दिल्ली डायरी : गुलामी का प्रतीक या मजबूरी

कमल की कलम से !

आज आपको लिये चलते हैं एक ऐसी जगह की सैर को जिसके बारे में दिल्ली के ज्यादातर लोग तो जानते भी नहीं हैं.
यहाँ तक कि नाम भी नहीं सुना है कि ये है किस चिड़िया का नाम. मैं चर्चा कर रहा कोरोनेशन पार्क यानि की राज्याभिषेक पार्क की.

जब मुझे इसके बारे में पता चला और मैनें खोजना शुरू किया तो इसका लोकेशन बुराड़ी के पास का मिला. विश्वविद्यालय के पास मैंने कई ऑटो वालों से इसका नाम लेकर यहाँ चलने को कहा पर कोई जानता ही नहीं था. फिर मैंने सर्च किया तो पता चला कि आई टी आई के पास है. अब ऑटो यहाँ चलने को तैयार हो गया और आई टी आई के बाहर प्रवेश पथ पर छोड़ दिया. उस जगह पर भी मैंने लोगों से पूछा तो सबका जवाब था कुछ आगे जाकर देखिये एक पार्क तो है पर उसका नाम राज्याभिषेक पार्क है ये नहीं पता. थोड़ी ही आगे बढ़ा तो बायीं तरफ अंदर पार्क की कुछ ऊंची ऊंची मूर्तियां नजर आई और बाहर बोर्ड भी , और मिल गया मुझे कोरोनेशन पार्क.

अब मैं आपको बता रहा कि किसी को ये मत कहिये कि कोरोनेशन पार्क जाना है , सिर्फ उसे बताइये कि निरंकारी सरोवर जाना है.
उसके पास में ही है कोरोनेशन पार्क !
या जी टी बी नगर से 116 नम्बर की बस पकड़ लीजिये पर उसे कोरोनेशन पार्क नही बल्कि निरंकारी सरोवर बोलिये.ठीक पार्क के सामने उतार देगा.

जब मैं अंदर गया और अंदर शौर्य स्तम्भ के अलावे किंग एडवर्ड और जॉर्ज पंचम समेत और भी अंग्रेजों की ऊंची ऊंची प्रतिमाएँ लगा देखा तो दिल को बड़ा ही धक्का सा लगा कि स्वतंत्र भारत में इनका क्या काम ! क्यों लगी हुई है यहाँ पर इनकी प्रतिमाएं !

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आईये अब हमलोग इसका इतिहास जानने का प्रयास करें.

कलकत्ता को छोड़कर दिल्ली को सत्ता और ताकत का केंद्र बना देने का ऐलान जिस जगह से हुआ था वो जगह यानी राजधानी दिल्ली की जन्मस्थली आज कहां है , किस हाल में है इसका अंदाज़ा आम लोगों को तो छोड़िए अच्छे-अच्छे इतिहासकारों को भी नहीं है.
किसी ज़माने में दिल्ली दरबार की यह जगह दलदली जमीन भर हुआ करती थी जिसमें राज्याभिषेक की याद के तौर पर एक स्तंभ और अंग्रेज हुक्मरानों की संगमरमरी मूर्तियां खड़ी थीं.

बात 1877 की है जब ये जगह दिल्ली दरबार हुआ करता था. महारानी विक्टोरिया को भारत की भी साम्राज्ञी घोषित किया गया था.
1903 में किंग एडवर्ड सातवें को राजा बनने पर सम्मानित किया गया.आखिरी बार इस जगह का उपयोग दिल्ली दरबार के रूप में 11 दिसम्बर सन 1911 में किया गया जब किंग जॉर्ज पंचम को भारत का राजा बनाया गया.

जैसा कि हमने ऊपर बताया कि यहाँ राजा जॉर्ज पंचम की सबसे लम्बी मूर्ति लगी हुई है जो कि पहले 1960 तक इंडिया गेट पर लगी हुई थी इसे ही बाद में यहाँ शिफ्ट कर दिया गया.
ये वही जार्ज थे जिसने कलकत्ता से हटाकर दिल्ली को राजधानी बनाया और एक नए शहर की नींव रखी.

दिल्ली को दिल्ली दरबार लगाने के लिए चुना गया और 40 साल में तीन दिल्ली दरबार लगाए गये. पहला दिल्ली दरबार भारत के तब के वाइसराय लार्ड लिटन ( Lord Lytton ) ने महारानी विक्टोरिया को भारत की राजरानी घोषित करने के लिए 1 जनवरी 1877 को आयोजित किया था.

दूसरा दिल्ली दरबार पहली जनवरी 1903 को सम्राट एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक के लिए आयोजित किया गया. इसमें तब के वाइसराय लार्ड कर्ज़न ने पूरी शान ओ शौकत दिखाई और इस सब के लिए भारतीय राजाओं से उनके खजाने खुलवा लिए गए. यहां हुए दरबार में प्रतिदिन झांकियां , नाच गाने और आतिशबाजी का प्रदर्शन हुआ.
बाद में इस कार्यक्रम को यादगार बनाने के लिए लार्ड कर्जन ने डाक टिकट भी छपवाए.

परन्तु जिस के लिए ये सब किया गया वो नहीं आये और उसकी जगह उनके भाई ड्यूक ऑफ़ कनॉट पंहुँच गये.
ये वही ड्यूक ऑफ़ कनॉट थे जिसके नाम पर दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस का नाम रखा गया.

तीसरा और अंतिम दरबार 11 दिसम्बर 1911 में आयोजित किया गया. उस वक्त लार्ड हार्डिंग भारत के वायसराय थे.
लार्ड हार्डिंग ने इस कार्यक्रम की बहुत बेहतर और शानदार तैयारियां की थीं.
पहली बार कोई मौजूद सम्राट यानि कि जॉर्ज पंचम इस कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए इस दरबार में शामिल होने अपनी रानी मैरी संग आ रहे थे. तब बेइंतहा हुए खर्च का अनुमान लगाना भी मुश्किल है. किंग्सवे कैंप से तीन किलोमीटर की दूरी पर शांति स्वरूप त्यागी मार्ग पर बने इस कोरोनेशन पार्क को इस रूप में लाने में कई साल लग गए.

2011 में राजधानी दिल्ली के सौ बरस पूरे होने के सिलसिले में इस कारोनेशन पार्क को तैयार करने की योजना बनी थी जो 2018 के अंत में जाकर पूरी हुई.
जब मैंने जानकारी जुटानी शुरू कि तो बहुत से चौंकाने वाले तथ्यों का पता चला.

पता चला कि पहले दिल्ली दरवार के समय में दिल्ली शहर से गुजरने वाली रेलवे लाइनों और आजादपुर जंक्शन को बदला गया.दुरुस्त किया गया.
और आज जिस जगह विधानसभा खड़ी है उसी सिविल लाइंस से लेकर बुराड़ी तक एक छोटी पटरी भी बिछायी गई थी. इस रेलवे लाइन का मकसद था दरबार के लिए लगने वाले तंबुओं और उनके लिए सुविधाओं की खातिर माल—ढुलाई करना.
दरबार की शानो—शौकत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उस दौर के रिकार्ड में दर्ज है कि एक-एक तंबू रोशनी से जगमगाया था.
और लगभग 25 वर्ग मील में 233 तंबुओं को गाढ़ा गया था. 85 एकड़ में अकेले सम्राट जॉर्ज पंचम का आशियाना सजा था. पता चला कि इसके लिए 600 000 पौंड खर्च किये गए.
80 000 सिपाहियों के वेतन और अन्य खर्चों के लिए भारत ने 300 000 पौंड खर्च किये.

किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी एक विशेष ट्रेन से 7 दिसंबर 1911 की सुबह दिल्ली पहुंचे थे. उनकी गाड़ी के लिए विशेष स्टेशन लाल किले के पीछे सलीमगढ़ के शेरशाही किले में बनाया गया था.

यदि आप मदन थपलियाल की पुस्तक ‘नई दिल्ली, दिल्ली का आठवां शहर’ पढ़ेंगे तब आप पाएंगे कि 12 दिसंबर 1911 को किंग और महारानी ने आधार शिलाएं रखकर नई राजधानी का शिलान्यास किया. 12 दिसंबर की रात को दरबार का समापन हुआ.
इस मौके पर जॉर्ज पंचम ने दो ऐलान किए.
बंगाल सूबे के विभाजन को खत्म करना और कलकत्ता की जगह पर दिल्ली को राजधानी बनाना.
दरबार शुरू होते समय कलकत्ता देश की राजधानी थी और दरबार खत्म होते वक्त दिल्ली को देश की राजधानी घोषित कर दिया गया
इसमें जार्ज पंचम का राज्याभिषेक किया गया.

इस पार्क तक पहुंचने के लिए आप नजदीकी मेट्रो स्टेशन
जी टी बी नगर या मॉडल टाउन का इस्तेमाल कर सकते हैं.
वहाँ से ऑटो या बस द्वारा यहाँ तक पंहुँच सकते हैं.

बस स्टैंड : CV Raman ITI बस संख्या 904 और 254 यहाँ से गुजरती है.

अपनी सवारी से जानेवालों के लिए यहाँ पार्किंग की कोई समस्या नहीं है.

 

 

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