भारत की संस्कृति को भला अब कौन नहीं जानता , भारत की संस्कृति में बहुत विविधता है पर इस विविधता में भी एकता ही भारत की पहचान है, यहां का रहन – सहन , खान – पान, बोली – भाषा सब एक दूसरे से अलग है पर तब भी लोगों के बीच बना प्यार ही यहां की संस्कृति को बहुत अलग करता है ,और इसी संस्कृति को उजागर करती है भारतीयों की कला। वो कला, जो अपने आस – पास की वो वस्तुएं जिनका कोई मूल्य नहीं होता , उसको वो अपनी कला से अनमोल बना देते है।
इसी कला को प्रदर्शित करने के लिए दिल्ली के बीकानेर हाऊस में आईसीसीआर ( भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद) द्वारा कार्यक्रम आयोजित किया गया है। जिसमें अलग – अलग राज्यों से लोग अपनी कला का प्रदर्शन करने आए हैं।
हाथी के गोबर से बनी किताबें, खादी कपड़े से बनी साड़ी, प्राकृतिक चीजों से बने रंग वाले कपड़े , sea shell से बने जेवर , प्रकृति इत्र की दुकानें अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं।
उन दुकानों को देखते हुए मेरी नज़र एक दुकान पर जा के रुकी। उस दुकान पर एक बुजुर्ग पुरुष बैठे चाय पी रहे थे और उनके सामने पड़ी टेबल पर बेहद ही खूबसूरत और आकर्षित करने वाली ” sea shell ” आम भाषा में कहे तो समुद्र में पाई जाने वाली कौड़ी से बनी वस्तुएं रखी थी जिनमेंकौड़ी से बनें बरतन, महिलाओं के लिए पर्स , महिलाओं के पहनने वाले जेवर थे जिसको देख कर मेरी निगाह रुक गई।
पीबीएनएस से बात करने पर उन्होंने बताया कि उनका नाम किनकर घोष है और पश्चिम से आए हैं। वो इस कारोबार को पूरे परिवार के साथ मिलकर पिछले 16 साल से सफलता पूर्वक चला रहे हैं। उनको इस कार्य में आज तक किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा है। उन्होंने बताया कि वो ये कौड़ियां बाहर से खरीदते हैं। और फिर उसको घिस कर चमकदार बनाते हैं फिर उसको अपने अनुसार आकार में ढालते हैं। उसके बाद हाथ से चलने वाली मशीन का प्रयोग करके उस पर डिजाइन बनाते हैं जो दिखने में बेहद सुंदर लगते है। इस कारोबार से वो न केवल अपना घर चलाते हैं। बल्कि वो लोगो को रोजगार भी देते हैं। उन्होंने बताया की उनके इस कारोबार में कई लोगों का सहयोग होता है जिसमें महिला और पुरुष दोनों शामिल हैं।
समुद्र में पाई जाने वाली कौड़ी जो दिखने में बहुत सुंदर तो लगती है पर उसको इस रूप में शायद ही किसी ने देखा होगा कौड़ियों को ये रूप देने का किनकर घोष का ये प्रयास तारीफ योग्य है और आईसीसीआर द्वारा उनको अपने इस कला को प्रदर्शित करने का मौका मिला।