पटना: 90 के दशक से आज तक बिहार की राजनीति किसी दल के पक्ष या विपक्ष में नही बल्कि लालू प्रसाद के इर्द-गिर्द घुमती है। 15 सालों के एनडीए के शासन के बाद भी चुनावों में दो हीं विकल्प हुआ करता है, पहला लालू पक्ष तो दूसरा लालू विरोध। बिहार में राजद का शासन तक़रीबन 15 वर्षों तक रहा। ये 15 साल आज भी सत्ता पक्ष के लिए बेहतरीन स्वादिष्ट मसाला है, जिसे वर्तमान समय में भी लालू विरोध की खिचड़ी में कड़वा मसाला बता कर और मिला कर आम जनता को रह-रह कर स्वाद का डर दिखाया जाता है। लालू प्रसाद के शासन का खौफ राजनीतिक दलों में आरम्भ से हीं रहा है। एक बार सत्ता में बैठने के बाद उनकी कुर्सी को हिलाना नामुमकिन सा था.
एक समय था जब लालू प्रसाद मीडिया के सबसे चहेते चेहरों में एक थें। कोई भी राष्ट्रीय चैनल हो या क्षेत्रीय चैनल बगैर लालू प्रसाद की खबर के अधूरे रहते थें। एक बड़े जनसमुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले लालू प्रसाद के एक इशारे पर बड़ा जनसैलाब पटना की सड़कों पर उतर जाता था। शासन प्रणाली को अलग कर दें तो लालू प्रसाद जैसे विशाल जनसमर्थन वाले नेता बिहार में फ़िलहाल में कोई नहीं है लालू प्रसाद के शासनकाल में राजद की टिकट का मतलब कन्फर्म जीत होता था. बिहार के गोपालगंज में एक यादव परिवार में जन्मे लालू प्रसाद यादव ने राजनीति की शुरूआत जयप्रकाश नारायण के जेपी आन्दोलन से की जब वे एक छात्र नेता थे और उस समय के राजनेता सत्येन्द्र नारायण सिन्हा के काफी करीबी रहे थे। 1977 में आपातकाल के पश्चात् हुए लोक सभा चुनाव में लालू यादव जीते और पहली बार 29 साल की उम्र में लोकसभा पहुँचे। 1980 से 1989 तक वे दो बार विधानसभा के सदस्य रहे और विपक्ष के नेता पद पर भी रहे.
बिहार में लालू युग की शुरुआत साल 1990 में हुई। बिहार के मुख्यमंत्री बनने के बाद से हीं शुरू हुआ लालू का करिश्मा। अपने मुख्यमंत्रित्व काल लालू प्रसाद अपनी कार्यशैली से एक मजाकिया राजनेता के रूप में पुरे विश्व में प्रसिद्ध हो गए। बिहार की जनता के बीच उन्होंने जाति का ऐसा बाण चलाया कि पूरा बिहार सिर्फ जाति की राजनीति में उलझ गया। वे दुबारा 1995 में भी भारी बहुमत से विजयी रहे।
हालांकि लालू प्रसाद यादव उस वक़्त खासे चर्चा में आ गए जब उन्होंने 23 सितंबर 1990 को राम रथ यात्रा के दौरान समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करवाया था। इससे पुरे देश में लालू प्रसाद की छवि एक बड़े धर्मनिरपेक्ष नेता के रूप में बन गयी। लालू यादव के जनाधार में एमवाई (MY) यानी मुस्लिम और यादव फैक्टर का बड़ा योगदान रहा है.
लालू प्रसाद का युग चाहे बिहार में अंधकार लाया हो या उजाला पर इसमें कोई संदेह नहीं कि बिहार में आज भी सत्ता का पक्ष-विपक्ष लालू प्रसाद के नाम पर चलता है. लालू प्रसाद आज गंभीर रूप से बीमार हैं. भ्रष्टाचार के कई आरोपों के कारण पिछले कई सालों से जेल में बंद हैं. सोशल मीडिया पर #Release_Lalu_Yadav के नाम से कैम्पेन चलाया जा रहा है। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की बेटी ने भी अपने पिता के लिए मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने राष्ट्रपति को खत लिखते हुए पिता की रिहाई की मांग की है। यही नहीं रिहाई के मुद्दे को आंदोलन बनाने की कवायद भी शुरू कर दी गई है.
लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से लालू यादव की रिहाई की मांग की है। इससके लिए रोहिणी ने उन्हें खत लिखा है। रोहिणी ने अपने ट्विटर हैंडल से खत के सिंबल के साथ ट्वीट किया है कि “देश के महामहिम राष्ट्रपति को एक पत्र आजादी पत्र गरीबों के भगवान आदरणीय श्री लालू प्रसाद यादव जी के लिए। इस मुहिम से जुड़ें और अपने नेता की आजादी के लिए अपील करें। जिसने हमें ताकत दी, आज वक्त उनकी ताकत बनने का। हम और आप बड़े साहब की ताकत हैं.
वहीं लालू प्रसाद के बड़े पुत्र तेजप्रताप यादव ने भी सोशल मीडिया पर एक कैंपेन शुरू किया है। उन्होंने #Release_Lalu_Yadav के नाम से एक मुहिम शुरू की है। सोशल मीडिया से जुड़े लोगों में कई लोग इसके समर्थन में उतर रहे हैं। #Release_Lalu_Yadav के तहत तेजप्रताप यादव ने ट्विटर पर अपने पिता की पुरानी तस्वीर को शेयर करते हुए लिखा है कि जब इंसान ही नहीं बचेगा तो मंदिरों में घंटी कौन बचाएगा, जब इंसानियत ही नहीं बचेगी तो मस्जिद में इबादत कौन करेगा। इसके साथ ही तेजप्रताप यादव ने #Release_Lalu_Yadav भी लिखा है। अपने पिता के बेहतर स्वास्थ्य के लिए तेजप्रताप यादव पटना स्थित आवास पर श्रीमद्भागवत कथा का भी आयोजन करवा रहे हैं। लालू प्रसाद के जल्द स्वस्थ होने को लेकर वे खुद भी विशेष प्रार्थना और पूजा कर रहे हैं.
मधुप मणि “पिक्कू”
संयुक्त सचिव, वेब जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ इण्डिया
(लेखक एक न्यूज चैनल के सम्पादक रह चुके हैं।)