पटना। राजद के राष्टï्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने कहा कि सीबीआई का गठन भी 1946 में दिल्ली पुलिस ऐक्ट के अंतर्गत किया गया था। द्वितीय विश्व महायुद्ध के दरम्यान प्रशासन पर भ्रष्टाचार के काफ ी गंभीर आरोप लगाए गए थे। महायुद्ध समाप्त होते ही भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच के लिए भारत सरकार ने सीबीआई का गठन किया था।
उक्त क़ानून में यह प्रावधान है कि किसी भी राज्य में जाँच शुरू करने के पूर्व सीबीआई को संबंधित राज्य सरकार की सहमति आवश्यक होगी। गठन के साथ ही देश के सभी राज्यों सरकारों ने सीबीआई को जाँच के लिए आम सहमति दे दी थी। यह स्थिति 2015 तक क़ायम रही लेकिन 2014 में देश में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद स्थिति में गम्भीर बदलाव आया। अपने प्रतिकूल या अपने से अलग सरकारों के विरुद्ध जिस प्रकार सीबीआई का दुरुपयोग होना शुरू हुआ इसके बाद स्थिति बदली।
2015 में मिजोरम की सरकार पहली सरकार थी जिसने अपने राज्य में सीबीआई की जाँच की सहमति वापस ली। उसके बाद से अब तक आठ राज्यों ने यानी कुल मिलाकर नौ राज्यों ने अपनी सहमति वापस ले ली है। अंतिम राज्य मेघालय था जिसने पिछले मार्च महीने में अपनी सहमति वापस ले ली। श्री तिवारी ने कहा कि इससे स्पष्ट है कि नरेंद्र मोदी की सरकार सीबीआई का जिस प्रकार दुरूपयोग किया और कर रहे हैं उससे बाध्य होकर राज्य सरकारों को यह कदम उठाना पड़ा है। प्रत्येक मामले की जाँच के लिए सीबीआई को राज्य सरकार से अलग अलग सहमति लेनी होगी। अभी भी इस मामले में क़ानूनी धुंधलापन है लेकिन यह स्पष्ट है कि सहमति वापस लेने का सिलसिला केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद ही शुरू हुआ है।
सीबीआई के गठन के 79 वर्ष बाद सहमति वापस लेने का सिलसिला शुरू हुआ। यह तथ्य ही मोदी सरकार के चरित्र को उजागर करता है। बिहार सरकार को भी सीबीआई के बिहार प्रवेश की अपनी सहमति वापस ले लेने पर विचार करना चाहिए यह मोदी सरकार द्वारा सीबीआई के दुरुपयोग का हमारा नैतिक प्रतिरोध होगा।