अस्पताल में घुसने से रोका था, लेकिन दोनों बार जिला प्रशासन के दखल के बाद उन्हें अस्पताल में आने की अनुमति मिली। आमदनी का 10 प्रतिशत खर्च करते हैं गरीबों परगुरमीत सिंह पांच भाईयों में सबसे बड़े हैं। इनका संयुक्त परिवार है और इसमें 20 से ज्यादा लोग एक साथ रहते हैं। इनके ऊपर परिवार के सारे लोगों की देख रेख की जिम्मेदारी है।इनकी आमदनी का एक मात्र साधन कपड़े की दुकान है।ये प्रतिदिन अपनी दुकान से रात के 8 बजे घर वापस लौटते हैं।इसके कुछ देर बाद ये पीएमसीएच को निकल जाते हैं।गुरमीत सिंह प्रतिदिन रात में नौ बजे पीएमसीएच के लावारिस वार्ड में खाना लेकर पहुंच जाते हैं। – यहां पर इलाज करवा रहे लोगों को वह खाना देते हैं।जो मरीज खुद से खाना नहीं खा सकते उन्हें वह खाना निकाल कर खिलाते हैं।गुरमीत सिंह कहते हैं मैं अपनी आमदनी का 10 प्रतिशत इस काम में खर्च करता हूं। मरीजों को खाना खिलाने के बाद भी मेरे पास एक बड़ी रकम बच जाती है,

जिसे मैं जरुरतमंदों के बीच बांट देता हूं।
ऐसे मिली प्रेरणागुरमीत सिंह कहते हैं कि हमें इस काम की प्रेरणा पंजाब में मिली।बात करीब 21-22 वर्ष पहले की है। मेरी फुफेरी बहन पेट की एक गंभीर बीमारी से इलाज के लिए हॉस्पिटल में भर्ती थी।इलाज के लिए दो- तीन लाख रुपए की जरुरत थी। पैसे की व्यवस्था में पूरा परिवार लगा था।पैसे के अभाव में लग रहा था कि बहन नहीं बच पायेगी। इसी बीच एक अनजान व्यक्ति ने मेरी मदद की।इलाज में आने वाले सारे खर्च (2-3 लाख) को उसने चुका दिया।उसने अस्पताल प्रबंधन को अपनी मदद के संबंध में किसी को न बताने को कहा था। मुझे तब ख्याल आया कि जब कोई मेरी मदद बिना बताये कर सकता है तो मैं क्यों नहीं समाज के लिए कुछ कर सकता हूं।इसके बाद मैं पटना लौटा और फिर जो मुझसे संभव हुआ वो मैं मदद करने लगा।

विश्व सिख अवॉर्ड से नवाजा गया है.पटना के मेडिकल हॉस्पिटल में लावारिस मरीजों की सेवा और उनकी देखभाल करने के कारण विश्व सिख अवॉर्ड से भी नवाजा गया है।लंदन स्थित संस्था द सिख डायरेक्टरी की ‘सिख्स इन सेवा’ कैटिगरी के तहत लगभग 100 से ज्यादा लोगों ने इसके लिए आवेदन किया था। इनमें से गुरमीत सिंह को विजेता चुना गया ।
इस समारोह में जाने से पहले जब उनसे पूछा गया था कि आपको कैसा लग रहा है? तो इसपर उन्होंने कहा था कि ‘मुझे अंग्रेजी नहीं आती, मैं कैसे बोलूंगा?’

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